बजट सत्र में तीन तलाक़ बिल फिर लाएगी सरकार
तीन तलाक़ पर प्रतिबंध लगाने के लिए सरकार तीन तलाक़ बिल को फिर से लेकर आएगी। कैबिनेट समिति ने बुधवार को इसकी मंजूरी दे दी। सरकार चाहती है कि मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित किए जाने के बाद इस विधेयक को संसद द्वारा पारित किया जाए और इस वर्ष के शुरू में जारी अध्यादेश का स्थान ले। अब 17 जून से शुरू होने वाली 17वीं लोकसभा के पहले सत्र में इस नये बिल को पेश किया जाएगा। लेकिन क्या तीन तलाक़ बिल के मौजूदा स्वरूप को पास कराना संभव है बीजेपी लोकसभा में तो बिल को आसानी से पास करा लेगी, लेकिन राज्यसभा में उसके पास पर्याप्त संख्या नहीं है। विपक्ष तीन तलाक़ में तीन साल की सजा और जुर्माने के प्रावधान जैसे कई प्रावधानों को ख़त्म कराना चाहता है। लेकिन बीजेपी के पास कोई आसान रास्ता भी नहीं है। इसीलिए पहले संभावना जताई जा रही थी कि सरकार एक नए प्रस्ताव को लेकर आ सकती है।
Union I&B Minister Prakash Javadekar: We will introduce the triple talaq bill in the upcoming parliament session. pic.twitter.com/QCOaFstXFS
— ANI (@ANI) June 12, 2019
बता दें कि मई में 16वीं लोकसभा के भंग होने के साथ ही तीन तलाक़ बिल अमान्य हो गया था, क्योंकि यह राज्यसभा में लंबित था। तत्काल तीन तलाक़ (तलाक़-ए-बिद्दत) की प्रथा को दंडनीय अपराध बनाने वाले मुसलिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) विधेयक का विपक्षी दल ने विरोध किया था। उनका विरोध इस बात को लेकर था कि अपनी पत्नी को तलाक़ देने के लिए पति को जेल भेजना क़ानूनी रूप से तर्कसंगत नहीं है। इससे पहले भी बीजेपी सरकार दो बार तीन तलाक़ पर अध्यादेश लेकर आई थी।
कब-कब लाया गया अध्यादेश
पहला अध्यादेश 2018 में संसद के मानसून सत्र के बाद लाया गया था और दूसरा शीतकालीन सत्र के बाद जारी किया गया था। तीसरे अध्यादेश को आख़िरी कैबिनेट द्वारा 19 फ़रवरी को आम चुनावों से कुछ सप्ताह पहले घोषित किया गया था।
इन अध्यादेशों को ख़त्म होने से पहले सत्र की शुरुआत के 45 दिनों के भीतर क़ानून में बदलना होता है।
मुसलिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अध्यादेश, 2019 के अनुसार, तत्काल तीन तलाक़ के माध्यम से तलाक़ देना अवैध, अमान्य होगा और पति के लिए तीन साल की जेल की सजा होगी। प्रस्तावित क़ानून के दुरुपयोग की आशंकाओं को देखते हुए सरकार ने इसमें कुछ सुरक्षा उपायों को शामिल किया था, जैसे कि ट्रायल के दौरान अभियुक्त के लिए ज़मानत का प्रावधान।
हालाँकि पिछला अध्यादेश इसे ‘ग़ैर-ज़मानती’ अपराध बनाता था, एक अभियुक्त ज़मानत लेने के लिए मुक़दमे से पहले भी एक मजिस्ट्रेट से संपर्क कर सकता था। ग़ैर-ज़मानती अपराध में पुलिस द्वारा पुलिस स्टेशन में ही ज़मानत नहीं दी जा सकती, ‘पत्नी की सुनवाई के बाद’ मजिस्ट्रेट को ज़मानत देने का अधिकार दिया गया। इन संशोधनों को कैबिनेट ने 29 अगस्त, 2018 को ही मंजूरी दे दी थी।
बीजेपी के घोषणा-पत्र में तीन तलाक़ का ज़िक्र
नरेंद्र मोदी सरकार ने हाल ही में हुए आम चुनाव में सत्ता में वापसी की, इसने संसद में प्रस्तावित क़ानून को नए सिरे से लाने का फ़ैसला किया है। केंद्रीय क़ानून और न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने 3 जून को सरकार की इच्छा को फिर से विधेयक में लाने पर ज़ोर देते हुए कहा था कि तीन तलाक़ का मुद्दा हमारे (बीजेपी के) घोषणा-पत्र का हिस्सा था।
राज्यसभा में बीजेपी को बहुमत नहीं
राज्यसभा में बीजेपी अल्पमत में है और एनडीए के सहयोगी दलों के साथ छोड़ने के बाद इस बिल को पास कराना असंभव लग रहा है। राज्यसभा में कुल 245 सदस्य हैं। बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन के पास 99 सदस्य हैं। फ़िलहाल की स्थिति में एनडीए राज्यसभा में 2021 तक बहुमत हासिल कर सकती है। यानी तीन तलाक़ बिल को क़ानून बनाने के लिए बीजेपी को दूसरे दलों की दरकार होगी। तीन तलाक़ के मसले पर एनडीए के घटक दल ही असहज महसूस करते हैं।
बता दें कि बीजेपी के सहयोगी जनता दल यूनाइटेड ने इसी साल जनवरी में राज्यसभा में इस बिल को समर्थन देने से इनकार कर दिया था। कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष इस बिल को सेलेक्ट कमिटी में भेजने की माँग पहले से ही कर रहा है। लोकसभा में बीजेपी बहुमत में है, इसलिए विपक्ष बिल को रोकने में सक्षम नहीं हुआ था।
पहले किए गए थे कुछ बदलाव
पिछले साल सितंबर में सरकार ने अध्यादेश के ज़रिए तीन तलाक़ को प्रतिबंधित कर दिया था। विपक्ष के विरोध के कारण सरकार ने लोकसभा में बिल पेश करने से पहले काफ़ी बदलाव किया। इसके बावजूद ज़्यादातर मुसलिम संगठन इसके ख़िलाफ़ है। विपक्ष तीन साल की सजा और जुर्माने के प्रावधान को ख़त्म करने की माँग कर रहा था। इसके साथ ही बिल में पत्नी की सहमति के बिना पति को ज़मानत नहीं मिलने, बच्चे पर माँ का अधिकार जैसे मुद्दों पर भी विवाद उठा था।