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भाजपाः 2019 में 224 सीटों पर 50% वोट शेयर, 2024 में सिर्फ 156 सीटों पर

भाजपाः 2019 में 224 सीटों पर 50% वोट शेयर, 2024 में सिर्फ 156 सीटों पर

लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा के खराब प्रदर्शन का विश्लेषण तमाम नजरिए से अभी भी जारी है। हालांकि मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं लेकिन भाजपा अपने दम पर बहुमत नहीं ला सकी है। उसकी सरकार नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की पार्टियों की बैसाखी पर टिकी है। 2019 में भाजपा 303 सीटें अपने दम पर लाई थी, इस बार वो 240 पर आकर रुक गई। इस बार उसका वोट प्रतिशत भी बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ है। 

लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा का पूरा अभियान नरेंद्र मोदी के चेहरे पर आधारित था। 2024 में भी मोदी के चेहरे को मोदी की गारंटी के रूप में पेश किया गया। लेकिन जनता ने कुछ और सोचा हुआ था। 2024 के आंकड़े जैसे जैसे सामने आ रहे हैं, उससे पता चल रहा है कि भाजपा की हार कितनी बुरी तरीके से हुई है। हालांकि भाजपा इस हार को स्वीकार नहीं कर रही है और विपक्ष का मजाक उड़ा रही है। एनडीए सरकार बनने की आड़ में भाजपा अपनी हार को छिपा रही है। लेकिन चुनाव आयोग के आंकड़े तो फर्जी हैं नहीं, जिन्होंने भाजपा की पोल खोल दी है। 

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने 303 सीटें जीती थीं। इनमें 224 सीटें तब ऐसी थीं, जहां उसने 50% से अधिक वोट शेयर पाया था। इस बार, भाजपा 240 सीटों पर आकर रुक गई और सिर्फ 156 सीटों पर उसे 50% से अधिक वोट शेयर हासिल हुआ है। 2019 में 224 सीटों में से भाजपा को 7 सीटों पर 70% से ज्यादा वोट मिले, 77 सीटों पर 60% से 70% के बीच और 140 सीटों पर 50% से 60% के बीच वोट मिले। 

रिपोर्ट के मुताबिक 2024 के आम चुनाव में भाजपा ने 7 सीटों पर फिर से 70% से अधिक वोट हासिल किया। लेकिन 2019 के मुकाबले सिर्फ 39 सीटें ऐसी हैं जो वो 60% से 70% वोट शेयर के साथ जीत पाई है। 50% से 60% वोट शेयर के साथ जीती गई सीटें भी 140 से खिसकर 110 तक आ गईं।

बाजपा ने 40% से 50% वोट शेयर के साथ 78 सीटें जीतीं, और 30% से 40% वोट शेयर के साथ पांच सीटें जीतीं है। सूरत में उसका प्रत्याशी निर्विरोध चुना गया। सूरत में हुई पैंतरेबाजी चर्चा का विषय रही है। वहां कांग्रेस के प्रत्याशी ने अपनी ही पार्टी के साथ धोखाधड़ी की और नामांकन भरने से पहले गायब हो गया।

भाजपा ने 2019 में 50% से अधिक वोट शेयर के साथ जिन 224 सीटों पर जीत हासिल की थी, उनमें से इस बार वो 176 सीटों को कायम रख पाई और 45 सीटें हार गईं। इनमें से 29 सीटें कांग्रेस और आठ सीटें समाजवादी पार्टी (सपा) के खाते में चली गईं। यानी भाजपा के खिलाफ अधिकांश सीटें कांग्रेस ने जीती हैं।

यह एक चौंकाने वाला आंकड़ा है कि 50% से अधिक वोटों के साथ जिन 176 सीटों को उसने जीता, उनमें से 132 सीटों पर वोट शेयर 2019 के मुकाबले गिरा है और सिर्फ 12 सीटों पर 5% या उससे अधिक की वृद्धि हुई है। यह आंकड़ा मामूली नहीं है। यानी वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी की रफ्तार भी धीमी पड़ गई है।

भाजपा की 224 सीटों के अलावा जो उसने सहयोगियों को लड़ने के लिए दिया, उसमें भी भाजपा का वोट शेयर औसतन 5.31% गिर गया। राजस्थान के बाड़मेर में नई कहानी लिखी गई। 2019 में भाजपा ने यह सीट 59.52% वोट शेयर से जीती थी। लेकिन इस बार उसका वोट शेयर बाड़मेर में 17% पर सिमट गया। यहां कांग्रेस जीती है।

भाजपा ने इस बार 50% से अधिक वोट शेयर के साथ जो 156 सीटें जीतीं, उनमें से सिर्फ 10 सीटें ऐसी हैं जिन्हें 2019 में जीतने में नाकाम रही थी, जबकि पांच सीटें ऐसी हैं जिन्हें उसने 50% से कम वोटों के साथ जीता था।

भाजपा मध्य प्रदेश के नतीजों और सीटों पर जरूर गर्व कर सकती है। भाजपा ने राज्य में 50% से अधिक वोट शेयर के साथ 25 सीटें जीतीं, जो बड़ी उपलब्धि है। लेकिन उसने 2019 में भी ऐसी ही जीत हासिल की थी। भाजपा ने आधे से अधिक वोट शेयर के साथ गुजरात की 26 सीटों में से 23 सीटें जीतीं, और समान वोटों के साथ कर्नाटक की कुल 28 सीटों में से 17 सीटें जीतीं।

इसी तरह भाजपा को चार अन्य राज्यों में दिल्ली (7), उत्तराखंड (5), हिमाचल प्रदेश (4) और त्रिपुरा (2) में व्यापक सफलता मिली। इन चारों राज्यों में उसने सभी सीटें 50% से अधिक वोट शेयर के साथ हासिल कीं। 2019 में दिल्ली, उत्तराखंड और हिमाचल में भी इसी तरह की जीत हासिल हुई थी।

इसके बावजूद यूपी, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में भाजपा का खराब प्रदर्शन ने उसकी पूरी साख पर ही बट्टा लगा दिया। क्योंकि भाजपा ने 2019 में इन राज्यों से आधे से अधिक वोट शेयर हासिल कर भारी संख्या में सीटें जीती थीं। पिछली बार भाजपा ने यूपी में 40 ऐसी सीटें जीती थीं जिनमें 50% से ज्यादा वोट शेयर था। लेकिन इस बार सिर्फ 13 सीटों पर ही उसने 50 फीसदी से ज्यादा वोट शेयर हासिल किया। महाराष्ट्र में इसकी 50% वोट शेयर वाली सीटें 15 से गिरकर 5 पर आ गईं और राजस्थान में 23 से 12 पर लुढ़क गईं। भाजपा के सहयोगी दलों टीडीपी, जेडीयू और एलजेपी (रामविलास पासवान) ने भी अपनी-अपनी सीटों पर बेहतर प्रदर्शन किया।

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