‘जय श्री राम’ के नारे के ज़रिए बंगाल में ध्रुवीकरण तेज़ करने की कोशिश में बीजेपी
संसदीय चुनाव में पश्चिम बंगाल में 18 सीटें जीतने के बाद भारतीय जनता पार्टी काफ़ी आक्रामक है और ध्रुवीकरण को आगे बढ़ाना चाहती है। मुसलिम तुष्टीकरण के आरोप की काट निकालने में ममता बनर्जी ठीक से कामयाब नहीं हुईं और बीजेपी के पक्ष में वातावरण बन गया। इसका नतीजा यह हुआ कि बीजेपी को राज्य में अभूतपूर्व सफलता मिली और तृणमूल कांग्रेस को 2014 की तुलना में 11 सीटों का नुक़सान उठाना पड़ा।
बीजेपी ने ममता बनर्जी को घेरने की रणनीति के तहत ध्रुवीकरण को नई ऊँचाई देने का फ़ैसला किया है और इसमें ‘जय श्री राम’ को हथियार बनाने का मन बना लिया है। इसके तहत ही उसने ‘जय श्री राम’ लिखे लाखों पोस्टकार्ड मुख्यमंत्री को भेजने का निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री कार्यालय को इस नए सिरदर्द का सामना करना होगा।
बीजेपी ने इस रणनीति के तहत यह तय किया है ममता बनर्जी के मुखातिब होने पर जब-तब, बार-बार उनके सामने ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए जाएँ। इससे वह चिढ़ें, गुस्से की प्रतिक्रिया दें और बीजेपी उसे सोशल मीडिया पर वायरल करा कर यह प्रचारित करे कि तृणमूल प्रमुख हिन्दू विरोधी हैं।
तुनकमिजाजी ममता!
यह सबको पता है कि ममता बनर्जी तुनकमिजाजी हैं, उन्हें किसी भी बात पर तुरन्त ग़ुस्सा आ जाता है। वह अपने ग़ुस्से, किसी भी मुद्दे पर पलटवार करने और उत्तेजक बयान देने के लिए मशहूर हैं। यह उनकी राजनीतिक शैली है उनका स्वभाव भी यही है। कांग्रेस पार्टी में कलह होने और पार्टी तोड़ कर बाहर निकलने की पीछे यह भी एक कारण था। बीजेपी के लोग इसका फ़ायदा उठा कर उन्हें घेरने की जुगत भिड़ा रहे हैं। बैरकपुर के नव-निर्वाचित बीजेपी सांसद अर्जुन सिंह के बयान से इस रणनीति का खुलासा होता है।
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ममता बनर्जी जब कभी राज्य के किसी हिस्से में दौरे पर जाएँगी, पार्टी के कार्यकर्ता ‘जय श्री राम’ का नारा लगा कर उनका स्वागत करेंगे। उनके सामने आकर हज़ारों स्त्री-पुरुष ‘जय श्री राम’ का नारा लगाएँगे, महिलाएँ शंख बजा कर उनका स्वागत करेंगी। पुलिस हमें लाउड स्पीकर का प्रयोग नहीं करने देगी, इसलिए हम बड़ी तादाद में इकट्ठे होकर नारा लगाएँगे।
अर्जुन सिंह, बीजेपी सांसद
बचकाना हरकत
पार्टी की इस रणनीति के पीछे ममता बनर्जी की प्रतिक्रिया रही है, जिसे बचकाना ही कहा जा सकता है। बीजेपी ने दो मौक़ों पर ममता बनर्जी की प्रतिक्रिया का फ़ायदा उठाने का फ़ैसला किया है। पूर्व मेदिनीपुर में 5 मई और उत्तर चौबीस परगना में 30 मई को अलग-अलग घटनाओं से बीजेपी को कुछ करने की प्रेरणा मिली। दोनों बार मुख्यमंत्री जब बीजेपी के कार्यकर्ताओं के पास से गुजर रही थीं, उन्होंने रुक कर ‘जय श्री राम’ का नारा लगाया। इस पर ममता बनर्जी ने अपनी गाड़ी रुकवाई, गाड़ी से बाहर निकल कर उन कार्यकर्ताओं के पास गईं और उन्हें डाँट लगाई। इसका वीडियो वायरल हो गया और बनर्जी की आलोचना हुई।आलोचकों ने कहा कि मुख्यमंत्री को इस तरह ग़ुस्सा नहीं करना चाहिए था, उन्हें इसकी अनदेखी करनी चाहिए थी। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि यह जानबूझ कर की गई शरारत थी, जिसका मक़सद ममता बनर्जी को छेड़ कर, उन्हें ग़ुस्सा दिला कर उन्हें हिन्दू विरोधी साबित करना था।
बंगाली संस्कृति में नमस्कार करने के लिए ‘जय श्री राम’ नहीं कहा जाता है, जैसा उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ हिस्सों में होता है। इसलिए ममता बनर्जी का अभिवादन करने के लिए तो यह नारा नहीं ही लगाया गया होगा, उन्हें गुस्सा दिलाने की कोशिश ज़रूर की गई। वह इस उकसावे में आ गईं और जाने अनजाने बीजेपी को एक हथियार थमा दिया।
बीजेपी इस नारे को हथियार बना कर तृणमूल पर हमले करने की पूरी तैयारी में हैं। कोलकाता के मेयर और मुख्यमंत्री के नज़दीक फ़रहाद हक़ीम को भी ऐसे ही नारे का सामना करना पड़ा। उन्होंने इसके जवाब में कहा, ‘कोई अच्छा आदमी यह नारा लगाए तो उसमें कोई बुराई नहीं है। पर यहाँ तो सिर्फ़ अशांति फैलाने के लिए कुछ गुंडे यह नारा लगा रहे हैं।’
फ़ेसबुक पर ममता का जवाब
अपने विरोधी की चाल समझ कर मुख्यमंत्री ने अपना रुख नरम कर लिया है। उन्होंने सफ़ाई दी है कि इस नारे में कोई बुराई नहीं है, पर बीजेपी इसका राजनीतिक इस्तेमाल कर रही है। उन्होंने अपने फ़ेसबुक पेज पर एक पोस्ट कर कहा कि बीजेपी राम के नाम को विकृत कर रही है और इसके ज़रिए धर्म और राजनीति का घालमेल कर रही हैं। दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने लंबे पोस्ट में बांग्ला के अलावा हिन्दी और अंग्रेजी में भी अपनी बातें कही हैं।उन्होंने बेहद होशियारी के साथ इस पोस्ट के ज़रिए बांग्ला राष्ट्रवाद का भी इस्तेमाल किया है। उन्होंने पोस्ट के साथ ही एक कोलाज लगाया है, जिसमें महात्मा गाँधी से लेकर सुभाष चंद्र बोस और ईश्वरचंद्र विद्यासागर तक की तसवीरें लगाई गई हैं। पोस्ट पर ‘जय बांग्ला’ और ‘जय हिन्द’ भी लिखा है।
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‘जय सिया राम’,’जय राम जी की’, ’राम नाम सत्य है’ आदि नारों का धार्मिक और सामाजिक अर्थ है। हम इन मनोभावों का आदर करते हैं। लेकिन भाजपा धार्मिक नारे, 'जय सिया राम' को विकृत रूप से अपने पार्टी के नारे के रूप में काम में लगा रही है तथा इसके माध्यम से धर्म और राजनीति को एक साथ मिला रही है। हम तथाकथित आरएसएस द्वारा दूसरों पर इन जबरदस्ती के थोपे गए राजनीति नारों का सम्मान नहीं करते हैं जिसे बंगाल ने कभी भी मान्यता नहीं दी। यह जानबूझकर बर्बरता और हिंसा के ज़रिये घृणा की विचारधारा को बेचने जैसा है जिसका हम सभी को मिलजुल कर विरोध करना चाहिए।
ममता बनर्जी के फ़ेसबुक पेज से साभार
ममता का रुख लचीला
इसके साथ ही यह साफ़ हो गया है कि ममता बनर्जी ने बीजेपी की चाल को भाँपते हुए अपने रवैए को लचीला बनाया है। वह उस पर घृणा की राजनीति करने और धर्म का बेज़ा इस्तेमाल करने का आरोप लगाते हुए लोगों से अपील करती हैं कि इससे निपटना ज़रूरी है। इसके साथ ही बांग्ला संस्कृति को उठाते हुए कहती हैं कि इस संस्कृति और विरासत पर गर्व करना चाहिए।पर सवाल यह है कि क्या बीजेपी अपनी रणनीति में कोई बदलाव करेगी या उग्र हिन्दुत्व का इस्तेमाल करेगी। इस चुनाव से यह साफ़ हो गया है कि बीजेपी उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे जगहों पर भी हिन्दू एकीकरण में कामयाब रही है और जातिवादी गोलबंदी को हराया है, जिसे राष्ट्रीय जनता दल की हार में समझा जा सकताा है। कमोबेश यही हाल हिन्दी पट्टी के दूसरे राज्यों का भी है। पश्चिम बंगाल में इस उग्र हिन्दुत्व को आगे बढ़ाने का काम इसलिए भी कर सकती है कि एक साल बाद ही वहाँ विधानसभा चुनाव है। इस लोकसभा चुनाव में कम से कम 128 विधानसभा क्षेत्रों में बीजेपी सबसे आगे रही, पचास से ज़्यादा सीटों पर वह दूसरे नंबर पर है। संसदीय चुनाव के नतीजे से उसके हौसले बुलंद हैं ही, वह क्यों न इस अजेंडे को आगे बढ़ाए ज़ाहिर है, पश्चिम बंगाल की राजनीति में ध्रुवीकरण पहले से ज्यादा होने जा रहा है, इसे रोकना मुश्किल होगा।