असम: मुद्दे नहीं, लुभावने वादों की बाढ़; पिछले वादे भूल जाइए!
असम विधानसभा चुनाव से पहले वोटरों को आकर्षित करने के लिए बीजेपी और कांग्रेस में होड़ सी मची हुई है। एक तरफ़ सत्ता में काबिज रहने का फायदा उठाते हुए बीजेपी ने हर वर्ग के लोगों को लुभाने के लिए चुनाव से पहले पैसों की बरसात कर दी तो दूसरी तरफ़ कांग्रेस ने भी चुनाव जीतने पर पाँच अहम वादों को पूरा करने की गारंटी दी है। अब देखना यह है कि ऐसे तोहफों का चुनाव में मतदाताओं पर कैसा असर होता है।
वैसे तो असम में बीजेपी के नेता सार्वजनिक सभाओं में मीडिया के उन सवालों से बचते रहे हैं जिनके ज़रिये मीडिया उन मुद्दों को उठाता है, जिन पर बीजेपी 2016 में सत्ता में आई थी। पार्टी इसके बजाय विकास योजनाओं की बाढ़ से लोगों को अभिभूत करना चाहती है। हालाँकि पार्टी पिछले चुनावों में असम के लोगों से किए गए एक भी वादे को पूरा करने में विफल रही है।
असम की जनता एनआरसी, असम समझौते की धारा -6 लागू करने, राज्य की छह जनजातियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने और राष्ट्रीय बाढ़ के रूप में विनाशकारी असम बाढ़ की घोषणा करने सहित कुछ प्रमुख मुद्दों पर भगवा पार्टी द्वारा विश्वासघात महसूस कर रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले एक महीने में तीन बार असम का दौरा किया है, लेकिन इन मुद्दों पर एक शब्द भी नहीं बोला। शिवसागर ज़िले के जेरंगा पोथार में एक रैली में उन्होंने असमिया मूल के एक लाख से अधिक लोगों के बीच भूमि का पट्टा वितरित किया, सोनितपुर ज़िले के ढेकियाजुली में दो नए मेडिकल कॉलेजों की आधारशिला रखी और धेमाजी ज़िले के सिलापाथर में एक इंजीनियरिंग कॉलेज का उद्घाटन किया।
सिलापोथार की रैली में लाखों लोगों की उपस्थिति में, प्रधानमंत्री ने असम को दोहरे इंजन विकास राज्य के रूप में वर्णित किया, जबकि एक बार भी बाढ़ की समस्या का उल्लेख नहीं किया। उल्लेखनीय है कि धेमाजी बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित ज़िला है और विकास में पिछड़ गया है।
ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष दीपक कुमार नाथ और महासचिव शंकर ज्योति बरुवा का दावा है कि प्रधानमंत्री असम के लोगों को धोखा दे रहे हैं। उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव से पहले वादा किया था कि बीजेपी के सत्ता में आते ही अवैध प्रवासियों को हटा दिया जाएगा। लेकिन हुआ इसके विपरीत।
बीजेपी की सरकार ने राज्य में मुसलिमों को छोड़कर सभी ग़ैर-असमिया लोगों को बसाने की सुविधा देने वाले विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम को पारित किया। असम में क़ानून के ख़िलाफ़ कड़ा विरोध और आक्रोश पैदा हो गया है।
केंद्र सरकार ने असम समझौते की धारा 6 को लागू करने और इस पर विचार करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का वादा किया। समिति ने अपनी सिफारिशें प्रस्तुत कर दी हैं, लेकिन अब उन्हें स्थगित किया जा रहा है। नवगठित असम जातीय परिषद और राइजर दल इन मुद्दों पर मतदाताओं के पास जा रहे हैं।
राज्य के स्वास्थ्य और शिक्षा मंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने हाल ही में कहा कि असम समझौते की धारा 6 पर गठित समिति की कई सिफारिशें संवैधानिक दायरे से परे हैं, इसलिए इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। आसू अध्यक्ष का मानना है कि राज्य को विकसित किया जाना चाहिए, अच्छी सड़कों, अच्छे अस्पतालों और अच्छे कॉलेजों की आवश्यकता है, लेकिन अगर असम के मूल लोग नहीं रहेंगे तो विकास का क्या मतलब होगा। इसलिए, केंद्र और राज्य सरकारें मूल मुद्दे से भाग नहीं सकती हैं।
नाथ के दावों में कुछ दम है। असम सरकार ने केवल उन स्थानीय लोगों को पट्टे पर देने का वादा किया है जिस भूमि पर वे दशकों से बसे हुए हैं। इसके अलावा, एक भी मुद्दे का समाधान नहीं किया गया है।
असम में, विशेषकर, ऊपरी असम में बीजेपी को सत्ता में लाने में चाय बागान श्रमिकों ने बड़ी भूमिका निभाई। बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में चाय मज़दूरों को एसटी का दर्जा देने का वादा किया था, जो उनकी दशकों पुरानी मांग है। राज्य की छह जनजातियों को एसटी का दर्जा देने का वादा किया गया था। लेकिन इस दिशा में कोई क़दम नहीं उठाया गया है। इसके बजाय सभी सरकार ने इन आदिवासियों के लिए विभिन्न स्वायत्त परिषदों का गठन किया है। लेकिन इन परिषदों के पास न तो संवैधानिक अधिकार है और न ही उनके लोगों के कल्याण के लिए पर्याप्त धन है।
वीडियो में देखिए, असम चुनावों पर आशुतोष की बात...
बराक घाटी
बीजेपी ने चुनाव से ठीक पहले बराक घाटी के लोगों को ख़ुश करने के लिए सिलचर में एक लघु सचिवालय स्थापित करने की भी घोषणा की है। बराक घाटी के विकास के लिए बड़े वादे किए गए थे, लेकिन वे कभी पूरे नहीं हुए।
वास्तव में बीजेपी मौलाना बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व वाले एआईयूडीएफ़ के साथ-साथ दो नए क्षेत्रीय दलों के उदय के साथ कांग्रेस पार्टी के गठबंधन पर चिंतित है।
कांग्रेस गठबंधन बीजेपी के लिए बराक घाटी और निचले और मध्य असम में एक बड़ी चुनौती बन गया है, जबकि ऊपरी असम में नए क्षेत्रीय दलों का प्रभाव है।
बीजेपी शायद पीएम नरेंद्र मोदी की कथित लोकप्रियता को दोहराना चाहती है और इसलिए पीएम की राज्य की लगातार यात्राएँ हो रही हैं। यह नई घोषणाओं, उद्घाटन और शिलान्यास आदि की मदद से मूल मुद्दे से मतदाताओं का ध्यान हटाना चाहती है।
सरकार मैट्रिक पास करने वाली छात्राओं को स्कूटी दे रही है, किसानों को मुफ्त में कृषि उपकरण दिए जा रहे हैं और ग्रामीण महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को 50,000 रुपये दिए जा रहे हैं। राज्य भर में मुफ्त डॉल्स का वितरण चल रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार मृणाल तालुकदार ने एक कार्यक्रम में कहा कि राज्य में 30 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं ने सरकार की एक या दूसरी मुफ्त योजना से लाभ उठाया है।
तिनसुकिया की हीरा देवी ने कहा कि चुनाव में तोहफे देकर मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए एक नया चलन शुरू हुआ है। वह कहती हैं कि सड़कों में सुधार हुआ है लेकिन लोगों के पास ईंधन खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं जिनके दाम आकाश को छू रहे हैं। युवाओं को रोज़गार नहीं मिल रहा है, कोविड महामारी के बाद से स्थानीय उद्योग ख़राब स्थिति में हैं और बड़ी संख्या में कर्मचारियों का रोज़गार ख़त्म हो गया है। ऐसी स्थिति में, ब्रह्मपुत्र के पुलों और नए इंजीनियरिंग कॉलेजों का कोई क्या करेगा? वह मानती हैं कि जब तक मुख्य मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया जाएगा, तब तक चीजें नहीं बदलेंगी।
बीजेपी जब वोटरों को लुभा रही है तो उससे होड़ लेते हुए कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने 2 मार्च को असम की एक रैली में कहा कि अगर हमारी सरकार बनी तो कांग्रेस पार्टी असम के लोगों को पांच चीजों की गारंटी दे रही है। प्रियंका ने कहा कि गारंटी नंबर वन है कि हमारी सरकार होगी तो हम सीएए को यहाँ लागू नहीं होने देंगे। दूसरी गारंटी है कि बिजली के दो सौ यूनिट फ्री मिलेंगे यानी आपको 1400 रुपये की बचत होगी। तीसरी गारंटी है कि गृहिणी सम्मान के तौर पर महिलाओं को दो हजार रुपये प्रति महीने मिलेंगे। चौथी गारंटी चाय बागान की महिलाओं का वेतन 167 से बढ़ाकर 365 कर दिया जायेगा। पाँचवीं गारंटी यह है कि प्रदेश में पांच लाख सरकारी नौकरी क्रियेट की जायेगी।