+
झारखंड: बीजेपी-आजसू के बीच सीटों के बँटवारे पर तकरार!

झारखंड: बीजेपी-आजसू के बीच सीटों के बँटवारे पर तकरार!

राज्य में सरकार चला रही बीजेपी और ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) के बीच सीटों के बँटवारे का पेच सुलझता नहीं दिखाई दे रहा है।

झारखंड में विधानसभा चुनाव के एलान के साथ ही एक ओर जहां विपक्षी दलों ने महागठबंधन को मजबूत करने की पहल तेज कर दी है, वहीं राज्य में सरकार चला रही बीजेपी और ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) के बीच सीटों के बँटवारे का पेच सुलझता नहीं दिखाई दे रहा है। आजसू और बीजेपी के बीच नए समीकरण के तहत सीटों के बँटवारे का समझौता कैसे होगा, इस पर प्रश्नचिह्न लगा हुआ है। हालांकि झारखंड में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी मुख्यमंत्री ने अपना कार्यकाल पूरा किया हो। इस बात को लेकर सूबे के मुख्यमंत्री रघुबर दास उत्साहित हैं और वह 65 से ज़्यादा सीटें जीतने का दावा ठोक रहे हैं।

इधर, राजनीतिक हलकों में इस बात को लेकर अटकलों का बाज़ार गर्म होने लगा है कि आख़िर आजसू का क्या होगा। राज्य गठन के समय से ही एनडीए के साथ रहने वाली आजसू को इस बात की चिंता है कि इस बार के चुनाव में उसे कितनी सीटों पर समझौता करना होगा। क्योंकि आजसू की तरफ से बीजेपी के आला नेताओं के पास विधानसभा की जिन सीटों की लिस्ट भेजी गयी है, उसमें से कितनी सीटों पर आजसू को लड़ने का मौक़ा मिलेगा, इस पर मंथन जारी है। 

26 सीटों पर ठोकी दावेदारी 

आजसू से जुड़े सूत्रों के अनुसार, पार्टी ने 26 सीटों पर बूथ स्तरीय कमेटी (चूल्हा प्रमुख) बनाकर इन सीटों पर अपना दावा ठोका है। लेकिन इनमें से कई ऐसी सीटें हैं जिन पर पेच फंस सकता है। कई ऐसी सीटें हैं, जहां पिछले चुनाव में आजसू ने अपना प्रत्याशी उतारा था। इसके साथ-साथ हाल के दिनों में कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) और दूसरी पार्टियों को छोड़कर बीजेपी में आए नेता भी चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं और इस उम्मीद में हैं कि उन्हें बीजेपी से टिकट मिल जायेगा। 

पुरानी सहयोगी रही है आजसू 

वर्ष 2014 के चुनाव परिणाम के आधार पर झारखंड में एनडीए गठबंधन की बात की जाए तो बीजेपी के पास 37 सीटें हैं, जबकि पांच सीटें आजसू के पास हैं। पिछले चुनाव में बीजेपी बहुमत के जादुई आंकड़े (42 सीट) से दूर रह गई थी। लेकिन बाद में झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) से टूटकर छह विधायक बीजेपी में शामिल हो गए थे। 

कई सीटों पर फंसा है पेच

इस बार के चुनाव में आजसू जिन सीटों पर तैयारी कर रही है, उनमें ईचागढ़ की सीट बीजेपी के पास है। इस सीट पर आजसू के अध्यक्ष सुदेश महतो भी अपना भाग्य आजमाने के मूड में हैं। इधर, आजसू की पारंपरिक सीट लोहरदगा सीट पर कांग्रेस से बीजेपी में आये विधायक सुखदेव भगत टिकट माँग रहे हैं। मांडर सीट पर बीजेपी से गंगोत्री कुजूर विधायक हैं लेकिन आजसू ने भी यहां चुनाव लड़ने की तैयारी की है। 

चंदनकियारी सीट पर आजसू अपना प्रत्याशी उतारती रही है, लेकिन इस बार यहां से जेवीएम छोड़ बीजेपी में शामिल हुए विधायक अमर बावरी को टिकट मिल सकता है। सिंदरी विधानसभा पर भी आजसू ने तैयारी की है लेकिन इस सीट पर भी बीजेपी के फूलचंद मंडल विधायक हैं। इसके अलावा सिल्ली, तमाड़, मनोहरपुर, मंझगांव, बड़कागांव, मांडू, सिमरिया, रामगढ़, गोमिया डुमरी टुंडी और जुगसलाई से भी आजसू ने प्रत्याशी उतारने की तैयारी की है। लेकिन इनमें से कई सीटें ऐसी हैं, जिन पर टिकट बँटवारे के दौरान कलह हो सकती है। 

बीजेपी के प्रदेश महामंत्री दीपक प्रकाश का कहना है कि राज्य गठन के पहले से ही आजसू से उनका तालमेल है। ऐसे में दोनों पार्टी के आला नेता बैठकर तय करेंगे कि किस सीट पर किसका प्रत्याशी चुनाव लड़ेगा।

आजसू के प्रवक्ता डॉ. देवशरण भगत भी बीजेपी के प्रदेश महामंत्री दीपक प्रकाश की ही जैसी बात करते हैं, लेकिन वह यह भी कहते हैं कि उनकी पार्टी का जनाधार कई सीटों पर है और पूर्व के मुकाबले उनकी पार्टी के प्रत्याशी ज्यादा सीटों पर मैदान में दिखाई देंगे। हालांकि बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ ने एक बयान में इस बात का जिक्र किया था कि पिछली बार के चुनाव में जितनी सीटों पर आजसू के प्रत्याशी खड़े थे उतनी ही सीटों पर उन्हें दोबारा मौका दिया जा सकता है। 

रघुबर दास का कार्यकाल पूरा होने के बाद राज्य सरकार की उपलब्धियों और कमी दोनों पर वोटर चर्चा कर रहे हैं। सरकार की उपलब्धियों की बात की जाए तो इस सरकार ने विकास को लेकर कई ऐसे कार्य किए हैं, जिसे लेकर वोटर मंथन कर रहे हैं। लेकिन कई कमियां भी हैं जो वोटरों को इस बात का आकलन करने के लिए मजबूर करेंगी कि किस पार्टी को वोट दिया जाये। 

रघुबर सरकार की उपलब्धियां

• राज्य गठन के बाद से ही लटकी स्थानीय नीति को लागू करना।

• राज्य के सभी क्षेत्रों मे बिजली मुहैया कराना।

• राज्य के गरीबों के लिए आवास उपलब्ध कराना।

• मोमेंटम झारखंड के माध्यम से स्थानीय लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना।

• बच्चियों के लिए लाड़ली लक्ष्मी योजना लागू करना।

• एक रुपये में महिलाओं के लिए रजिस्ट्री का प्रावधान

रघुबर सरकार की कमियां

• राज्य में नक्सलवाद जैसी समस्या का समाधान नहीं होना। 

• राज्य में मॉब लिंचिंग की घटनाओं का होना। 

• रोजगार के लिए पहले से चल रही फैक्ट्रियों का बंद होना।

• आंगनबाड़ी सेविकाओं और टीचरों का विवाद नहीं सुलझना।

• भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लग पाना।

• कुपोषण से बड़ी संख्या में बच्चों और महिलाओं का प्रभावित होना। 

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें