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बीजेपी घोषणापत्र से बेरोज़गारी गायब, राष्ट्रवाद पर ज़ोर

बीजेपी घोषणापत्र से बेरोज़गारी गायब, राष्ट्रवाद पर ज़ोर

भारतीय जनता पार्टी ने अपने संकल्प पत्र में यह साफ़ कर दिया है कि वह राष्ट्रवाद को चुनावी मुद्दा ही नहीं बनाएगी, उस पर पहले से अधिक आक्रामक रवैया भी अपनाएगी। 

भारतीय जनता पार्टी ने यह बिल्कुल साफ़ कर दिया है कि वह अगला चुनाव राष्ट्रवाद के मुद्दे पर ही लड़ने जा रही है। हालाँकि पार्टी ने पहले ही इसे मुद्दा बना लिया था और पुलवामा आतंकवादी हमला और बालाकोट हवाई हमले को लेकर वह आक्रामक भी थी, लेकिन सोमवार को जारी घोषणा पत्र में उसने इसे आधिकारिक रूप दे दिया। पार्टी ने अपने संकल्प पत्र में राष्ट्रवाद को शामिल तो किया ही है, उस पर काफ़ी आक्रामक रूप से बात भी की है। 

'राष्ट्रवाद हमारी प्रेरणा है' 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकल्प पत्र जारी किए जाने के बाद बिना लाग लपेट कह दिया, 'राष्ट्रवाद हमारी प्रेरणा है।' हालाँकि उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि इस राष्ट्रवाद का क्या मतलब है, लेकिन उनकी पार्टी के दूसरे नेताओं की बातों से यह साफ़ हो जाता है। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि राष्ट्रवाद पर किसी तरह का समझौता नहीं किया जाएगा। उन्होंने इसे आतंकवाद से जोड़ते हुए कहा कि आतंकवाद के मुद्दे पर बीजेपी की 'ज़ीरो टॉलरेंस' की नीति है और यह नीति बरक़रार रहेगी। उनके इस बयान से राष्ट्रवाद की बातें भी साफ़ हो जाती हैं। 

बीजेपी के कहने का मतलब यह है कि आतंकवाद के मुद्दे पर वह कड़ा रुख अपनाएगी, एक 'मस्क्यूलर स्टेट' की अवधारणा को मजबूती से लागू करेगी और इसे चुनौती देने वालो के साथ कड़ाई से निपटेगी।

हालाँकि बीजेपी के किसी नेता ने पाकिस्तान का नाम नहीं लिया, पर जिस तरह से प्रधानमंत्री ख़ुद लगातार पाकिस्तान का नाम लेकर हमले करते रहे हैं और विपक्ष को घेरते रहे हैं, उससे स्थिति बिल्कुल साफ़ है। इसके पहले जन सभाओं में मोदी ने साफ़ कहा है कि उनकी सरकार ने पाकिस्तान के अंदर घुस कर मारा है, जो पहले की सरकार नहीं कर पाती थीं। इसके साथ ही बीजेपी नेताओं ने दो सर्जिकल स्ट्राइक की बात की और इसके लिए मोदी की पीठ थपथपाई। ये दो सर्जिकल स्ट्राइक साल 2016 में नियंत्रण रेखा के पास आतंकवादी ठिकानों पर हुआ सैनिक हमला और पाकिस्तान के अंदर ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के बालाकोट में मौजूद जैश-ए-मुहम्मद के कैंप पर हुआ हालिया हवाई हमला है। बातें साफ़ हैं। 

बीजेपी की आक्रामकता और कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करने की नीयत वित्त मंत्री अरुण जेटली की बातों से भी साफ़ है। उन्होंने अपनी बात की शुरुआत ही कांग्रेस पर नाम लिए बग़ैर हमला करने और तंज कसने से की। 

यह संकल्प पत्र टुकड़े-टुकड़े गैंग की मानसिकता रखने वालों ने तैयार नहीं किया है। इसे राष्ट्रवाद की मानसिकता रखने वालों ने बनाया है।


अरुण जेटली, वित्त मंत्री

धारा 350-ए ख़त्म करने की कोशिश

सत्तारूढ़ दल ने अपने संकल्प पत्र में यह साफ़ कहा कि वह धारा 35-ए को ख़त्म करने की भरपूर कोशिश करेगी। इस धारा के तहत यह प्रावधान है कि बाहर का कोई आदमी जम्मू-कश्मीर का स्थायी निवासी नहीं बन सकता है। इस मुद्दे पर बीजेपी पहले भी आक्रामक रही है। बीते दिनों वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने ब्लॉग में इसका ज़िक्र किया था और इसे ख़त्म करने की बात कही थी। उसके तुरन्त बाद राज्य के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों महबूबा मुफ़्ती और उमर अब्दुल्ला ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया जताई थी। उमर अब्दुल्ला की टिप्पणी के बाद ख़ुद प्रधानमंत्री बहस में कूद पड़े थे और कांग्रेस से पूछा था कि क्या वह देश में दो प्रधानमंत्री की व्यवस्था लागू करवाना चाहती है। ऐसे में धारा 35-ए पर कड़ा रवैया बताता है कि बीजेपी इस भावनात्मक मुद्दे पर लोगों को भड़का कर वोट पाना चाहती है। 

अफ़्सपा, राजद्रोह

बीजेपी नेताओं ने राजद्रोह और अफ़्सपा यानी आर्म्ड फ़ोर्सेेज़ स्पेशल पावर्स एक्ट को सख़्ती से लागू करने की बात की और यह साफ़ कहा कि इसमें संशोधन करने या इसे थोड़ा भी लचीला बनाने की कोई योजना नहीं है। इस मुद्दे पर उसकी कांग्रेस से पहले ही झड़प हो चुकी है क्योंकि कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में अफ़्सपा पर पुनर्विचार करने और राजद्रोह के क़ानून को ख़त्म करने की बात कही थी। 

त्रिपुरा और मेघालय के अलावा असम व मिज़ोरम के चुनिंदा इलाक़ों से पहले ही अफ़्सपा हटा लेने वाली बीजेपी का इस मुद्दे पर यह कहना कि इस नहीं हटाया जाएगा, उसकी चुनावी रणनीति और अपनी छवि से बंधे होने की विवशता बताती है।

इतना ही नहीं, उसने जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ क़रार करते हुए उसे कहा था कि राज्य से अफ़्सपा हटाने पर विचार किया जा सकता है। संकल्प पत्र में अफ़्सपा को हटाने से इनकार कर बीजेपी ने स्पष्ट कर दिया है कि वह इस मुद्दे पर सख़्त रवैया अपनाने को तैयार है। 

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राम मंदिर पर सभी विकल्प

सत्तारूढ़ दल साढ़े चार साल तक जिस राम मंदिर के मुद्दे पर चुप रही और अंतिम समय ही उसकी चर्चा की, प्रधानमंत्री तक ने कह दिया था कि न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही वह कुछ करेंगे, उसी मुद्दे पर बीजेपी ने अपने तेवर तीखे कर लिए हैं। संकल्प पत्र में साफ़ कहा गया है कि अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए हर विकल्प पर विचार किया जाएगा। बीजेपी यह संकेत देना चाहती है कि वह क़ानूनी प्रक्रिया भी अपना सकती है, यानी राम मंदिर बनने से जुड़े विषय पर संसद में विधेयक लाकर उसे पारित करवा सकती है। हालांकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस पर बड़ी योजना बनाई थी, पर इससे जुड़े कार्यक्रमों में लोगों के नहीं आने और तमाम कार्यक्रमों के बुरी तरह पिटने के बाद संघ ने इस पर चुप्पी साध ली और पार्टी ने भी पैर खींच लिए थे। लेकिन यह उसका मुख्य बिन्दु है और इस पर समझौता उसके लिए घातक हो सकता है, इसलिए पार्टी ने कहा है कि हर विकल्प पर विचार किया जाएगा। 

तीन तलाक़ पर आक्रामक

सत्तारूढ़ दल ने तीन तलाक़ के मुद्दे पर लोकसभा में विधेयक पेश करने में काफ़ी हड़बड़ी दिखाई थी और इसे राज्यसभा में अंतिम दिन भी पेश नहीं किया था। एक तह उसे 'लैप्स' हो जाने दिया था क्योंकि राज्यसभा में उसके पास विधेयक पास कराने लायक वोट नहीं थे। हालाँकि कांग्रेस कुछ शर्तों के साथ उसे समर्थन देने को तैयार थी, पर बीजेपी को वे शर्तें मंज़ूर नहीं थीं। लेकिन संकल्प पत्र में पार्टी ने इस पर भी अपने तेवर तीखे ही रखे और कहा कि वह इसे हर सूरत में  पारित करवाएगी। 

बीजेपी तीन तलाक़ विधेयक के ज़रिए मुसलमानों के बजाय कट्टर हिन्दुओं को संकेत देना चाहती है। यही वजह है कि उसने इसे राज्यसभा में तो लैप्स हो जाने दिया, पर संकल्प पत्र में इस पर आक्रामक हो गई।

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किसान पर कांग्रेस को जवाब

कांग्रेस पार्टी ने अपने घोषणापत्र में जिस तरह किसानों के हितों की बात की थी और सबसे ग़रीब लोगों को सालाना 72,000 रुपये तक देने का एलान किया था, उसके जवाब में बीजेपी को कुछ न कुछ करना ही था। उसकी काट निकालने के लिए बीजेपी ने किसानों से जुड़ी कई घोषणाएँ की हैं। हालाँकि इनमें से ज़्यादातर घोषणाओं को लागू करना किसी भी सरकार के लिए मुश्किल होगा, पर बीजेपी ने इन घोषणाओं से यह साफ़ कर दिया है कि वह कांग्रेस को जवाब देना चाहती है। इनमें से कुछ बातें कांग्रेस की घोषणा से भी आगे की हैं, जैसे किसानों को 60 साल की उम्र के बाद पेंशन, एक लाख रुपये तक के कर्ज पर कोई ब्याज नहीं, गाँवों के विकास पर 25 लाख करोड़ रुपये का खर्च वगैरह। 

दरअसल किसानों से जुड़ी घोषणाएँ लागू करना भले ही मुश्किल हो, पर इसके जरिए बीजेपी कांग्रेस की ग़रीब-हितैषी और किसान-हितैषी छवि को तोड़ कर ख़ुद को उनकी अधिक हितैषी साबित करना चाहती है।

प्रधानमंत्री मोदी ने युवकों को भविष्य का भारत बनाने वाला बताया और उनके लिए रोज़गार की बात भी कही। पर वह रोज़गार पैदा करने के बारे में गोल मोल बातें ही कह कर रह गए। उन्होंने यह तो कहा कि 100 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा और इससे रोज़गार पैदा होंगे, पर उन्होंने यह नहीं कहा कि कितने लोगों को रोज़गार मिलेगा। 

साल 2014 के चुनावों में हर साल 2 करोड़ रोज़गार की बात कह कर बीजेपी फँस गई थी और उस पर उसे बेहद रक्षात्मक रवैया अपनाना पड़ा था। लिहाज़ा, उन्होंने इस बार कोई संख्या नहीं बताई। सिर्फ़ रोज़गार सृजन की बात कही है।

यह तो साफ़ है कि बीजेपी जहाँ उग्र हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दो को भुनाना चाहती है, वहीं वह आम जनता से जुड़े मुद्दों को भी नहीं छोड़ना चाहती है। इसलिए उसने एक तरह से मिलाजुला घोषणापत्र बनाया है, पर इसमें राष्ट्रवाद को तरजीह दी जाएगी, यह भी स्पष्ट है। 

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