बिलकीस के पति रेप पीड़ितों की आवाज बने
बिलकीस बानो के पति याकूब पटेल का कहना है कि मैं चाहता हूं कि भारत के सभी पति मेरे जैसे हों जो समाज के दबाव के आगे न झुकें। बल्कि अपनी पत्नियों के साथ खड़े हों, जो गैंगरेप जैसे क्रूर अपराध की शिकार हुई हैं। याकूब पटेल का यह बयान तीन साल पहले का है। 2019 में द सिटिजन के लिए पत्रकार असद अशरफ ने उनका इंटरव्यू लिया था, तब याकूब ने ये बातें कही थीं। आज भी याकूब बिलकीस के साथ खड़े हैं, जिनके साथ सिस्टम ने इंसाफ नहीं किया। बिलकीस बानो गैंगरेप के 11 दोषी आराम से जेल से बाहर आ चुके हैं।
याकूब ने असद अशरफ से और क्या कहा था। आइए जानते हैं। 45 साल के याकूब पिछले 20 वर्षों से इंसाफ के लिए बिलकिस के संघर्ष के साथ हैं। याकूब का बिलकीस के साथ खड़ा होना बेमिसाल है, जो सामान्य पुरुष मानसिकता के विपरीत है, जो पितृसत्तात्मक धारणाओं और सामाजिक दबाव के प्रति संवेदनशील है।
याकूब न केवल एक साथी के रूप में, बल्कि एक साथ संघर्ष कर रहे साथियों के रूप में इंसाफ के लिए अपने संघर्ष में बिलकिस के साथ खड़े हैं। दोनों की शादी 1998 में गुजरात के गोधरा जिले के उनके गांव में हुई थी। उन्होंने साथ रहने और एक खुशहाल पारिवारिक जीवन जीने का संकल्प लिया। उनका कहना है कि 2002 तक पूरे गुजरात में हिंसा होने तक वे एक बच्चे के साथ एक आदर्श, खुशहाल कपल थे। याकूब ने कहा कि हम एक खुशहाल परिवार थे, हमारा एक बच्चा था और बिलकिस एक और बच्चे की उम्मीद कर रही थी। लेकिन फिर एक तूफान आया जिसने हमारे जीवन को तबाह कर दिया।
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2002 की सर्दियों में हुई हिंसा ने हमारे कई सपने छीन लिए। इसने हमारे दिमाग पर इतना गहरा निशान छोड़ दिया कि हम आज भी इसके दाग के साथ जी रहे हैं।
-याकूब पटेल, बिलकीस बानो के पति
याकूब दुख के साथ याद करते हैं कि भयानक हिंसा के बीच बिल्किस से संपर्क टूट गया था। याकूब बताते हैं कि 3 मार्च, 2002 को उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था, उस समय वह अपने गांव रंधिकपुर से भागने की कोशिश कर रही थीं। जब वाहन पर हमला किया गया तो परिवार 17 लोगों के साथ एक ट्रक में सवार होकर भाग रहा था।
जय श्रीराम के नारे लगाते हुए भीड़ ने ट्रक में सवार 14 लोगों की हत्या कर दी। हम सब अपनी जान बचाने की कोशिश में इधर-उधर भाग रहे थे। बिलकिस पांच महीने की गर्भवती थी और हमारी एक और बेटी थी जिसका नाम सालेहा था। कसाइयों ने बच्चों को नहीं बख्शा। सालेहा का सिर पत्थर से कुचला गया। वह तीन साल की थी। उन्होंने बिलकिस को मरा समझकर छोड़ दिया।
याकूब ने बताया कि मेरा संपर्क उन लोगों से टूट चुका था। कई दिनों तक उनके बारे में कोई सूचना नहीं मिलने के बाद मुझे विश्वास हो गया कि वे मारे गए हैं। मैं खुद को समझाने लगा। लेकिन फिर मैंने अखबार में एक रिपोर्ट पढ़ी जिसमें बिलकिस नाम की एक महिला का जिक्र था जो एक राहत शिविर में रह रही थी। मैं तुरंत गोधरा के शिविर में पहुंचा और वहां अपनी पत्नी को पाया। मैंने उसे गले लगाया और वादा किया कि मैं उसे अकेले जीने और संघर्ष नहीं करने दूंगा, और आगामी लड़ाई में उसके साथ खड़ा रहूंगा।
मुझे खुशी है कि उस दिन के 17 साल (अब 20 साल) बाद मैं फिर से बिलकीस के साथ हूं। याकूब कहते हैं इसे मात्र परेशानी कहना इंसाफ के लिए उनकी लड़ाई को कम करके आंकना होगा।
शुरुआत में यह कपल एफआईआर दर्ज कराने के लिए दर-दर भटक रहा था। फिर उन्हें एक ऐसी व्यवस्था से लड़ना पड़ा जो अपराधियों को बचाने की कोशिश कर रही थी। याकूब आर्थिक रूप से संपन्न नहीं हैं लेकिन उन्होंने अपना संकल्प नहीं खोया। जब तक मामला चल रहा था तब तक वे सुरक्षित रहने के लिए घरों को शिफ्ट करते रहे।
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कभी-कभी मैं बस बैठकर सोचता था कि यह सब हमारे साथ क्यों हुआ। लेकिन बिलकीस को छोड़ने का सवाल मेरे दिमाग में कभी नहीं आया। ...मुझे नहीं लगता कि मैंने जो किया उसमें कुछ भी असाधारण है। मैं बस उस महिला के साथ खड़ा था जिसके साथ मैंने हमेशा साथ रहने का संकल्प लिया था। उसकी क्या गलती थी, जिससे मैं उसको छोड़ दूं। ऐसा करने वाला कोई भी आदमी कायर होगा, और शुक्र है कि मैं ऐसा नहीं हूं।
-याकूब पटेल, बिलकीस बानो के पति
वो कहते हैं मेरे पास अपना या अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए कोई नौकरी नहीं थी। मामले के तनाव और स्टेट मशीनरी की उदासीनता ने मेरे दुखों को और बढ़ा दिया। तब भी मैंने दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम किया और अपने परिवार को चलाने की कोशिश की। सिर्फ भावनात्मक रूप से ही नहीं, आर्थिक रूप से भी ये सारे साल मेरे लिए बर्बाद रहे।
याकूब कहते हैं कि उनकी बेटी बड़ी होकर वकील बने, वही बेटी जो बिलकीस के गर्भ में थी, जब भीड़ ने उनका गैंगरेप किया। यह एक नई शुरुआत है, क्योंकि हमारे पास जो निशान हैं, वे रहेंगे लेकिन हम उन्हें अब हमें प्रभावित नहीं होने देंगे। हमारे पास आगे एक जीवन है जिसका अब एक बड़ा उद्देश्य भी है: हमारे जैसे लड़ाई लड़ने वाले लोगों के साथ खड़ा होना। रेप पीड़ितों के साथ काम करने और अपने लिए एक खुशहाल परिवार बनाने के लिए।
बहरहाल, याकूब अब रेप पीड़ित महिलाओं की आवाज बन चुके हैं। वो ऐसी महिलाओं का केस लड़ने में, उन्हें वकील तलाशने में, मदद दिलाने में मदद करते हैं।