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सामूहिक बलात्कार, अत्याचार, नाइंसाफ़ी से लड़ने वाली बिलकीस बानो

सामूहिक बलात्कार, अत्याचार, नाइंसाफ़ी से लड़ने वाली बिलकीस बानो

सामूहिक दुष्कर्म की पीड़िता बिलकीस बानो ने तमाम दुख झेलने के बावजूद भी मानवीयता नहीं छोड़ी है। बिलकीस ने कहा है कि उन्हें मिली रक़म से वह पीड़ित महिलाओं की मदद करेंगी।

‘मैंने अपना वोट दिया और मेरा वोट देश की एकता के लिए है। मैं देश की लोकतांत्रिक और चुनाव व्यवस्था में पूरा यक़ीन रखती हूँ।’ इसे पढ़कर आपको लगेगा कि यह बात तो कोई भी देश का आम नागरिक कहता है, इसमें बड़ी बात क्या है। लेकिन जब आपको पता चलेगा कि यह बिलकीस बानो ने कहा है तो उन लोगों को बिलकीस बानो पर ज़रूर गर्व होगा जो जानते हैं कि उस महिला के साथ किस हद तक अत्याचार हुए और उसे इंसाफ़ पाने में 17 साल का लंबा समय लग गया। बिलकीस 17 साल बाद इस बार अपना वोट दे सकीं। 

बिलकीस बानो साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान सामूहिक दुष्कर्म की शिकार हुई थीं। बिलकीस बानो के साथ हुआ सामूहिक दुष्कर्म गुजरात दंगों का सबसे भयावह मामला था और मानवता को कलंकित करने वाला था।

गोधरा कांड के बाद गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा फैल गई थी और हजारों मुसलिम परिवार सुरक्षित स्थानों की तलाश में अपना घर छोड़कर जा रहे थे। इसमें से ही एक बिलकीस बानो का परिवार था। तभी दाहोद जिले के रणधीकपुर गाँव में उन्मादी भीड़ ने 3 मार्च 2002 को बिलकीस बानो के परिवार पर हमला कर दिया था। 

बिलकीस की उम्र उस समय सिर्फ़ 21 साल थी और वह गर्भवती थीं। लेकिन दंगाइयों ने उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया और उनके परिवार के कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। इसमें बिलकीस बानो की 2 साल की बच्ची भी थी। इस नृशंस हत्याकांड में बिलकीस किसी तरह बच गईं और 17 साल तक क़ानूनी लड़ाई लड़ती रहीं। 

बिलकीस अपने हक़ के लिए तमाम अदालतों से लेकर मानवाधिकार आयोग तक के चक्कर लगाती रहीं। इस दौरान बिलकीस के परिवार वालों को आरोपियों और दंगाइयों की ओर से लगातार धमकियाँ मिलती रहीं।

2 साल में 20 बार बदला घर 

बिलक़ीस, क़ातिलों और दरिंदों से बचने के लिए परिवार के साथ यहाँ से वहाँ भागती रहीं। इस कारण बिलकीस के परिजनों को दो साल में 20 बार अपना घर बदलना पड़ा। धमकियों से परेशान होकर बिलकीस ने सुप्रीम कोर्ट से अपने मामले को गुजरात से बाहर किसी दूसरे राज्य में भेजने की गुहार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने केस को अगस्त 2004 में मुंबई ट्रांसफ़र कर दिया।

लेकिन 17 साल तक चली इस लड़ाई में कई अच्छे लोग भी मिले जिन्होंने अहमदाबाद, बड़ौदा, मुंबई, लखनऊ, दिल्ली में बिलकीस के परिवार को रहने के लिए ठिकाना दिया। ये वे लोग थे, जिन्होंने बिलक़ीस के इंसाफ के लिए लड़ने के उसके हौसले को ज़िंदा रखा। बिलक़ीस बानो को इस लड़ाई में उसके शौहर याक़ूब ने भी उसका साथ दिया। बिलकीस बानो की चार साल की बच्ची भी है। 

सुप्रीम कोर्ट ने बीती 23 अप्रैल को 2002 में गोधरा दंगों के मामले में सुनवाई करते हुए गुजरात सरकार को आदेश दिया है कि वह दंगा पीड़ित बिलकीस बानो को 50 लाख रुपये मुआवजा, सरकारी नौकरी और आवास मुहैया कराए। 

तमाम अत्याचारों और परेशानियों से गुजरने के बावजूद बिलक़ीस ने मानवीयता नहीं छोड़ी है। बिलकीस ने कहा है कि वह यह पूरी रक़म अपने लिए नहीं रखेंगी और मुआवज़े का एक हिस्सा यौन हिंसा की शिकार महिलाओं और उनके बच्चों के लिए दान करना चाहती हैं।

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