अपने नेताओं के बयानों के कारण राष्ट्रीय फलक पर मुसीबतों से जूझ रही कांग्रेस बिहार में अपने सहयोगी दल आरजेडी के सामने अड़ती दिख रही है। बिहार में दो सीटों- कुशेश्वर आस्थान और तारापुर सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए आरजेडी के बाद कांग्रेस ने भी उम्मीदवार खड़े कर दिए हैं।
दोनों सीटों पर 30 अक्टूबर को उपचुनाव होना है। आरजेडी की ओर से दोनों सीटों पर उम्मीदवार खड़े करने पर कांग्रेस ने नाराज़गी जताई थी।
कांग्रेस ने पहले ही एलान किया था कि कुशेश्वर आस्थान सीट पर वह चुनाव लड़ेगी। उसका कहना था कि 2020 के विधानसभा चुनाव में यह सीट महागठबंधन के सीट बंटवारे में उसके खाते में गई थी।
कांग्रेस ने आरजेडी को अल्टीमेटम दिया था कि वह अगर सोमवार रात तक कुशेश्वर आस्थान सीट पर अपना उम्मीदवार नहीं हटाएगी तो वह दोनों सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार देगी और उसने ऐसा ही किया।
कन्हैया कुमार फ़ैक्टर?
दोनों दलों के बीच हुई इस खटपट को जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार के कांग्रेस में शामिल होने से भी जोड़कर देखा जा रहा है। राजनीतिक गलियारों में इस तरह की चर्चा है कि कन्हैया के कांग्रेस में शामिल होने से आरजेडी ख़ुश नहीं है।
निशाने पर रही थी कांग्रेस
बिहार विधानसभा चुनाव में ख़राब प्रदर्शन को लेकर महागठबंधन में शामिल आरजेडी और वाम दलों ने कांग्रेस पर निशाना साधा था। कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे सिर्फ़ 19 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि वाम दलों ने 29 सीटों पर चुनाव लड़कर 16 सीटें झटक ली थी। तब कांग्रेस की इस बात के लिए ख़ूब आलोचना हुई थी कि उसके ख़राब प्रदर्शन के कारण ही बिहार में बीजेपी-जेडीयू की सरकार बन गई।
जुदा होंगी राहें?
कांग्रेस के पास ताज़ा हालात में आरजेडी,, एनसीपी, डीएमके जैसे ग़िने-चुने बड़े सहयोगी दल हैं। एनसीपी के साथ उसके रिश्ते बहुत अच्छे नहीं हैं जबकि आरजेडी के साथ ये ताज़ा खटपट अगर आगे बढ़ी तो दोनों दल अपनी राहें जुदा कर सकते हैं। हाल ही में कांग्रेस ने असम में अपने सहयोगी दल ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के साथ गठबंधन तोड़ लिया था।
अगर कांग्रेस और आरजेडी की राहें जुदा होती हैं तो यह कांग्रेस के भविष्य के साथ ही एंटी बीजेपी फ्रंट की जो कवायद चल रही है, उसके लिए भी बेहतर नहीं होगा। क्योंकि वैसी सूरत में इस फ्रंट में आरजेडी और कांग्रेस दोनों साथ रहेंगे, यह कहा नहीं जा सकता।
हालांकि यह सिर्फ़ उपचुनाव का ही मामला है लेकिन कांग्रेस राष्ट्रीय दल होने के नाते अपने सहयोगियों के सामने ज़्यादा झुकने के लिए तैयार नहीं दिखती।
बिहार कांग्रेस का तर्क है कि उपचुनाव वाली दो में से एक सीट उसे दी जानी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया। कांग्रेस नेताओं ने कहा था कि आरजेडी ने इस मामले में गठबंधन धर्म का पालन नहीं किया।
ऐसी सूरत में जब कांग्रेस और आरजेडी, एक-दूसरे के ख़िलाफ़ लड़ेंगे तो निश्चित तौर पर इसका फ़ायदा बीजेपी-जेडीयू को होगा।