प्रशांत किशोर के बाद अब आरसीपी सिंह ने भी नयी पार्टी बना ली। दोनों ही नेता अलग-अलग समय पर बीजेपी और जेडीयू के लिए काम कर चुके हैं। दोनों ही नेता जब-जब बीजेपी से जुड़े थे तब भी राज्य में बीजेपी की अपने दम पर बहुमत की सरकार नहीं बन सकी थी। वैसे, बीजेपी की लालसा तो यही लगती रही है कि उसको नीतीश कुमार के सहयोग की ज़रूरत नहीं पड़े, और यह बात जब तब बीजेपी के नेताओं की जुबान पर आ भी जाती है। लेकिन दोनों ही नेता अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं। तो क्या वे राज्य के चुनाव में बड़ा उलटफेर करने में सक्षम होंगे?
प्रशांत किशोर और आरसीपी सिंह अगले साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में कितना असर डाल पाएँगे, इसका आकलन करने से पहले यह जान लें कि आख़िर दोनों नेताओं ने हाल में क्या बड़े फ़ैसले लिए हैं। जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार से नाराज होने के बाद कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा देने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह ने गुरुवार को नई पार्टी 'आप सबकी आवाज' का गठन किया।
आरसीपी सिंह ने कहा कि उन्होंने पार्टी की शुरुआत के लिए यह दिन इसलिए चुना क्योंकि दिवाली के अलावा यह सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती भी थी। संयोग से पटेल को शक्तिशाली ओबीसी समुदाय कुर्मी द्वारा एक सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में देखा जाता है। इसी जाति से नीतीश कुमार और आरसीपी सिंह दोनों आते हैं। आरसीपी ने जयंती को बड़े पैमाने पर मनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया।
नौकरशाह से राजनेता बने आरसीपी सिंह ने किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया। उन्होंने जेडीयू के साथ अपने संबंधों पर बात नहीं की। इस पार्टी का वह कभी नेतृत्व कर चुके थे लेकिन उन्होंने कथित अपमान के साथ छोड़ दिया था। वह एक साल पहले बीजपी में शामिल हुए थे, लेकिन हाशिए पर चले गए। और अब इसी बीच उन्होंने नयी पार्टी बनायी है।
उन्होंने यह साफ़ किया कि उनकी पार्टी अगले साल बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए उत्सुक है और उसके पास पहले से ही 243 सीटों में से 140 के लिए संभावित उम्मीदवार हैं।
इससे पहले प्रशांत किशोर ने 2 अक्टूबर को गांधी जयंती पर जन सुराज अभियान को राजनीतिक पार्टी बना दिया। उन्होंने अपनी पार्टी का नाम 'जन सुराज पार्टी' रखा है।
बीजेपी के लिए चुनावी रणनीति बनाने से राजनीति में करियर शुरू करने वाले प्रशांत किशोर ने बाद में कई राजनीतिक दलों के चुनावी अभियान के लिए काम किया। इसमें नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू भी शामिल थी। बाद में तो प्रशांत किशोर जेडीयू में औपचारिक रूप से शामिल भी हो गए, लेकिन खटपट की ख़बरों के बाद वह अलग हो गए। अब उन्होंने नयी पार्टी बनाई है।
प्रशांत किशोर के निशाने पर कौन हैं इसका पता उनकी जन सुराज यात्रा से भी चलता है। गांधी जयंती के दिन पार्टी की शुरुआत और गांधी के विचारों का बार-बार ज़िक्र से यह पता चलता है कि किन मतदाताओं में वह पैठ बनाना चाहते हैं। वह तेजस्वी पर जिस तरह से तीखे हमले करते रहे हैं, उससे भी उनकी रणनीति समझी जा सकती है। हाल ही में प्रशांत ने तेजस्वी यादव की शैक्षणिक योग्यता पर सवाल उठाते हुए कहा कि विशेषाधिकार वाले परिवार से आने के बावजूद वह 10वीं कक्षा पास करने में विफल रहे। प्रशांत ने कहा, 'एक 9वीं फेल बिहार के विकास का रास्ता दिखा रहा है। वह जीडीपी और जीडीपी वृद्धि के बीच अंतर नहीं जानते हैं और वह बताएंगे कि बिहार कैसे सुधरेगा?' उन्होंने तर्क दिया कि पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव का बेटा और पारिवारिक संबंधों के कारण वह आरजेडी में नेता हैं।
प्रशांत किशोर एक तरफ़ तो तेजस्वी यादव पर हमले कर रहे हैं और दूसरी तरफ़ वह मुस्लिमों को लुभा रहे हैं। प्रशांत किशोर ने जन सुराज यात्रा के दौरान मुस्लिमों के साथ एक कार्यक्रम किया था। जन सुराज अभियान के शुरू में तो मुहिम गांव-गांव चलती रही, लेकिन हाल के कई कार्यक्रम पटना में हुए हैं।
जन सुराज के ऐसे ही एक कार्यक्रम 'राजनीति में मुसलमानों की भागीदारी' में प्रशांत किशोर ने बिहार विधानसभा चुनाव में कम से कम 40 मुसलमान उम्मीदवार उतारने की घोषणा की। प्रशांत किशोर के मुताबिक़ जन सुराज में 25 लोगों की एक कोर टीम बनाई जा रही है, और उसमें 4-5 मुस्लिम नेता भी होंगे।
प्रशांत किशोर का मुस्लिमों पर इतना जोर तब है जब बिहार में अल्पसंख्यक समुदाय की जनसंख्या क़रीब 17 फ़ीसदी है। इसमें भी मुस्लिमों को आरजेडी का वोट बैंक माना जाता है।
माना जाता है कि बिहार की राजनीति में एम वाई फैक्टर आरजेडी को सत्ता दिलाने या विपक्ष में बनाये रखने में अहम भूमिका निभाता है।
अब आरसीपी सिंह की रणनीति पर नज़र डालिए। आरसीपी फिलहाल न तो नीतीश कुमार पर कोई हमला कर रहे हैं, न ही बीजेपी के खिलाफ कटु शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि आरसीपी की नई पार्टी और उनके उम्मीदवारों से ज्यादा नुकसान नीतीश कुमार की पार्टी को ही होगा। वैसे भी आरसीपी की पकड़ उसी वर्ग में ज्यादा मानी जाती है जो एनडीए का परंपरागत समर्थक है।
हालाँकि, राजनीतिक पर्यवेक्षक इसकी अलग-अलग व्याख्या कर रहे हैं। एक वर्ग का मत है कि वे कुर्मी के बड़े नेता बनने की ख्वाहिश लिए हुए हैं और जाहिर तौर पर इसका नीतीश कुमार और उनकी पार्टी को नुक़सान हो सकता है। दूसरी व्याख्या यह है कि आरसीपी दरअसल भारतीय जनता पार्टी और नीतीश कुमार को अपना महत्व बताना चाहते हैं और हो सकता है चुनाव आते-आते दोनों के लिए सिरदर्द बन जाएं।
बहरहाल, अब इन दो दलों के असर को यदि जोड़कर देखा जाए तो इसका क्या नतीजा निकल सकता है, यह एकदम साफ़ है। एक तरफ़ प्रशांत किशोर की नज़र आरजेडी के वोट बैंक पर गड़ी लगती है तो दूसरी तरफ़ आरसीपी सिंह की नज़र मुख्य तौर पर नीतीश कुमार के वोट बैंक पर। अब ऐसे में यह समझना मुश्किल नहीं कि ऐसे हालात में कौन फायदे में रहेगा!