रमजान के आख़िरी जुमा पर नीतीश सरकार को क्यों याद आए मुसलमान?

04:51 pm Mar 28, 2025 | समी अहमद

बिहार में रमजान के आख़िरी जुमे (अलविदा की नमाज) के दिन जहां एक ओर मुस्लिम संगठनों ने काली पट्टी पहनने की अपील की थी वहीं सवेरे सवेरे हिंदी के प्रमुख अख़बारों में नीतीश कुमार सरकार का फुल पेज का विज्ञापन नज़र आया जिसमें अल्पसंख्यकों के लिए राज्य सरकार की योजनाओं का बखान किया गया था।

मुस्लिम संगठनों ने काली पट्टी लगाने की अपील केंद्र सरकार के वक्फ संशोधन बिल का विरोध करने के लिए की थी। इन संगठनों ने पटना में 26 मार्च को इस बिल के ख़िलाफ़ ज़बर्दस्त धरना दिया और नीतीश कुमार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि अगर नीतीश कुमार इसका विरोध नहीं करते तो सेक्युलर होने का उनका दावा निरर्थक है। धरना देने वाले संगठनों में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अलावा बिहार-झारखंड की प्रमुख धार्मिक संस्था इमारत-ए-रिया भी शामिल थी। इनके अलावा जमात-इस्लामी हिंद के प्रमुख सैयद सादतुल्लाह हुसैनी भी दिल्ली से इस धरना में शामिल होने पटना पहुंचे थे।

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने धरना स्थल पर पहुंचकर अपने संदेश में इन संगठनों को इस मुद्दे पर समर्थन का वादा किया।

इसके अलावा, भाकपा माले के विधायक महबूब आलम और आजाद समाज पार्टी के सांसद चंद्रशेखर ने भी मुस्लिम संगठनों के समर्थन में भाषण दिया। जन सुराज के प्रमुख प्रशांत किशोर भी इस धारणा में शामिल हुए। 

मुस्लिम संगठनों का कहना है कि क्योंकि केंद्र की मोदी सरकार नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी के सांसदों के समर्थन के बिना नहीं चल सकती इसलिए उन्हें चाहिए कि इस बिल का समर्थन न करें और मोदी सरकार को इस बात के लिए राजी करें कि वह इसे वापस ले। उन्होंने यह भी कहा कि अगर नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू ऐसा नहीं करते तो उन्हें मुसलमानों का समर्थन नहीं मिलेगा।

नीतीश कुमार के बारे में इतना स्पष्ट बयान आने के बाद जदयू के सीनियर लीडर और मंत्री विजय कुमार चौधरी ने डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी ने केंद्र सरकार को वक्फ बिल को लेकर मुसलमानों की चिताओं से आगाह किया है। लेकिन उन्होंने यह नहीं कहा कि नीतीश कुमार अपने सांसदों को इस बिल का विरोध करने को कहेंगे। 

इस समय नीतीश कुमार खुद तो इस मुद्दे पर कुछ नहीं बोल पा रहे हैं लेकिन उनके सीनियर लीडर यह जताने की कोशिश ज़रूर कर रहे हैं कि पिछले 20 सालों में नीतीश कुमार सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए बहुत काम किया है।

ऐसी ही कोशिशें की कड़ी में आज के हिंदी के प्रमुख अख़बारों में पूरे एक पेज का विज्ञापन छपा है जिसमें दावा किया गया है कि पिछले 20 सालों अल्पसंख्यक कल्याण विभाग का बजट 284 गुना बढ़ गया है। इस विज्ञापन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को मुस्लिम छात्राओं के साथ देखा जा सकता है जिन्होंने हिजाब लगा रखा है।

स्वतंत्र टीकाकारों का कहना है कि बजट में इजाफा केवल अल्पसंख्यक कल्याण विभाग में नहीं हुआ, बल्कि सभी विभागों में हुआ है। वह इस विज्ञापन में किए गए दावों पर भी सवाल उठाते हैं। जैसे कि इस विज्ञापन में उर्दू शिक्षा पर जोर देने का दावा किया गया है लेकिन उर्दू के विद्वानों का कहना है कि यह नीतीश कुमार की सरकार का केवल फरेब है। वह यह भी कहते हैं कि बजट के आकार के अनुपात में अल्पसंख्यक कल्याण का बजट बहुत कम है।

मुस्लिम संगठनों का कहना है कि इस समय बजट असली मुद्दा नहीं है बल्कि असली मुद्दा यह है कि वक्फ संशोधन बिल का नीतीश कुमार विरोध क्यों नहीं कर रहे। मुंगेर से नीतीश कुमार की पार्टी के सांसद और केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने लोकसभा में इस बिल का खुलकर समर्थन किया था और मुसलमानों की आपत्तियों को खारिज कर दिया था। इसके बाद मुस्लिम संगठनों ने नीतीश कुमार से मुलाकात की लेकिन उनकी ओर से उन्हें कोई आश्वासन नहीं मिला। जब इस बिल को संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी ने सौंप दिया तो उसके बाद भी मुस्लिम संगठनों ने नीतीश कुमार से मिलने की कोशिश की लेकिन आरोप है कि उन्हें उनसे मिलने नहीं दिया गया।

नीतीश कुमार पर आरोप है कि इस समय वह ऐसे नेताओं से घिरे हैं जो उन तक मुसलमानों के विरोध को नहीं पहुंचने दे रहे और भारतीय जनता पार्टी की नीतियों के क़रीब हैं। ऐसे में जदयू की ओर से डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की जा रही है और गुरुवार को पटना के हज भवन में जदयू की ओर से आयोजित इफ्तार पार्टी में नीतीश कुमार के लिए खूब नारे लगाए गए। 

जदयू के वरिष्ठ नेता विजय कुमार चौधरी लगातार यह दावा कर रहे हैं कि नीतीश कुमार को अल्पसंख्यकों यानी मुसलमान का भरपूर समर्थन मिल रहा है।

दूसरी ओर राजनीतिक टीकाकारों का मानना है कि इस मुद्दे पर जनता दल यूनाइटेड भारी दबाव में आ चुका है और मुसलमान को अपना हितैषी बनने में लगा हुआ है।

पिछले कुछ महीनों से नीतीश कुमार की सरकार अन्य मामलों में भी दबाव में है। नीतीश कुमार के स्वास्थ्य के बारे में लगातार गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं। पिछले दिनों राष्ट्रगान के समय नीतीश कुमार की अजीबोगरीब हरकत के बाद यह सवाल फिर से दोहराया गया। विपक्षी नेता यह भी पूछ रहे हैं कि इस समय नीतीश कुमार की सरकार कौन चला रहा है क्योंकि वह स्वस्थ नज़र नहीं आ रहे हैं। 

इसके अलावा बिहार में पिछले कई हफ्तों से अपराध की घटनाओं में ताबड़तोड़ इजाफे से भी नीतीश कुमार सरकार पर काफी दबाव बढ़ा है। आरा में तनिष्क शोरूम में लूटपाट की घटना दिनदहाड़े हुई। हत्याओं की ख़बर भी आम है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने दावा किया कि पिछले 20 सालों में 60 हजार से अधिक लोगों की बिहार में हत्या हो चुकी है। उन्होंने यह दावा नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के हवाले से किया लेकिन नीतीश सरकार ने इस दावे पर कोई ठोस जवाब नहीं दिया।

बिहार में जाति आधारित गणना के बाद आरक्षण नहीं बढ़ने को भी विपक्ष नीतीश कुमार सरकार के ख़िलाफ़ एक मुद्दा बना रहा है और इस मामले में सरकार दबाव में बताई जाती है। जातीय गणना के बाद सरकार ने आरक्षण बढ़ाने की जो घोषणा की थी वह अदालत से रुक गई है और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव इस मामले में नीतीश कुमार और भाजपा को दोषी ठहरा रहे हैं क्योंकि उनका कहना है कि अगर इस आरक्षण को नवीं अनुसूची में डाल दिया जाता तो यह मामला अदालत के हस्तक्षेप से ऊपर उठ जाता। 

इसके अलावा कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार इस समय ‘पलायन रोको, नौकरी दो’ पदयात्रा भी कर रहे हैं जिससे बिहार में पलायन की समस्या एक बार फिर चर्चा में है। नीतीश कुमार बिहार में सुशासन और न्याय के साथ विकास का दावा करते हैं लेकिन पलायन की समस्या बिहार में अब भी गंभीर बनी हुई है।