चाचा पशुपति पारस की बग़ावत के बाद एलजेपी में अकेले पड़ चुके चिराग पासवान अब मैदान में उतर आए हैं। सोमवार को पिता राम विलास पासवान की जयंती के मौक़े पर उन्होंने अपने पिता पर लिखी दो किताबों को दिल्ली में जनता के सामने रखा और उसके तुरंत बाद पहुंच गए कर्मभूमि बिहार।
चिराग जब पटना एयरपोर्ट पर पहुंचे तो वहां बड़ी संख्या में पार्टी के कार्यकर्ता बैंड-बाजों के साथ मौजूद थे। चिराग ने लोगों के बीच में पहुंचने के लिए आशीर्वाद यात्रा की शुरुआत की है। इस यात्रा को राम विलास पासवान की कर्मभूमि हाजीपुर से शुरू किया गया। इस यात्रा के जरिये चिराग की कोशिश अपने बग़ावती चाचा और बाक़ी सांसदों को अपनी सियासी ताक़त दिखाने की है।
यात्रा में उमड़ी भीड़
पटना एयरपोर्ट से लेकर हाज़ीपुर तक के 20 किमी. के रास्ते में उमड़ी भीड़ इस बात को बताती है कि भले ही एलजेपी में टूट हो गयी हो लेकिन चिराग के साथ अभी भी कार्यकर्ताओं की कोई कमी नहीं है। हाज़ीपुर लोकसभा सीट के सुल्तानपुर में आयोजित कार्यक्रम में चिराग ने कहा कि अपने लोगों ने ही उनकी पीठ में खंजर घोंपा है। चिराग ने इस मौक़े पर कहा कि वे अपने पिता की राजनीतिक विचारधारा पर ही चलेंगे। चिराग की यह यात्रा बिहार के सभी जिलों से होकर जाएगी।
पटना से लेकर हाज़ीपुर में कई जगहों पर जिस तरह चिराग के समर्थन में कार्यकर्ता उमड़े हैं, इसने एक बार के लिए उनके बग़ावती चाचा पशुपति पारस की नींद ज़रूर उड़ा दी होगी।
दूसरी ओर पशुपति पारस के गुट के लोगों ने भी रामविलास पासवान की जयंती मनाई और यह दिखाने की कोशिश की कि उनकी राजनीतिक विरासत के असली हक़दार वही हैं।
चाचा मंत्री बने तो लगेगा झटका
इस बीच, पशुपति पारस के केंद्र सरकार में मंत्री बनने की ख़बर है। जल्द होने जा रहे मंत्रिमंडल विस्तार के लिए पशुपति पारस ख़ुद भी तैयार दिखते हैं और कुछ दिन पहले ही उन्होंने इस बात के संकेत भी दिए थे। अगर पशुपति पारस केंद्र में मंत्री बनते हैं तो निश्चित रूप से चिराग पासवान के लिए यह बड़ा झटका साबित होगा क्योंकि उनके पिता के निधन के बाद एलजेपी के कोटे से मंत्री का पद उन्हें ही मिलना तय माना जा रहा था।
चिराग ने कुछ दिन पहले बीजेपी आलाकमान को याद दिलाया था कि जब नीतीश कुमार ने एनडीए छोड़ दिया था तब भी उनकी पार्टी एलजेपी एनडीए में ही थी।
तेजस्वी संग जाएंगे चिराग?
ख़ुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान बताने वाले चिराग पासवान संघर्ष की राह पर तो चल रहे हैं लेकिन बिहार में होने वाली गठबंधन की राजनीति में उनके लिए अकेले चल पाना बेहद मुश्किल होगा। चाचा के गुट के द्वारा ख़ुद को असली एलजेपी बताने के बाद यह लड़ाई चुनाव आयोग के बाद अब अदालत भी जा सकती है।
अगर चिराग एलजेपी पर अपना दावा खो देते हैं तो उनके लिए यह स्थिति बेहद ख़राब होगी। क्योंकि न तो वह एनडीए में रह पाएंगे और न उनके पास अपनी पार्टी रहेगी और ऐसे में उनके पास विकल्प यही रहेगा कि या तो वे अकेले दौड़ें या फिर महागठबंधन में शामिल हो जाएं।
नीतीश कुमार से अदावत
नीतीश इस बात को नहीं भूलेंगे कि चिराग की वजह से ही उन्हें विधानसभा चुनाव में बीजेपी से कम सीटें मिली हैं। इसलिए वे हर कोशिश करेंगे कि चिराग कमज़ोर हो जाएं। चिराग ने विधानसभा चुनाव के दौरान नीतीश पर जोरदार हमले किए थे। अगर नीतीश केंद्रीय मंत्रिमंडल में चार सीट पाने में सफल रहते हैं और चिराग के चाचा भी मंत्री बन जाते हैं तो फिर चिराग के लिए कार्यकर्ताओं को अपने साथ जोड़कर रखना या जेडीयू से लड़ पाना मुश्किल हो जाएगा।
चिराग को सियासी मैदान के साथ-साथ लंबी कानूनी लड़ाई भी लड़नी पड़ सकती है। ऐसे में उनके सामने चुनौतियों का अंबार लगा हुआ है। देखना होगा कि वे इन चुनौतियों से कैसे पार पाते हैं।