सारण जिले में पिछले तीन-चार दिनों के दौरान जहरीली शराब से करीब 50 लोगों की मौत की सूचना के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए गंभीर सवाल खड़ा हुआ है कि क्या वह शराबबंदी की जंग हार जाएंगे। यह सवाल पहले भी पूछा जाता रहा है लेकिन इस बार क्योंकि भारतीय जनता पार्टी उनके साथ सरकार में शामिल नहीं है इसलिए यह ज्यादा मुखर तरीके से सामने आया है।
नीतीश कुमार के लिए यह सवाल न सिर्फ उनके विरोधियों की तरफ से है बल्कि इस मामले में जो उनका समर्थन करते हैं उनकी तरफ से भी है कि क्या वह उस सामाजिक समूह को मौतों से बचा पाएंगे और वह मकसद हासिल कर पाएंगे जिसकी खातिर उन्होंने शराबबंदी लाई है।
जाहिर है सरकार से अलग होने के बाद भारतीय जनता पार्टी इस मामले में नीतीश कुमार की सरकार पर काफी आक्रमक है और इसका राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश भी कर रही है तो पलट कर नीतीश कुमार भी यह पूछ रहे हैं कि क्या भारतीय जनता पार्टी यह बताएगी कि उनके शासन वाले राज्यों में जहरीली शराब से कितनी मौतें हुई हैं।
नीतीश कुमार का दुर्भाग्य है कि इस बार विधानसभा के शीतकालीन सत्र से ठीक पहले यह हृदयविदारक घटना हुई है और इस कारण भारतीय जनता पार्टी को पूरा मौका मिला है कि वह उन पर आक्रामक बनी रहे। इसीलिए विधानसभा का सत्र हंगामे का शिकार हो रहा है और खुद नीतीश कुमार इतने गुस्से में आ रहे हैं कि कई लोग यह सवाल कर रहे हैं कि क्या उन पर अब उम्र का असर कुछ ज्यादा तो नहीं हो रहा।
नीतीश कुमार ने 2016 में उस समय शराबबंदी नीति लागू की थी जब उनकी सरकार में आरजेडी साथ थी और भारतीय जनता पार्टी बाहर, लेकिन यह भी सही है कि 2017 में साथ आने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने नीतीश कुमार की शराबबंदी नीति का भरपूर तरीके से समर्थन किया था। यह अलग बात है कि कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी और यहां तक कि जदयू के भी एकाध विधायक बीच-बीच में इस नीति पर पुनर्विचार की बात करते रहे हैं।
नीतीश कुमार के समर्थन में लगातार खड़े पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी भी इस नीति पर पुनर्विचार की मांग करते रहे हैं और यह बात भी उजागर करते रहे हैं कि इस नीति का सबसे ज्यादा शिकार मांझी समुदाय के लोग हुए हैं जिनकी आय बहुत कम है और जिनके लिए अदालतों की लड़ाई भी बहुत मुश्किल है।
नीतीश कुमार के लिए इस मामले में तेजस्वी यादव का समर्थन भी अजीब बात लगती है क्योंकि जब वह सरकार में नहीं थे और ऐसी मौतें होती थी तो आरजेडी नीतीश कुमार पर आक्रामक हुआ करता था। अब ज़ाहिर तौर पर तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ हैं। तेजस्वी ने तो यह दावा भी किया है कि जहरीली शराब से सबसे अधिक मौत भाजपा शासित प्रदेशों में होती है। खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी यह सवाल किया है कि भारतीय जनता पार्टी अपने शासन वाले राज्यों में होने वाली मौतों के बारे में क्यों नहीं बात करती है। उन्होंने तो गुस्से में यह भी कह दिया था के शराब बेचवाने में भाजपा के लोगों का ही हाथ है।
राजनीतिक विरोध के कारण नीतीश कुमार से यह सवाल पूछना अपनी जगह लेकिन सारण जिले से जो जानकारी मिल रही है वह यह है कि थाने में पहले से ज़ब्त कर रखी गई स्पिरिट का इस्तेमाल कर ही उस जहरीली शराब का निर्माण हुआ है जिससे लोगों की मौत हुई।
बताया गया है कि वहां एक थाने में ऐसे कंटेनर के ढक्कन खुले मिले हैं जिसमें ज़ब्त की गई स्पिरिट रखी गई थी लेकिन वह स्पिरिट वहां से गायब है। यह आरोप भी लगाया जाता है की इस धंधे में थाने की मिलीभगत होती है। इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि काफी संख्या में पुलिसकर्मियों पर भी शराब के धंधे के मामले में कार्रवाई हुई है।
नीतीश कुमार शराबबंदी के मामले में चाहे जितना समर्थन हासिल कर लें लेकिन इससे उन्हें इस सवाल से बचने का मौका कतई नहीं मिलेगा कि आखिर बिहार में जहरीली शराब क्यों बन और बिक रही है। नीतीश कुमार यह कह सकते हैं कि सरकार पूरी तरह लगी हुई है और कुछ लोग तो गड़बड़ करेंगे ही लेकिन इससे उन मौतों के बारे में उनकी संवेदनशीलता पर भी सवाल खड़ा किया जा रहा है। नीतीश कुमार का यह कहना है कि अगर लोग पिएंगे तो मरेंगे ही।यह बात अगर वह चेतावनी के रूप में मौतों से पहले कहते तो इसे एक हद तक उचित माना भी जा सकता था लेकिन मौत होने के बाद ऐसे बयान देना दरअसल अपनी जिम्मेदारी से पिंड छुड़ाना है और काफी असंवेदनशील भी है।
यह बात याद रखने की है कि शराबबंदी और जहरीली शराब का धंधा दो अलग-अलग मुद्दे हैं। नीतीश कुमार को महिलाओं का इसलिए जबरदस्त समर्थन मिलने की बात की जाती है कि उन्होंने महिलाओं के लिए काफी काम किया है जिसमें शराबबंदी भी एक अहम काम है।
इन मौतों के बाद वास्तव में उन महिलाओं की ओर से यह सवाल किया जा रहा है कि आखिर नीतीश सरकार ने शराबबंदी की है तो ऐसी जहरीली शराब क्यों मिल रही है और लोगों की मौतें क्यों नहीं रुक रही हैं। नीतीश कुमार अगर इन मौतों पर जल्द ही प्रभावी रोक नहीं लगा पाते हैं तो यह भी संभव है कि महिलाओं का यह समूह उन्हें समर्थन जारी रखने के बजाय उनसे बिदक जाए।
नीतीश कुमार ने प्रशासनिक स्तर पर शराबबंदी को पूरी तरह लागू कराने के लिए केके पाठक के रूप में एक कड़क आईएएस अफसर को जिम्मेदारी दे रखी है। इसके बाद ऐसी घटनाएं होना यह बताता है कि धंधे वालों की पकड़ ज्यादा है। इसलिए ऐसी घटनाओं के बाद उन्हें शराबबंदी के बावजूद सरकारी अफसरों की मिलीभगत रोकने के लिए और सख्त उपाय करने होंगे। यह अच्छी बात है कि नीतीश कुमार ने इस बार स्पष्ट रूप से बयान दिया है कि इस मामले में कार्रवाई गरीब गुरबा पर न करके उन लोगों पर करें जो इसके धंधेबाज हैं।
नीतीश कुमार के लिए दोहरी चुनौती है। एक तो उन्हें यह साबित करना है कि शराबबंदी नीति राज्य विशेषकर राज्य की महिलाओं के लिए लाभदायक है। इसके लिए उन्हें मीडिया के इनफ्लुएंसर समूह और शराब लॉबी से भी चुनौती का सामना है।
शराब का कारोबार पहले भी नेताओं के लिए बहुत ही आकर्षक रहा है क्योंकि इसके ठेके लेने से उन्हें अपने कार्यकर्ताओं को कुछ न कुछ रोजगार देने का मौका मिलता है। नीतीश कुमार को यह बात भी बतानी होगी कि शराबबंदी से आखिर राज्य को क्या फायदा हुआ। शायद वह कभी कभार यह बात बताते भी हैं लेकिन इस स्तर पर नहीं कि इसके पक्ष में नैरेटिव बने और इसके लिए माहौलबंदी हो सके।
उनके लिए दूसरी चुनौती है जहरीली शराब के धंधे को हर हाल में रोकना। इस घटना के बाद भी अगर जहरीली शराब से मौत हुई तो खुद शराबबंदी के मामले में नीतीश कुमार को और गंभीर सवालों का सामना करना पड़ेगा।शराबबंदी को फिलहाल अगर छोड़ भी दिया जाए तो भी ज़हरीली शराब के धंधे से अपने लोगों को खोने वाले परिवारों का समर्थन खो देंगे। इस मामले में उन्हें अपने प्रशासनिक पकड़ पर भी विचार करना चाहिए जो बेहद कमजोर नजर आ रही है।