बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर अब आधिकारिक रूप से उतरने वाले हैं। कभी खुद को वर्तमान तो कभी पूर्व चुनावी रणनीतिकार बताने वाले किशोर ने रविवार को पटना में कहा कि 2 अक्टूबर को गांधी जयंती पर जन सुराज अभियान एक राजनीतिक पार्टी के रूप में सामने आ जाएगा। उनकी पार्टी की नजर अगले साल विधानसभा चुनाव पर है और वो हर सीट पर चुनाव लड़ेगी।
किशोर ने रविवार को पटना में जन सुराज की राज्य स्तरीय कार्यशाला में किशोर ने कहा, पार्टी नेतृत्व का मसला उचित समय पर तय किया जाएगा। यानी उनका संगठन अभी तक राज्यस्तरीय नेतृत्व तय नहीं कर पाया है। या फिर वो मुख्यधारा के दलों से निराश या महत्वाकांक्षी लोगों के टूटकर उनके संगठन में शामिल होने का इंतजार कर रहे हैं।
जन सुराज अभियान की पटना कार्यशाला में पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की पोती सहित कई लोगों ने भाग लिया।किशोर ने भारत रत्न से सम्मानित समाजवादी नेता के छोटे बेटे वीरेंद्र नाथ ठाकुर की बेटी जागृति ठाकुर के आने का भी स्वागत किया। दिवंगत ठाकुर के बड़े बेटे रामनाथ ठाकुर जेडीयू सांसद और केंद्रीय राज्य मंत्री हैं। बता दें कि प्रशांत किशोर पिछले दो साल से जन सुराज अभियान चला रहे हैं। पूरे बिहार का दौरा कर चुके हैं।
जन सुराज में शामिल होने वाले अन्य लोगों में पूर्व आरजेडी एमएलसी रामबली सिंह चंद्रवंशी शामिल थे, जिन्हें हाल ही में अनुशासनहीनता के आधार पर विधान परिषद से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। पूर्व आईपीएस अधिकारी आनंद मिश्रा भी शामिल हुए, जिन्होंने भाजपा के टिकट की उम्मीद में आईपीएस से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन लोकसभा बक्सर से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा था। आनंद मिश्रा हार गए थे और जमानत जब्त हो गई थी।
भाजपा की बी टीम का आरोप
किशोर ने अपनी जन सुराज यात्रा पश्चिम चंपारण से शुरू की थी। हालांकि 10 जिलों में वो कार से यात्रा करते हुए पहुंचे थे। लेकिन इस यात्रा के बाद दावा किया गया कि उन्होंने जमीनी स्तर पर नेताओं का एक समूह बनाया है। जिनके दम पर वो अपनी पार्टी को पूरे बिहार में फैला देंगे। लेकिन प्रशांत किशोर अपनी पार्टी को लॉन्च नहीं कर पाए। अब नया रंग रोगन लगाकर फिर से अपनी राजनीतिक पार्टी को लॉन्च करने की तैयारी है। देश के सबसे पिछड़े राज्यों में बिहार की प्रमुख पार्टियां आरजेडी, भाजपा, जेडीयू और कांग्रेस हैं।
प्रशांत किशोर ने जो राजनीतिक लाइन पकड़ी है, उससे भाजपा को सीधा फायदा है। यानी 37 फीसदी दलित और मुस्लिम वोट आरजेडी और जेडीयू की ताकत है। ये दोनों समुदाय भाजपा को वोट नहीं देते। क्योंकि इनकी नजर मुख्यरूप से इन्हीं दो समुदायों के वोटों पर है। इसीलिए प्रशांत किशोर को भाजपा की बी टीम कहा जाता है। क्योंकि बिहार में जिस तरह की दलित-मुस्लिम राजनीति प्रशांत किशोर करना चाहते हैं, उससे भाजपा को जबरदस्त फायदा होगा। इससे यह भी संकेत मिलता है कि अगले साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा अकेले दम पर सरकार बनाना चाहती है। उसे प्रशांत किशोर की पार्टी के जरिए दलित-मुस्लिम वोट बंटने की उम्मीद है।
प्रशांत किशोर ने भाजपा की बी टीम का शक दूर करने के लिए बिहार की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है। लेकिन मुसलमानों से प्रशांत किशोर की जजबाती अपीलों का सिलसिला जारी है। किशोर ने अररिया की सभा में कहा थाः “तुम्हारे पैग़ंबर साफ़ कहते हैं कि संघर्ष के बिना कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता। आप सिर्फ बीजेपी या नरेंद्र मोदी को हराने के बारे में सोचते रहते हैं लेकिन इस दिशा में ठोस प्रयास नहीं करते. इसके बजाय, आप कुछ लोगों या नेताओं द्वारा उन्हें हराने की प्रतीक्षा करते हैं। फिर, चुनाव के बाद, आप पांच साल तक चुप रहते हैं और फिर से किसी चमत्कार के होने का इंतजार करते हैं।” किशोर ने फिर कहा- “भाजपा एक दिन में नहीं बनी। मोदी 2014 में नहीं आए थे। वह उससे पहले 20 साल तक वहां थे।'' यानी मुसलमानों के मर्म पर भी वो हाथ रख रहे हैं। ताकि बी टीम कहना लोग बंद करेंगे। लेकिन राजनीति में जो दिखता है, वो होता नहीं। जो होता है, राजनीतिक मकसद उससे अलग होता है। फिलहाल प्रशांत किशोर भाजपा की पसंद बने हुए हैं।
प्रशांत किशोर खुद ब्राह्मण हैं, लेकिन वो दलितों और मुसलमानों से जाति और धार्मिक आधार पर मतदान बंद करने और "अपने बच्चों के भविष्य" को ध्यान में रखने की अपील कर रहे हैं। लेकिन प्रशांत किशोर जिस जाति से आते हैं, वो खुद आंख बंद कर भाजपा को वोट देती है, उसके लिए प्रशांत किशोर का कोई संदेश नहीं है।
राजनीतिक चालाकी
अगर दलित और मुस्लिम वोट बैंक के रूप में किसी पार्टी को वोट देते हैं तो उस पर सभी को ऐतराज है, लेकिन ऐतराज करने वाले अपने जाति समूह या समुदाय पर ध्यान नहीं देते जो खुलकर दक्षिणपंथी भाजपा का समर्थन करते हैं। प्रशांत किशोर ने दलितों और मुस्लिमों से जो अपील की है, उसकी खास वजह कुछ और भी है। 1990 के बाद से, बिहार का नेतृत्व उन नेताओं ने किया है जो सामाजिक न्याय की राजनीति से निकले हैं, चाहे वह आरजेडी के लालू प्रसाद और उनकी पत्नी राबड़ी देवी हों, या वर्तमान मुख्यमंत्री और जेडीयू सुप्रीमो नीतीश कुमार हों। इन सभी की दलितों और मुस्लिमों में पहचान है। प्रशांत किशोर वहां अपनी जगह बनाना चाहते हैं। लेकिन उससे फायदा भाजपा को होगा।
ऐसा क्यों है कि मुस्लिमों को आकर्षित करने के लिए प्रशांत किशोर ने कहा है कि मुस्लिम बिहार की आबादी का 17% हैं, यादवों से 3% अधिक लेकिन उनके पास पूरे बिहार का कोई नेता नहीं है। यह अपील कर प्रशांत किशोर क्या साबित करना चाहते हैं।
उनके पास भाजपा के कोर वोटर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य के लिए कोई अपील क्यों नहीं है। हाल ही में, किशनगंज में एक सभा में, उन्होंने क्यों कहा कि जन सुराज पार्टी 2025 के विधानसभा चुनावों में 75 मुसलमानों को मैदान में उतारेगी।
किशोर ने मुस्लिमों से कहा: “आप डर के मारे असामाजिक तत्वों को वोट देना कब बंद करेंगे और अपने लिए वोट करना शुरू करेंगे। अपने बच्चों के भविष्य के लिए?” किशनगंज के अलावा, किशोर ने अररिया और कटिहार की भी यात्रा की है, जहां मुस्लिम आबादी अच्छी खासी है। उन्होंने आरजेडी और जेडीयू की मुसलमानों के प्रति दिखावटी बातों पर सवाल उठाए और पूछा कि उन्होंने इस समुदाय को सरकार में महत्वपूर्ण पद क्यों नहीं दिए।
मुसलमानों के अलावा प्रशांत किशोर कुछ इस तरह की बात दलितों से भी कहते हैं। उनके नेताओं का कहना है कि पार्टियों ने दलित नेताओं का केवल "इस्तेमाल" किया है। दलित वोट वर्तमान में बिखरे हुए हैं क्योंकि चिराग पासवान और जीतन राम मांझी जैसे नेता उन्हें अपने ढंग से इस्तेमाल कर रहे हैं। इसीलिए प्रशांत किशोर दलित मुस्लिमों की 37 फीसदी आबादी को अपने मंच पर लाना चाहते हैं, ताकि आरजेडी और जेडीयू के वोट बैंक पर कब्जा किया जा सके।