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बग़ैर लालू यादव के बेरंग, फीका रहेगा लोकसभा चुनाव!

बग़ैर लालू यादव के बेरंग, फीका रहेगा लोकसभा चुनाव!

इस बात को लालू यादव के विरोधी भी मानते हैं कि भाषण के बल पर भीड़ को मंत्रमुग्ध कर घंटों बांध कर रखने की इतनी मजबूत कला सिर्फ़ लालू यादव के अंदर ही है।

चुनावी मंच पर नक़ली बैलेट बाक्स को हाथ में लेकर उसके एक बटन पर उंगली दबाकर लालू यादव ‘पी...ईंइंंइंइंइंइंइं’ शब्द को लंबी सांस लेकर जब बोलना शुरू करते थे तब वहाँ मौजूद भीड़ हँस-हँस कर लोट-पोट हो जाती थी। 2009 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान एक सभा में लालू यादव द्वारा छपरा में अपने भाषण के दौरान बोले जा रहे इस शब्द को सुनने के बाद एक श्रोता ने हंसते हुए इस लेखक से कहा था, ‘इसीलिए हम खाना खाकर लालू जी का भाषण सुनने आते हैं। खाली पेटे हंसला पर बाद में बरियार दरद कबर जाता है।’ वहीं पर खड़े दूसरे श्रोता ने त्वरित टिप्पणी की, ‘हम किसी नेता का भाषण सुनने नहीं जाते हैं, केवल और केवल लालू यादव की सभा में आता हूँ। बस भाड़ा वसूल हो जाता है, देह में गुदगुदी पैदा होती है, खाना पच जाता है। हंसने की कसरत हो जाती है, बाक़ी नेता के भाषण सुनने से कुछुवो प्राप्त नहीं होता है और धन की भी बरबादी होती है।’ 

लालू यादव हंसते-हंसाते अपने समर्थकों के बीच इस शब्द के मार्फ़त मैसेज भी दिया करते थे कि बटन दबाने के बाद जब यह ‘पी....ईंइंंइंइंइंइंइं’ की आवाज़ निकले तब समझना कि तुम्हारा वोट सही तरीके से पड़ गया है।

बहरहाल, लालू यादव के ऐसे फैंस के लिए बुरी ख़बर यह है कि इस बार के चुनाव में उनको ‘पी....ईंइंंइंइंइंइंइं’ शब्द सुनने को नहीं मिलेगा। क़रीब तीन दशक के बाद यह पहला अवसर होगा जब बिहार का चुनाव लालू यादव की ग़ैर मौजूदगी में होगा। 

जेल में हैं लालू यादव

आरजेडी के अध्यक्ष लालू यादव चारा घोटाले के एक केस में सज़ा पाने के बाद 23 दिसम्बर 2017 से रांची की बिरसा मुंडा जेल में क़ैद हैं। ज़मानत के लिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगा रखी है लेकिन क़ानून के जानकारों का कहना है कि इसकी संभावना बहुत ही कम है। लेकिन आरजेडी सरकार में 15 साल तक मंत्री रहे बक्सर के पूर्व सांसद जगदानन्द सिंह को पूरा विश्वास है कि 29 मार्च को सुप्रीम कोर्ट से ग़रीबों के मसीहा लालू यादव को जमानत मिल जाएगी और चुनाव प्रचार में पहले की तरह ही रौनक होगी। 

लालू यादव की ग़ैरमौजूदगी में 2019 का चुनावी महाभारत रंगहीन, गंधहीन और स्वादहीन होगा। इस बात को लालू के कट्टर सियासी विरोधी भी दिल से स्वीकार करते हैं।

सासाराम से पांच बार बीजेपी के विधायक रहे जवाहर महतो कहते हैं कि ‘हार, जीत, पसन्द, नापसन्द अपनी जगह है लेकिन यह बात सत्य है कि लालू प्रसाद का अभाव खलेगा। मैं तो कितनी बार चुपके से उनकी सभा में जाकर भाषण सुनता रहा हूँ।’

नीतीश भी हैं लालू के कायल

हार और जीत अपनी जगह है, लेकिन यह कठोर सत्य है कि पिछले तीन दशक तक लालू यादव ने प्रत्येक चुनाव को अपने प्रचार की अदाओं से डामिनेट किया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी एक बार इस लेखक से कहा था, ‘भाषण के बल पर भीड़ को मंत्रमुग्ध कर घंटों बांध कर रखने की इतनी मजबूत कला आज की तारीख़ में हिन्दुस्तान में सिर्फ़ लालू यादव के अंदर ही है।’

लालू यादव में आख़िर ऐसी कौन सी बात है कि उनका भाषण सबको मोह लेता है वोट दीजिए या मत दीजिए, यह अलग बात है। अपर कास्ट के बीच वैसे जीवों की बहुलता है जो दिनभर लालू यादव को गाली बकते रहते हैं। लेकिन अगर ऐसे लोगों के आसपास कहीं लालू यादव का प्रोग्राम हो तो वे उनकी सभा में जाकर उनका भाषण सुनने से अपने आप को नहीं रोक पाते।

कटिहार के एक प्रतिष्ठित बिजनेसमैन, जो राजपूत जाति के हैं, का कहना है, ‘लालू यादव का गंवई अंदाज हमलोगों को ख़ूब भाता है। लालू अपने विरोधी नेताओं का सटीक नामकरण करते हैं, जैसे कि नीतीश कुमार को पलटू राम, राम विलास पासवान को मौसम वैज्ञानिक, सुशील कुमार मोदी को मुक़दमाबाज़ वग़ैरह नामों से विभूषित करना।

बिहार में 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में लालू यादव जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मिमिक्री करते थे तो जनता लोटपोट हो जाती थी।

'नसवे फट जाएगा मोदी जी'

विधानसभा चुनाव की घोषणा से कुछ दिन पहले आरा की एक सभा में प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने बिहार को पैकेज देने की घोषणा इस अंदाज में की थी जैसे किसी सामान की नीलामी की जाती है। उसी की हूबहू नक़ल आरजेडी मुखिया ने अपने अंदाज में इस तरह की थी, ‘भाइयों अउर बहनों, आपको 10 हजार करोड़ दें कि 20 हजार करोड़, कि 50 हजार करोड़ या कि 80 हजार करोड़ दें दे’, फिर हंसते हुए जनता को अपनी गर्दन की नस दिखाते हुए बोलते थे, ‘अरे मोदी जी धीरे-धीरे बोलिए नाहीं त खून बहने वाला नसवे फट जाएगा।’ 

अपने कलरफ़ुल अंदाजे बयां से आरजेडी मुखिया वोटर्स के दिलो-दिमाग में यह मैसेज ठेल देते हैं कि उनको इस चुनाव में क्या करना है, यानी कि किसे अपना वोट देना है।

बिहिया बाजार के देवता यादव कहते हैं, ‘लालू जी राजनीति के डॉक्टर हैं। पहले हंसाकर शरीर सुन्न कर देते हैं, उसके बाद अपने विचार की सुई दिमाग में खोभ देते हैं।’ 

लालू की अनुपस्थिति पर दिनारा के संतोष यादव कहते हैं, ‘ लालू जी को हम लोग सगुण और निर्गुण दोनों रूप में पूजते हैं, उनके नहीं रहने से हमलोगों पर कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा।’ संतोष आगे कहते हैं, ‘जब तक समोसा में आलू, सोन में बालू और जंगल में भालू रहेंगे, तब तक बिहार में लालू रहेंगे।’

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