उत्तर प्रदेश के चुनाव में बेरोजगारी अहम मसला बन गया है। करीब हर सरकारी भर्ती का विवाद में आना और खासकर अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) के साथ हुए भेदभाव और कथित धांधलियां चुनावी चर्चा में है। रेलवे भर्ती बोर्ड की एनटीपीसी परीक्षा में हुई धांधली के खिलाफ बिहार के आधे दर्जन से ज्यादा जगहों पर उग्र प्रदर्शन, आगजनी और इसकी आंच इलाहाबाद तक पहुंचने के बाद भर्तियों में गड़बड़ी का मसला एक बार फिर सतह पर आ गया है। यह उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को अच्छा खासा दर्द देने जा रहा है।
भर्तियों में गड़बड़ी के सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग से आए। उच्च शिक्षा विभाग उप मुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा के अधीन आता है, जो ब्राह्मण जाति से हैं। सत्य हिंदी ने बड़ी प्रमुखता से यह मसला उठाया था कि भर्ती के विज्ञापनों में ओबीसी के लिए बहुत मामूली सीटें निकाली गईं, जो 27 प्रतिशत कोटे के अनुरूप नहीं था। सत्य हिंदी में प्रकाशित खबर में देखा जा सकता है कि किस तरह से ओबीसी के लिए इतिहास में निकाली गई 38 रिक्तियों में से 32 सामान्य कर दी गईं और सिर्फ 4 ओबीसी कोटे में गईं। इसी तरह से भर्ती की परीक्षा के बाद आए परिणामों में ओबीसी की मेरिट जनरल से बहुत ऊपर चली गई। सामान्य नियम यह है कि पहले सामान्य सीटे भरी जाती हैं और उसका कोटा पूरा हो जाता है तो आरक्षित सीटें भरी जाती हैं। इससे आरक्षित कोटे की मेरिट हमेशा सामान्य से नीचे रहती है, भले ही मामूली अंतर क्यों न हो।
लेकिन परिणाम से ऐसा लगा कि यूपी की भर्तियों में ऐसा नहीं किया गया है। इसे भी सत्य हिंदी ने प्रमुखता से प्रकाशित किया था। इस मेरिट को देखकर ऐसा लगा कि आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को सामान्य पदों में घुसने ही नहीं दिया गया और यह बिल्कुल वैसा हुआ कि 80 सीट की बस में 2 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिया जाए और अगर दो से ज्यादा महिलाएं बस में आती हैं तो उन्हें खड़ा रखा जाए।
खैर... आरक्षण में गड़बड़ी के मसले पर मसले पर राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री को पत्र लिखे जाने, पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा नोटिस जारी किए जाने जैसी गतिविधियों का कोई असर नहीं हुआ और सरकार ने भर्ती में कोई बदलाव नहीं किया। इन परीक्षाओं के माध्यम से डिग्री कॉलेजों में हजारों की संख्या में असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्तियां हुई थीं।
पिछड़े वर्ग की भर्ती में धांधली के आरोपों के अलावा अन्य तमाम भर्तियों में कई तरह के आरोप लगे। नवंबर 2021 में हुई उत्तर प्रदेश शिक्षक पात्रता परीक्षा, 2021 में पेपर लीक हो गया। इस परीक्षा में 22 लाख अभ्यर्थी शामिल हुए। खबरों के मुताबिक परीक्षा का पेपर मथुरा, गाजियाबाद और बुलंदशहर के व्हाट्सऐप ग्रुपों में वायरल हो गया।
यह संख्या इतनी बड़ी थी कि इसमें राज्य के करीब हर मोहल्ले या गांव के बच्चे परीक्षा में शामिल हुए थे, जिन्हें बेरोजगारी और कोरोना के बुरे दौर में प्रशासनिक शिथिलता और धांधलियों का शिकार होना पड़ा था।
इसी तरह से दिसंबर 2018 में प्राथमिक शिक्षकों की 69 हजार भर्तियों की परीक्षा में कथित रूप से घोटाला सामने आया। इस परीक्षा में न सिर्फ कट आफ मार्क्स के तय किए जाने मानक को लेकर बवाल हुआ, बल्कि पिछड़े वर्ग को उनके कोटे के मुताबिक भर्ती न किए जाने के आरोप लगे। इस भर्ती में धांधली को लेकर कैंडीडेट्स ने लखनऊ में कई बार लाठियां खाईं और लगातार महीनों तक कभी उग्र तो कभी शांति से धरना प्रदर्शन चलता रहा।
प्रदर्शनकारी अभ्यर्थियों ने आरोप लगाया कि 22 से 23 हजार सीटों पर आरक्षण के नियमों का पालन नहीं किया गया। इस भर्ती में ओबीसी की कुल 18,598 सीटें थीं, लेकिन उन्हें 2,637 सीटों पर ही भर्ती दी गई।
इस मामले में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने माना कि भर्ती में अनियमितताएं हुई हैं और राज्य सरकार से जवाब मांगा।
प्राथमिक शिक्षकों की 69,000 भर्तियों में ही गड़बड़ी नहीं हुई। इस विभाग के बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी के छोटे भाई अरुण द्विवेदी ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) कोटे से सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी हासिल कर ली। सतीश द्विवेदी की पत्नी विदुषी दीक्षित मोतीहारी के एमएस कॉलेज की प्रोफेसर हैं और वह 70,000 रुपये महीने से ज्यादा वेतन पाती हैं।
हालांकि विवाद बढ़ने पर अरुण द्विवेदी ने इस्तीफा दे दिया। लेकिन इस मामले में किसी तरह की जांच नहीं हुई कि मंत्री के परिवार का गरीब कोटे का प्रमाणपत्र कैसे बन गया और वास्तविक स्थिति क्या है। स्वाभाविक है कि इससे ईडब्ल्यूएस में आने वाले सवर्ण छात्रों में भी आक्रोश फैला कि यह सरकार गरीब सवर्णों का हक खा लेने में भी पीछे नहीं है।
रेलवे भर्ती परीक्षा में गड़बड़ी को लेकर इलाहाबाद में जिस तरह से प्रदर्शनकारी विद्यार्थियों के कमरों में घुसकर उन्हें बर्बरता से पीटे जाने का वीडियो सोशल मीडिया पर आया है, इससे उत्तर प्रदेश की मौजूदा सरकार के कार्यकाल में भर्तियों में हुई धांधलियों की यादें एक बार फिर ताजा हो गई हैं।
असिस्टेंट प्रोफेसर से लेकर प्राइमरी के मास्टर तक की भर्ती में हुई गड़बड़ियां और पेपर आउट होने का मसला व्यापक स्तर पर चुनावी चर्चा में शामिल हो गया है। विपक्षी दल भले ही इस मसले को तत्परता से न उठा रहे हों, लेकिन यह भर्तियां इतनी बड़ी थीं कि इससे हर मोहल्ले के परिवार पर असर पड़ा है और यह प्रमुख चुनावी चकल्लस में एक बना हुआ है।
इन भर्तियों में गड़बड़ी के सभी अभ्यर्थी शिकार बने हैं, जो ईमानदारी से परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे, लेकिन ओबीसी खासतौर पर पीड़ित हुए हैं। यूपी में भाजपा का आधार वोट ओबीसी माना जाता है, यह उसके लिए अतिरिक्त चिंता का विषय बन गया है।