बिहार में प्रशांत किशोर की पार्टी की जीत का मतलब
चुनाव रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर के संगठन जन सुराज की एक चुनावी सफलता ने राज्य की राजनीति में खलबली मचा दी है। जन सुराज संगठन के समर्थन से एक शिक्षक नेता अफ़ाफ अहमद ने विधान परिषद की एक सीट जीत ली है। आरजेडी और बीजेपी का गढ़ माने जाने वाले सारण ज़िला में इस जीत को बिहार में नयी राजनीति की आहट माना जा रहा है। ख़ासकर इसलिए कि इस सीट पर पिछले 35 सालों से सीपीआई का क़ब्ज़ा था। सीपीआई के नेता केदार पांडे के निधन से खाली इस सीट से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले महागठबंधन ने पांडे के बेटे आनंद पुष्कर को टिकट दिया था। सीपीआई भी महागठबंधन का हिस्सा है।
प्रशांत किशोर ने इस सीट से एक पूर्व शिक्षक अफ़ाफ अहमद को खड़ा कर दिया। अफ़ाफ एक स्कूल में 35 सालों से शिक्षक थे। पिछले साल अक्टूबर में प्रशांत किशोर ने जन सुराज यात्रा शुरू की तो अफ़ाफ नौकरी छोड़ कर इस यात्रा में शामिल हो गए। अफ़ाफ कोई बड़े नेता, बहुत पैसे वाले या बाहुबली नहीं हैं। इसलिए उनकी जीत को बिहार में साफ़ सुथरी राजनीति की शुरुआत माना जा रहा है। प्रशांत किशोर अपनी यात्रा में साफ़ सुथरी राजनीति पर काफ़ी ज़ोर दे रहे हैं।
आरजेडी और बीजेपी को चुनौती
बिहार का सारण ज़िला आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव का गढ़ माना जाता है। ज़िला मुख्यालय छपरा सीट से लालू सांसद रह चुके हैं। लेकिन पिछले कई चुनावों से बीजेपी के राजीव प्रताप रुढी लोक सभा सीट जीतते रहे हैं। इस बार सारण के दो विधान परिषद सीटों पर चुनाव था। सारण स्नातक सीट पर जेडीयू और महागठबंधन के उम्मीदवार वीरेंद्र यादव ने बीजेपी के महाचंद्र सिंह को हरा दिया। महाचंद्र सिंह बीजेपी के बड़े नेताओं में गिने जाते हैं। इसे बीजेपी के लिए भी ख़तरे का संकेत माना जा रहा है। लेकिन अफ़ाफ की जीत से बीजेपी और जेडीयू दोनों गठबंधन परेशान हैं। सबसे बड़ी चिंता ये बतायी जा रही है कि राजनीति में बिलकुल नए लोगों को तैयार करके प्रशांत किशोर 2024 के लोक सभा या 2025 के बिहार विधान सभा चुनावों में वैसी ही चुनौती तो खड़ा नहीं कर देंगे जैसी अरविंद केजरीवाल ने कुछ वर्षों पहले दिल्ली में कांग्रेस और बीजेपी जैसे पारंपरिक दलों के लिए खड़ी कर दी थी।
जन सुराज संगठन के पास अभी राजनीतिक दल की मान्यता या चुनाव चिन्ह नहीं है। इसलिए अफ़ाफ को निर्दलीय खड़ा किया गया। उनकी जीत के बाद प्रशांत किशोर ने कहा कि अब लोगों को समझ जाना चाहिए कि अच्छे उम्मीदवार कैसे जीत सकते हैं। विधान परिषद के शिक्षक और स्नातक चुनाव में मतदाता तो बहुत कम होते हैं, लेकिन आम चुनाव की राजनीति पर शिक्षकों का बड़ा असर होता है। विधान परिषद के लिए इस बार पाँच सीटों पर चुनाव था। बाक़ी की चार सीटों में से दो दो सीटें बीजेपी और महागठबंधन को मिलीं।
क्या होगा प्रशांत किशोर का अगला क़दम
प्रशांत किशोर पिछले दो अक्टूबर से बिहार में जन सुराज यात्रा निकाल रहे हैं। अब तक वो क़रीब ढाई हज़ार किलो मीटर की यात्रा कर चुके हैं। गावों में छोटी छोटी सभा करके वैकल्पिक राजनीतिक माडल तैयार करने की कोशिश में हैं। विधान सभा के पिछले चुनाव में भी वो चुनाव मैदान में कूदने की तैयारी कर रहे थे। लेकिन पर्याप्त समर्थन नहीं होने के कारण मैदान से हट गए। इस बार वो हर गाँव में कार्यकर्ता और चुनाव लड़ने लायक उम्मीदवार की तलाश करते दिखाई दे रहे हैं।प्रशांत किशोर सवर्ण हैं। जाति की राजनीति में विभाजित बिहार में उनकी लड़ाई आसान नहीं है। लेकिन राज्य में रोज़गार की भयानक समस्या से जूझ रहा युवा वर्ग उन्हें सावधानी से देख रहा है। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मामलों में भी बिहार के युवा दूसरे राज्यों की तरफ़ देखते हैं। प्रशांत किशोर की निगाह इन्हीं युवकों पर है। प्रशांत अब से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (2014) नीतीश कुमार, ममता बनर्जी और अमरेन्द्र सिंह जैसे नेताओं के लिए सफल चुनाव रणनीति बना चुके हैं। लेकिन राजनीति में उनकी महत्वकांक्षा अब तक अधूरी है।