इंसेफ़ेलाइटिस से 146 बच्चों की मौत, नहीं मिल रहा बेहतर इलाज
बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में चमकी बुखार यानी एक्यूट इंसेफ़ेलाइटिस सिंड्रोम (एईस) से अब तक 146 बच्चों की मौत हो चुकी है। इनमें श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज व अस्पताल (एसकेएमसीएच) में 109 जबकि केजरीवाल अस्पताल में 20 बच्चों की मौत हुई है। बिहार के 15 जिलों में 600 से ज़्यादा बच्चे इस बीमारी से प्रभावित हैं। बच्चों की लगातार मौत होने के बाद बिहार सरकार ने एसकेएमसीएस के सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर भीमसेन कुमार को निलंबित कर दिया है। उन पर काम में लापरवाही बरतने का आरोप है। स्वास्थ्य विभाग ने भीमसेन को 19 जून को एसकेएमसीएच में तैनात किया था। भीमसेन पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में बाल रोग विशेषज्ञ के पद पर थे।
Muzaffarpur: Senior Resident Doctor of Sri Krishna Medical College and Hospital (SKMCH), Dr Bhimsen Kumar, has been suspended for negligence of duty. The Health Department had deployed the Patna Medical College and Hospital (PMCH) pediatrician at SKMCH on 19 June. #Bihar
— ANI (@ANI) June 23, 2019
बता दें कि शनिवार को एसकेएमसीएच अस्पताल परिसर के बाहर झाड़ियों में नरकंकाल मिले थे। इसके बाद हड़कंप मच गया था कि आख़िर यह नरकंकाल किसके हैं और यहाँ कब से थे। अस्पताल की ओर से इस बारे में जाँच के लिए कमेटी बनाने की बात कही गई है।
बिहार सरकार व स्वास्थ्य विभाग बच्चों के इलाज की बेहतर व्यवस्था करने के भले ही लाखों दावे कर ले लेकिन मौत का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। सरकार पर और बच्चों के इलाज को लेकर लगातार उठ रहे सवालों के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंगलवार को मुज़फ़्फ़रपुर का दौरा किया था। बच्चों की लगातार हो रही मौत से यह सवाल खड़ा होता है कि आख़िर नीतीश सरकार और केंद्र सरकार क्यों बेहतर इलाज नहीं दे पा रहे हैं।
बच्चों की मौतों को लेकर मुज़फ़्फ़रपुर की सीजेएम कोर्ट में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन और बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय के ख़िलाफ़ मुक़दमा भी दर्ज कराया गया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एईस से मरने वाले बच्चों के परिवार को 4 लाख रुपये सहायता राशि देने की घोषणा की है।
एसकेएमसीएच में अपने बच्चों का इलाज कराने के लिए आने वाले लोगों का कहना है कि उनके बच्चों को बुखार है लेकिन उन्हें अस्पताल में भर्ती नहीं किया जा रहा है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि बच्चों को कभी भी ओआरएस नहीं दिया गया और न ही इस बारे में जानकारी दी गई। परेशान माता-पिता ने कहा कि हमारे बच्चे 4-5 दिन से बुखार से तप रहे हैं और उन्हें एईएस के लक्षणों के बारे में नहीं पता है। डॉक्टरों ने कहा है कि बच्चों को दवाई दें और अगर इसके बाद भी बुखार कम नहीं होता है तभी भर्ती करने के लिए कह रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनके पास दवाई व इलाज के लिए पैसे नहीं हैं।
Bihar: People who have come with their children at Sri Krishna Medical College and Hospital (SKMCH) in Muzaffarpur say that their children are suffering from fever and allege that they're not being admitted at the hospital. They also allege that no ORS was ever given to them. pic.twitter.com/Ov3TxDGpxj
— ANI (@ANI) June 19, 2019
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन रविवार को मुज़फ़्फ़रपुर के एसकेएमसीएच अस्पताल में पहुँचे थे और उन्होंने हालात की जानकारी ली थी। जिस समय डॉ. हर्ष वर्धन अस्पताल का दौरा कर रहे थे, उस दौरान भी बच्चों की मौत होने की ख़बर सामने आई है। डॉ. हर्ष वर्धन के पटना पहुँचने पर उन्हें पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी के कार्यकर्ताओं ने उन्हें काले झंडे दिखाए थे।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने बिहार सरकार के मुख्य सचिव और केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव को नोटिस जारी कर इंसेफेलाइटिस से हो रही बच्चों की मौतों पर विस्तृत रिपोर्ट माँगी है। आयोग ने जापानी बुखार को रोकने के लिए चलाए गए कार्यक्रम के बारे में भी जानकारी माँगी है और पूछा है कि इसे किस तरह लागू किया गया। आयोग ने 4 हफ़्ते में जवाब देने को कहा है।
राष्ट्रीय जनता दल के नेता और बिहार के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव ने ट्वीट कर नीतीश कुमार पर निशाना साधा था। तेज प्रताप ने ट्वीट किया था - नीतीश बाबू हम राजनीति बाद में कर लेंगे अभी इन मासूमों की जिंदगी ज़्यादा ज़रूरी है। कुछ भी कीजिए इन बच्चों को बचा लीजिए।
बताया जाता है कि बरसात से पहले यह बीमारी हर साल बिहार में कहर बरपाती है। 15 साल तक की उम्र के बच्चे ही इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। मरने वालों में अधिकांश बच्चों की उम्र एक से सात साल के बीच है। इसके अलावा बिहार में ही गर्मी और लू से 70 लोगों की मौत हो गई है और कई लोग अस्पतालों में भर्ती हैं और उनका उपचार किया जा रहा है।
क्या है एईएस
एईएस, मस्तिष्क से संबंधित एक विकार है। यह मस्तिष्क को तब प्रभावित करता है जब कोई वायरस या बैक्टीरिया की एक ख़ास किस्म शरीर पर हमला करती है। मुज़फ़्फ़रपुर में बच्चों की मौत के मामले में, यह वायरस लीची के फल में पाया गया है।पता चला है कि गर्मियों के दौरान इस इलाक़े में बच्चे लीची खाते हैं। यह माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति खाली पेट हो और वह लीची खा ले, तो लीची में मौजूद ‘हाइपोग्लायसिन ए’ और ‘मेथिलीन सायक्लोप्रोपाइल ग्लायसीन’ नामक तत्व उसका ब्लड शुगर बहुत ज़्यादा घटा देते हैं। मेडिकल की भाषा में इसे 'हाइपोग्लाइसीमिया' कहा जाता है। डॉक्टरों के मुताबिक़, जब लीचियाँ आधी कच्ची हों तो ब्लड शुगर घटने का ख़तरा और बढ़ जाता है। ब्लड शुगर के अचानक गिरने से व्यक्ति की तबीयत तेज़ी से बिगड़ने लगती है और सही इलाज न मिलने पर उसकी मौत हो जाती है। क्योंकि बच्चों का इम्यून सिस्टम ज़्यादा मजबूत नहीं होता है, इसलिए उनका शरीर इसका मुक़ाबला नहीं कर पाता।
- बिहार के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने सभी लोगों को सलाह दी है कि वे अपने बच्चों को खाली पेट लीची न खिलाएँ। ऐसा माना जा रहा है कि मुज़फ़्फ़रपुर में इन बच्चों की मौत का कारण यह हो सकता है कि उन्होंने सुबह खाली पेट लीची खायी होगी।
चूँकि मानसून के मौसम के दौरान मच्छर सबसे ज़्यादा प्रजनन करते हैं, इसलिए भी इस तरह के मामले बढ़ जाते हैं। एईएस से गंभीर डेंगू, खसरा या जीका वायरस का भी ख़तरा हो सकता है। चूँकि इसके लक्षणों की पहचान करना और इस पर नियंत्रण करना कठिन होता है, इसलिए अगर समय पर इलाज नहीं किया गया तो यह रोग घातक हो जाता है।
क्या हैं लक्षण
एईएस से पीड़ित बच्चों को तेज़ बुखार आता है और उनका शरीर ऐंठने लगता है। इसके बाद बच्चे बेहोश हो जाते हैं। इसके अन्य लक्षणों में मरीज को उलटी आना और चिड़चिड़ापन, दिमाग का संतुलित न रहना, मांसपेशियों में कमजोरी, बोलने और सुनने में समस्या आना और बार-बार बेहोश हो जाना है।डॉक्टरों के अनुसार, इंसेफ़ेलाइटिस सिंड्रोम मस्तिष्क के ऊतकों की सूजन है। एक बार जब वायरस ख़ून के अंदर प्रवेश कर जाता है, तो यह मस्तिष्क के ऊतकों में जाना शुरू करता है और ख़ुद की संख्या कई गुना कर लेता है। जैसे ही हमारे इम्यून सिस्टम को इसका पता चलता है, तो इसकी प्रतिक्रिया में दिमाग तपने लगता है या इसमें सूजन आ जाती है।कैसे करें बचाव
बच्चों को ख़राब हो चुके फल न खाने दें। सफ़ाई का विशेष ध्यान रखें। खाने से पहले और बाद में साबुन से हाथ ज़रूर धुलवाएँ। साफ़ पानी पीएँ। बच्चों को अच्छा खाना खिलाएँ। बच्चों को ज़्यादा से ज़्यादा पानी पिलाएँ ताकि उनके शरीर में पानी की कमी न हो।
अब सवाल यह है कि जब हर साल बिहार में इस बीमारी से बच्चों की मौत हो जाती है तो आज तक ये सरकारें कहाँ सोई हुई थी। क्यों नहीं इसके लिए पहले से ही सारे इंतजाम किए गए।
बिहार में तो बीजेपी-जेडीयू मिलकर सरकार चला रहे हैं और केंद्र में भी साथ-साथ हैं। ऐसे में इनके पास संसाधनों की भी कोई कमी नहीं है तो क्या सिर्फ़ यह कहने से कि लीची खाने से बच्चों की मौत हो रही है, इससे क्या सरकार अपनी ज़िम्मेदारी से बच सकती है। अगर लीची से ऐसा हो रहा है तो बच्चों को इलाज तो सरकार मुहैया करा ही सकती है, या यह भी उसके बस की बात नहीं है, ऐसा तब है जबकि यह कोई नई घटना नहीं है।