बिहार: सरकार बनते ही मंत्री मेवालाल चौधरी का इस्तीफ़ा
बिहार में सरकार बनते ही नीतीश सरकार के मंत्री मेवालाल चौधरी को इस्तीफ़ा देना पड़ा है। मेवालाल पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं और उन्हें सरकार में मंत्री बनाए जाने के बाद से नीतीश कुमार की आलोचना हो रही थी। बिहार में नई सरकार के मंत्रियों ने 16 नवंबर को शपथ ली थी।
नई नवेली नीतीश सरकार में जेडीयू के कोटे से विजय कुमार चौधरी, विजेंद्र यादव, अशोक चौधरी, मेवालाल चौधरी और शीला मंडल ने मंत्री पद की शपथ ली थी। मेवालाल चौधरी को शिक्षा मंत्री बनाया गया था।
जिन मेवावाल चौधरी को नीतीश कुमार ने जेडीयू से निकाल दिया था, बीजेपी नेता सुशील मोदी ने उनकी गिरफ़्तारी की मांग की थी, उन्हें नीतीश सरकार में शिक्षा मंत्री क्यों बनाया गया, यह सवाल बिहार में पूछा जा रहा था। मुख्य विपक्षी दल आरजेडी ने इसे मुद्दा बना लिया था और मेवालाल को मंत्री पद से हटाने की मांग की थी। मेवालाल चौधरी तारापुर से जेडीयू के विधायक चुने गए हैं।
आरजेडी ने कहा था, "नीतीश कुमार ने भ्रष्ट जेडीयू विधायक मेवालाल को मंत्री पद दिया है। यह नीतीश कुमार का दोहरा मापदंड है, जो स्वयं भ्रष्टाचार के 60 मामलों के मुखिया हैं। यह व्यक्ति कुर्सी के लिए किसी स्तर तक जा सकता है।"
घपले का आरोप
चौधरी पर आरोप है कि उन्होंने भागलपुर स्थित बिहार कृषि विश्वविद्यालय के उप कुलपति पद पर रहते हुए सहायक प्रोफ़ेसर और कनिष्ठ वैज्ञानिकों की नियुक्त में घपला किया था। तत्कालीन राज्यपाल रामनाथ कोविंद की अनुशंसा पर भागलपुर के सबौर थाने में मेवालाल के ख़िलाफ़ 20 फरवरी, 2017 को मामला दर्ज किया गया था। नियुक्ति में कथित अनियमितता से जुड़ी कई शिकायतें मिलने के बाद राज्यापाल ने उनके ख़िलाफ़ जांच की सिफारिश की थी।
मेवालाल चौधरी पर धारा 409 (विश्वास तोड़ने), 420 (धोखाधड़ी), 467 (जमानत में रखी मूल्यवान चीजों की धोखाधड़ी), 468 (ठगने के मक़सद से धोखाधड़ी), 471 (फ़र्जी काग़ज़ात को असली बता कर पेश करना) और 120 बी (साजिश) के तहत मामला दर्ज किया गया था। इसके बाद उन्हें जेडीयू से निकाल दिया गया था।
जेडीयू में की वापसी
मेवालाल ने पटना हाई कोर्ट में अग्रिम ज़मानत की याचिका दायर की थी और उन्हें 22 अगस्त, 2017 को अग्रिम ज़मानत मिल गई थी। जनवरी, 2018 में वह पार्टी में लौट आए थे।
मेवालाल 2010 से 2015 तक बिहार कृषि विश्वविद्यालय के उप कुलपति थे। विश्वविद्यालय ने 2011 में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर व जूनियर साइंटिस्ट के 281 पदों की नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला था। साल 2012 में सामान्य वर्ग के 161 पदों पर नियुक्ति कर दी गई। इसके लिए 2,500 लोगों को इंटरव्यू में बुलाया गया था।
इंटरव्यू में फेल हुई एक प्रार्थी अनामिका कुमारी ने शिकायत दर्ज कराई थी और कई लोगों ने भी शिकायत की थी। इसकी जांच हुई और 63 पेजों की रिपोर्ट सरकार को सौंपी गई। यह रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपी गई और राज्यपाल ने मेवालाल चौधरी के ख़िलाफ़ मामला दर्ज करने का आदेश दिया था।
हमलावर हुई थी कांग्रेस
कांग्रेस नेता प्रेम चंद्र मिश्रा ने मेवालाल को शिक्षा मंत्री बनाए जाने पर कहा था, "भ्रष्टाचार में शामिल व्यक्ति और उस पर भी जूनियर प्रोफ़ेसर की नियुक्ति में हुए घपले से जुड़े आदमी को शिक्षा मंत्री बनाए जाने से भ्रष्टाचार एकदम बर्दाश्त नहीं करने के नीतीश कुमार के दावे की पोल खुल जाती है।"
पत्नी की मौत का मामला
मेवालाल चौधरी एक दूसरे विवाद में भी फंसे हुए हैं। पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ दास ने बिहार के पुलिस महानिदेशक को एक चिट्ठी लिख कर मेवालाल की पत्नी नीरा चौधरी की मौत की जांच कराने की मांग की है। नीरा चौधरी को जली हुई स्थिति में अस्पताल में भर्ती कराया गया था और 2 जून, 2019 को उनकी मौत हो गई थी। दास का आरोप है कि नीरा चौधरी को मेवालाल के घपलों की जानकारी थी।