बिहार चुनाव: 30% प्रत्याशी दाग़ी, अपराधियों ने पत्नियों को उतारा
दाग़ियों और आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को चुनाव लड़ने से रोकने का हर प्रयास नाकाम हो रहा है। बिहार चुनाव में ही क़रीब 30 फ़ीसदी उम्मीदवार दाग़ी हैं यानी ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ गंभीर आपराधिक मामले चल रहे हैं। कई तो ऐसे हैं जो ऐसे मामलों का सामना कर रहे हैं और उन्होंने अपनी पत्नियों को चुनाव मैदान में उतार दिया है। यह सब तब हो रहा है जब इसी साल सुप्रीम कोर्ट ने दाग़ियों को चुनाव से दूर रखने के लिए एक अहम फ़ैसला दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने फ़रवरी महीने में सभी राजनीतिक दलों को निर्देश दिया था कि वे अपने दाग़ी उम्मीदवारों की जानकारी ऑनलाइन प्रकाशित करें। चुनावों में उम्मीदवार के चयन की जानकारी वेबसाइट व ट्विटर, फ़ेसबुक जैसे सोशल मीडिया और स्थानीय एवं राष्ट्रीय अख़बारों में प्रकाशित कर दी जानी चाहिए।
उम्मीदवारों के चुनाव करने के 72 घंटों के भीतर चुनाव आयोग को जानकारी देनी होगी। पार्टियों को यह भी बताना है कि आपराधिक केसों का सामना कर रहे लोगों को पार्टी ने क्यों टिकट दिया है। जस्टिस आर.एफ़. नरीमन और जस्टिस रविंद्र भट की पीठ ने कहा कि इसमें यह भी बताया जाए कि उम्मीदवार के ख़िलाफ़ किस तरह के अपराध का आरोप है और मामले की जाँच कहाँ तक पहुँची है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि ऐसा न करने पर इसे सुप्रीम कोर्ट की अवमानना माना जाएगा।
अब सुप्रीम कोर्ट के इन निर्देशों के बाद क्या चुनाव में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों पर असर पड़ा है यह देखना है तो बिहार चुनाव इसका ताज़ा उदाहरण है।
सुप्रीम कोर्ट के उस फ़ैसले के बाद यह पहला चुनाव है। बिहार में पहले चरण के लिए उम्मीदवारों ने नामाँकन भर दिया है। पहले चरण में 16 ज़िलों के 71 विधानसभा क्षेत्रों में 28 अक्टूबर को मतदान होगा। इसके साथ चुनाव आयोग को दिए गए हलफनामे में उम्मीदवारों ने अपने ख़िलाफ़ चल रहे आपराधिक मामलों की जानकारी भी दी है। चुनाव आयोग के आँकड़ों के अनुसार ही 1066 प्रत्याशियों में से 319 ऐसे हैं जिन्होंने ख़ुद माना है कि उनके ख़िलाफ़ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इसमें सभी दलों के दाग़ी उम्मीदवार शामिल हैं।
गया ज़िले के 10 विधानसभा क्षेत्रों में दाग़ी उम्मीदवारों की संख्या 49 है जो किसी ज़िले में सबसे ज़्यादा है। भोजपुर में 39, रोहतास में 37, बक्सर में 23 ऐसे दाग़ी उम्मीदवार हैं।
इस चुनाव में आपराधिक मामलों का सामना कर रहे चर्चित नामों में अनंत सिंह हैं। वह आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। पहले वह जेडीयू से चुनाव लड़ चुके थे लेकिन बाद में उनकी नीतीश कुमार से नहीं बनी। अनंत सिंह के ख़िलाफ़ 38 आपराधिक मामले हैं। इसमें सात तो हत्या के मामले हैं और बाक़ी हत्या के प्रयास, अगवा करने आदि के हैं। एक हिस्ट्रीशीटर रीत लाल यादव को भी आरजेडी ने टिकट दिया है। उनके ख़िलाफ़ कई आपराधिक मामले हैं। नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने मंजू वर्मा को फिर से टिकट दिया है। वह पूर्व में नीतीश सरकार में सामाजिक न्याय मंत्री थीं। मुज़फ़्फ़रपुर शेल्टर होम मामले में उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा था, उनको जेल हुई थी और फ़िलहाल वह ज़मानत पर बाहर हैं।
मुज़फ्फ़रपुर शेल्टर होम मामले में मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर को पूर्व समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा का क़रीबी माना जाता है। ब्रजेश ठाकुर को आजीवन कारावास की सज़ा हुई है। शेल्टर होम में 34 लड़कियों से दुष्कर्म होने का मामला सामने आया था। तब कहा गया था कि वह फरार हो गई थीं। मंजू वर्मा की गिरफ़्तारी न होने पर सुप्रीम कोर्ट ने बिहार पुलिस की खिंचाई की थी। पुलिस क़रीब दो महीने से उनकी तलाश में छापेमारी कर रही थी। आख़िरकार नवंबर 2018 में मंजू वर्मा ने आत्मसमर्पण कर दिया था।
दाग़ियों की पत्नियाँ भी मैदान में
दाग़ी तो चुनाव मैदान में हैं ही, जो ख़ुद टिकट पाने की स्थिति में नहीं हैं उन्होंने अपनी पत्नियों को टिकट दिला दिया है। इसकी सूची भी काफ़ी लंबी-चौड़ी है। मंजू वर्मा को भी इसी सूची में गिना जा सकता है। उनके पति चंद्रशेशर वर्मा जेडीयू के नेता हैं। इनके अलावा आरजेडी ने आनंद मोहन की पत्नी और उनके बेटे को टिकट दिया है। आनंद मोहन गोपालगंज के दलित डीएम और आईएएस जी कृष्णैया की 1994 में हत्या के मुख्य अभियुक्त हैं और आजीवन कारावास झेल रहे हैं। उनकी पत्नी लवली आनंद और उनके बेटे चेतन आनंद को आरजेडी ने टिकट दिया है।
बीजेपी ने डॉन अखिलेश सिंह की पत्नी अरुणा देवी को नवादा के वरिसालीगंज से टिकट दिया है। 2017 में एक शूटआउट में मारे गए गैंगस्टर विशेश्वर ओझा की रिश्तेदार मुन्नी देवी को टिकट दिया है।
जेडीयू ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले बिंदी यादव की विधवा मनोरमा देवी को टिकट दिया है। वह गया के अटरी सीट से चुनाव लड़ रही हैं।
उनका परिवार तब चर्चा में आया था जब रॉकी यादव ने उसकी कार को ओवरटेक करने पर स्कूल छात्र की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके लिए रॉकी को आजीवन कारावास की सज़ा हुई है। बिंदी यादव को भी पाँच साल की सज़ा हुई थी। उनकी हाल ही में कोरोना से मौत हो गयी है।
दुष्कर्म के आरोपी अरुण यादव ने अपनी पत्नी किरण देवी को आरजेडी का टिकट दिलाया है। यह सूची काफ़ी लंबी है।
दरअसल, यह सूची यह दिखाती है कि राजनीति में अपराध कम नहीं हो रहा है। समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा उठाए जाने वाले क़दमों के बावजूद राजनीतिक दल बचने का कोई न कोई रास्ता ढूंढ निकालते हैं। कहा जाता है कि राजनीति के अपराधीकरण का यह दौर क़रीब चार दशकों से चल रहा है लेकिन ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा है। बिहार का इस मामले में रिकॉर्ड और भी ख़राब है। इस चुनाव के पहले चरण के चुनाव में उतरे दाग़ी उम्मीदवारों का आँकड़ा तो आ गया है लेकिन दूसरे और तीसरे चरण का आँकड़ा अभी बाक़ी है। चुनाव बाद पता चलेगा कि अपराधियों की वास्तविक संख्या क्या है। वैसे, एडीआर यानी एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ॉर्म्स की रिपोर्ट के अनुसार 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जीतने वाले 136 विधायकों (57 फ़ीसदी) के ख़िलाफ़ आपराधिक मामले चल रहे हैं। इसमें से 94 ने गंभीर आपराधिक मामले होना स्वीकार किया है।