आंध्र और बिहार के लिए 'विशेष दर्जे' की मांग क्यों? जानें क्या फायदा
नीतीश कुमार के जेडीयू और चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी के सामने अब 'विशेष राज्य के दर्जे' की मांग के लिए दबाव डालने का बढ़िया मौक़ा है। दोनों नेता इसके लिए लंबे समय से आवाज़ उठाते रहे हैं। दोनों ही नेता एनडीए के साथ रहे भी हैं, लेकिन बीजेपी इसके लिए दबाव में आती नहीं दिखी। तो क्या अब वह स्थिति आ गई है? आख़िर विशेष राज्य के दर्जे के लिए बिहार और आंध्र प्रदेश क्यों मांग कर रहे हैं?
विशेष दर्जा मिलने से क्या फायदा होगा और इसके तहत क्या प्रावधान हैं, यह जानने से पहले यह जान लें कि विशेष राज्य का दर्जा कैसे मिलता है। विशेष श्रेणी का दर्जा भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहे राज्यों के विकास को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा दिया जाता है।
विशेष दर्जे से फायदा क्या?
विशेष श्रेणी का दर्जा पाए राज्यों को कई लाभ मिलते हैं। इन राज्यों को बढ़ी हुई फंडिंग मिलती है। अगर किसी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा मिल जाता है तो केंद्र सरकार की योजनाओं के लिए 90% पैसा केंद्र सरकार देती है जबकि 10% पैसा राज्य सरकार को देना होता है। जबकि अभी केंद्र सरकार की योजनाओं में केंद्र सरकार 60 फ़ीसदी पैसा देती है और राज्य सरकार 40 फ़ीसदी। कुछ योजनाओं में यह आंकड़ा 50-50 फ़ीसदी का है।
विशेष श्रेणी के राज्य एक वित्तीय वर्ष से दूसरे वित्तीय वर्ष में बिना इस्तेमाल किए गए फंड को आगे बढ़ा सकते हैं, जिससे संसाधनों का सही उपयोग हो जाता है।
इसके अलावा, इन राज्यों को कर रियायतें भी मिलती हैं, जिसमें उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क में छूट के साथ-साथ आयकर और कॉर्पोरेट कर भी शामिल हैं। विशेष श्रेणी के राज्यों को केंद्र के सकल बजट से 30% की राशि का आवंटन मिलता है।
फ़िलहाल, देश में 11 राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है। असम, नगालैंड, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम, उत्तराखंड और तेलंगाना सहित ग्यारह राज्यों को विशेष श्रेणी का दर्जा दिया गया है। तेलंगाना को आंध्र प्रदेश से अलग होने के बाद इसके गठन के समय यह दर्जा दिया गया था।
नीतीश की क्या रही है मांग?
नीतीश कुमार कहते रहे हैं कि अगर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिल जाता तो राज्य सरकार के पास कुछ पैसा बचता और इससे राज्य का काफी विकास होता।
जेडीयू नेताओं की ओर से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने को लेकर तमाम तर्क दिए जाते रहे हैं। इसमें एक तर्क यह भी है कि बिहार की प्रति व्यक्ति आय बेहद कम है। जेडीयू के नेताओं का कहना है कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलने से केंद्रीय सहायता में वृद्धि होगी और अलग-अलग तरह के करों में छूट मिलेगी और इस वजह से बिहार विकसित राज्यों की श्रेणी में खड़ा हो सकेगा।
नीतीश कुमार ने 2022 में कहा था कि अगर 2024 में केंद्र की हुकूमत में ग़ैर बीजेपी दलों की सरकार बनी तो सभी पिछड़े राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाएगा। तब नीतीश विपक्षी दलों को एकजुट करने के अभियान में जुटे थे।
आंध्र को फायदा क्यों नहीं मिला?
आंध्र प्रदेश के लिए 'विशेष दर्जा' बनाम 'विशेष पैकेज' का मुद्दा फिर से सामने आया है। इसमें तेलुगु देशम पार्टी अगली एनडीए सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। चंद्रबाबू नायडू के लिए यह एक महत्वपूर्ण लड़ाई है क्योंकि उन्हें केंद्र से अपने 'अधिकारों' को नहीं पाने के लिए राज्य में कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा। इसी वजह से 2018 में टीडीपी भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए से अलग हो गई थी। बाद में राज्य विधानसभा में उसकी सत्ता चली गई थी।
टीडीपी आंध्र प्रदेश के लिए 'विशेष दर्जे' की मांग करती रही है, लेकिन इसके बदले इसको 'सहायता पैकेज' दिया जाता रहा है। 2016-17 में दिए गए विशेष 'सहायता पैकेज' से इसकी ज़रूरतें पूरी नहीं हुईं।
एनडीए के साथ गठबंधन में होने के बावजूद नायडू विशेष दर्जा हासिल करने में विफल रहे। इसके बजाय केंद्र ने कुछ परियोजनाओं के लिए ऋण और ब्याज की अदायगी सहित पांच साल के लिए 'विशेष सहायता' की पेशकश की। हालांकि, 'विशेष सहायता' निधि जारी करने में बाधाओं का सामना करना पड़ा क्योंकि लालफीताशाही बढ़ने से फंड उस गति से आगे नहीं बढ़ा। इस वजह से आंध्र प्रदेश में असंतोष पैदा हुआ। राज्य ने तर्क दिया कि विशेष सहायता पैकेज के तहत दिए गए मुआवजे की तुलना में विशेष दर्जे के तहत वादा किया गया मुआवजा बहुत अधिक होगा।
विपक्ष की आलोचना और दबाव का सामना करते हुए नायडू ने 2018 में एनडीए से अपना समर्थन वापस ले लिया था। उन्होंने कहा था कि विशेष दर्जा न देकर राज्य के साथ अन्याय किया गया है। तो क्या अब उसको यह दर्जा मिल पाएगा?