क्या बाइडेन को चुनने से अमेरिकी जनता ताड़ से गिर कर खजूर पर अटकेगी?
अमेरिका भारी यंत्रणा से गुजर रहा है। राष्ट्रपति चुनाव के बस दो महीने रह गए हैं। अनेक अमेरिकियों के मन में इसे लेकर धुकधुकी लगी हुई है कि उनके देश का अगला राष्ट्रपति कौन होगा। कहीं डोनल्ड ट्रम्प को ही तो दुबारा नहीं चुन लिया जाएगा बावजूद इसके कि कोरोना वायरस संक्रमण के संकट के दौरान यह आईने की तरह साफ़ हो गया कि ट्रम्प एक नालायक और नाकाबिल प्रशासक हैं।
सिर्फ नाकाबिल ही नहीं, ट्रम्प देश के लिए ख़तरनाक हैं, यह बात पिछले चुनाव के पहले अमरीका के बड़े मनोचिकित्सकों ने भी चेतावनी के तौर पर कही थी। लेकिन अमेरिकी जनता ने उन्हें नहीं सुना। इन चार सालों में ट्रम्प ने अमरीका का कितना नुक़सान किया या उसे कितना तोड़ दिया या कितना लाचार कर दिया, इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि अब ट्रम्प से छुटकारा पाने के लिए उसके पास जो बाइडेन का ही विकल्प बचा है।
निर्विकल्पता
इस निर्विकल्पता से कई भले अमरीकियों के मन में विद्रोह जग रहा है। कोलंबिया विश्वविद्यालय में ईरानी अध्ययन और तुलनात्मक साहित्य के अध्यापक हामिद दबाशी ने ट्रम्प के बदले बाइडेन के विकल्प को लेकर ‘अल जज़ीरा’ के अपने एक लेख में अपनी घिन ज़ाहिर की है। डेमोक्रेटिक पार्टी ने जो बाइडेन और कमला हैरिस की जो जोड़ी राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के तौर पर अमरीकी मतदाताओं के सामने प्रस्तावित की है, वह अभी के शासकों से किसी भी तरह बेहतर नहीं है, यह दबाशी का मानना है।
दबाशी कहते हैं कि जिस तरह डेमोक्रेटिक पार्टी ने बर्नी सैंडर्स को उम्मीदवारी की दौड़ से बाहर करवा दिया, उससे जाहिर है कि वह अमरीकी जनता को ताड़ से गिराकर खजूर में अटकाना चाहती है।
दबाशी के तर्क विचार योग्य हैं। वे कहते हैं कि ट्रम्प के दहशतनाक या दहशतगर्द राष्ट्रपतित्व और उसके दौर में उभरे विकृत नस्लवाद से घबराकर अगर बाइडेन और कमला के साए में पनाह ली जाएगी तो फिर उसी राजनीतिक संस्कृति को और मजबूती मिलेगी, ट्रम्प जिसकी एक और अब तक की सबसे विकृत लगनेवाली अभिव्यक्ति ट्रम्प है। लेकिन क्या हम बुश पिता-पुत्र को भूल सकते हैं और रोनल्ड रेगन को उस वक़्त वही इंतहा जान पड़ती थी। जो मुल्क बुश को चुन सकता है, उसे ट्रम्प तक पहुँचने में वक़्त नहीं लगेगा।
बाइडेन क्यों
अमेरिका में बाइडेन को लेकर ऊहापोह का हवाला दबाशी के लेख में है। नोम चोम्स्की, अंजेला डेविस, कोर्नेल वेस्ट जैसे विचारक कह रहे हैं कि ट्रम्प अमरीका की आत्मा को ही खा डालेगा, इसलिए बाइडेन को चुन लिया जाना चाहिए।
बाइडेन भी नस्लवादी हैं, वे फ़िलीस्तीन की आज़ादी के ख़िलाफ़ एक ज़ियानवादी नज़रियेवाले राजनेता हैं और उनका स्त्रीविरोध जाना हुआ है।
इस चुनाव अभियान में ही बाइडेन ने अपना असली रंग दिखला दिया, जब उन्होंने पार्टी की फ़िलीस्तीनी अमरीकी सदस्य लिंडा सरसूर को प्रचार से बाहर कर दिया क्योंकि वह इज़रायल के विस्तारवाद के ख़िलाफ़ काम करती हैं।
ओबामा की अपील
दबाशी ने कहा कि बाइडेन को वोट देने को लेकर उनके मन में थोड़ी दुविधा थी, लेकिन बाइडेन के पक्ष में बराक ओबामा की भावुकतापूर्ण अपील के बाद उन्होंने खुद को इससे आज़ाद कर लिया और आखिरी तौर पर तय किया कि वे बाइडेन को वोट नहीं ही देंगे।
दबाशी के मुताबिक़, ओबामा उस अमेरिकी राजनीतिक संस्कृति के वकील हैं, जिसे बदला जाना ही चाहिए, अगर इस दुनिया को चैन से जीना है। यह अमरीकी श्रेष्ठता के विचार पर टिकी है।
अमेरिकी श्रेष्ठता
इस दावे पर कि अमरीका पूरी दुनिया में जनतंत्र का रक्षक या संरक्षक है। यह वह तय करेगा कि कहाँ जनतंत्र की हानि हो रही है और उसे बहाल करने के लिए उस मुल्क या इलाक़े में दखलंदाजी का उसे पूरा हक़ है। वह इसे अपना दैवी अधिकार मानता है कि इस पृथ्वी के संसाधनों का बँटवारा और उपयोग कैसे किया जाए और किसके पास कितनी ताक़त हो। इसलिए सारी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में भी वह विशेषाधिकार चाहता है।अमरीका की जनता के लिए आज पूरी दुनिया के लोग चिंतित हैं और वे मना रहे हैं कि उसे ट्रम्प से मुक्ति मिले। दबाशी का कहना है कि फौरी राहत के लिए अपनी आलोचनात्मकता को स्थगित नहीं किया जा सकता। या आलोचनात्मकता आख़िरी जिम्मेवारी के सवाल से जुड़ी हुई है। उसका रिश्ता इस प्रश्न से है कि आख़िर हम किसे न्यायपूर्ण और भला जीवन कहते हैं और उसके लिए किस प्रकार की राजनीति चाहिए।
विकल्प का इंतजार
दबाशी की बात में दम है। लेकिन बिलकुल दुरुस्त विकल्प की प्रतीक्षा में ट्रम्प को और सत्ता में बने रहने देने के नतीजे अमरीका के लिए घातक हो सकते हैं। ट्रम्प के एक एक क्षण से अमरीकी जन जीवन के सोचने और व्यवहार में जो क्षरण आता जाएगा, उससे उबरना और उसके लिए वापस सभ्यता हासिल करना हरेक बीतते पल के साथ कठिनतर होता जाएगा। जो कटुता पैदा होगी उसके असर से पीढ़ियाँ बीमार रहेंगी।
कहा जाता है कि शैतान अपने शिकार को अपनी शक्ल में ढाल लेता है। ट्रम्प की अवधि जितनी बढ़ती है, बाइडेन जैसे लोगों के लिए स्थान उतना ही बढ़ता है। अगर एक जड़ दीवार में घुस जाए तो वह दीवार सीलती ही जाएगी और ढह जाएगी। जड़ भीतर गहरे न धँसे, इसका उपाय करना ज़रूरी है।
श्रेष्ठ श्रेष्ठतर को प्रेरित भले न करे, बुराई अपने से बड़ी बुराई के लिए जगह बढ़ाती जाती है। दबाशी को भारत के लेखक यू. आर. अनंतमूर्ति का शायद पता न हो।
अनंतमूर्ति ने 2014 के पहले भारत की जनता को चेतावनी दी थी कि वे एक हिंसक और घृणा के प्रचारक को अगर सत्ता देंगे तो वह जनता की ताक़त को ही सोख लेगा और वह खुद को लाचार मानने लगेगी और उसकी ग़ुलाम हो जाएगी। वह उसे नैतिक कायरों की जमात में बदल देगा।
भारत आज कसमसा रहा है, लेकिन जिस दलदल में वह फँस गया है उसमें और भीतर ही धँसता जा रहा है। अमेरिका को इसीलिए तय करना पड़ेगा कि जो वह अब तक नहीं कर पाया, उसके अभाव का विलाप करते हुए क्या वह ट्रम्प को इसलिए बर्दाश्त करने को तैयार है कि शुद्ध विकल्प उसके पास नहीं है कहीं ये वे तो नहीं कह रहे जिन्हें ट्रम्प के बने रहने से कोई अस्तित्वगत संकट नहीं