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मध्य प्रदेश स्वास्थ्य महकमे के अफ़सरों का ‘बर्ताव’ मौलाना साद की तरह है?

मध्य प्रदेश स्वास्थ्य महकमे के अफ़सरों का ‘बर्ताव’ मौलाना साद की तरह है?

मध्य प्रदेश स्वास्थ्य महकमे के आला अफ़सरों ने क्या तब्लीग़ी मरकज़ के मुखिया मौलाना साद की तरह ‘बर्ताव’ नहीं किया है? क्या अफ़सरों ने विदेश यात्रा की जानकारी छुपाई और लापरवाही बरती?

मध्य प्रदेश स्वास्थ्य महकमे के आला अफ़सरों ने क्या तब्लीग़ी जमात के मुखिया मौलाना साद की तरह ‘बर्ताव’ नहीं किया है इस तरह के अनेक सवाल मध्य प्रदेश में उठ रहे हैं। ख़ासतौर पर भोपाल में हेल्थ डिपार्टमेंट के कनिष्ठ कर्मचारियों के परिजन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को ‘जमाती’ की संज्ञा देने से भी नहीं चूक रहे हैं। ये वो परिवार हैं जिनके अपने कोरोना की चपेट में आए हैं।

दरअसल, सोमवार शाम तक के भोपाल के कुल 63 कोरोना मरीजों में 29 अकेले स्वास्थ्य विभाग के थे। राजधानी में बीते गुरुवार को सबसे पहले स्वास्थ्य विभाग के एक संचालक (आईएएस अफ़सर) जे. विजयकुमार की कोरोना की रिपोर्ट पाॅजिटिव आयी थी। जे विजय कुमार के बाद शुक्रवार को प्रमुख सचिव स्वास्थ्य पल्लवी जैन गोविल और अन्य संचालक डाॅ. वीणा सिन्हा कोविड-19 से ग्रस्त मिलीं। प्रमुख सचिव स्वास्थ्य जैन और डायरेक्टर सिन्हा के कोरोना पाॅजिटिव मिलने से न केवल नौकरशाही बल्कि स्वास्थ्य महकमे में हड़कंप मच गया।

ये अफ़सर सतत उच्च-स्तरीय उन बैठकों में शामिल हो रहे थे जिनमें मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव समेत अनेक आला अधिकारी मौजूद रहते थे। पल्लवी जैन समेत कोविड-19 के पाॅजिटिव मिले अफ़सरों के संपर्क में आए कई अधिकारियों और कर्मचारियों ने स्वयं को क्वरेंटाइन किया। मुख्य सचिव इक़बाल सिंह भी स्वयं को क्वरेंटाइन किये हुए हैं।

भोपाल में शुक्रवार से सोमवार चार तक दिनों में स्वास्थ्य विभाग के 29 लोग कोरोना के शिकार हो चुके हैं। यह धारणा आम है कि आला अफ़सरों की कथित लापरवाही की वजह से स्वास्थ्य विभाग में कोरोना फैला है। चूँकि कोरोना पाॅजिटिव होने की शुरुआत संचालक और प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारियों से हुई है, लिहाज़ा आम धारणा को बल मिल रहा है।

इस बीच यह बात भी सामने आयी है कि प्रमुख सचिव स्वास्थ्य जैन का बेटा मार्च महीने में ही अमेरिका से लौटा है। स्वास्थ्य विभाग की एक अन्य कोरोना पाॅजिटिव महिला अफ़सर के बेटे या बेटी के भी मार्च महीने में विदेश से लौटने की सुगबुगाहट बनी हुई है। एक अधिकारी द्वारा लाॅकडाउन में तेलंगाना और हैदराबाद के ‘व्यक्तिगत दौरे’ तथा लाॅकडाउन के पहले थाइलैंड की कथित यात्रा भी चर्चाओं में हैं। 

ऐसा माना जा रहा है कि विदेश दौरे से लौटे परिजनों और स्वयं की व्यक्तिगत यात्राओं के मद्देनज़र ज़िम्मेदार अफ़सर वक़्त रहते स्वयं को स्वेच्छा से क्वरेंटाइन कर लेते तो स्वास्थ्य विभाग में हालात बेकाबू नहीं होते।

राज्य मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों ने प्रमुख सचिव पल्लवी जैन के बेटे की विदेश वापसी को लेकर सूचना न देने और प्रोटोकाॅल के उल्लंघन से इनकार किया है। सूत्रों का कहना है, ‘यूएसए प्रोटोकाॅल सूची में नहीं था, इसी वजह से जैन ने सूचना नहीं दी।’

इधर स्वास्थ्य महकमे के जानकार कह रहे हैं, ‘यह बात सच है कि यूएसए प्रोटोकाॅल सूची में नहीं था, लेकिन देश के ज़िम्मेदार नागरिक की भूमिका पल्लवी जैन और अन्य आला अधिकारी निभा सकते थे। स्वास्थ्य महकमे में होने की वजह से अधिकारियों को जानलेवा रोग के फैलाव की वजह की तमाम जानकारियाँ रही होंगी। यदि वे स्वयं को परिजन के विदेश से लौटते ही स्वेच्छा से क्वरेंटाइन कर लेते तो शायद आज जैसा भयावह दृश्य भोपाल स्वास्थ्य महकमे में नहीं उपजा होता।’

मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक महेश श्रीवास्तव भी स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के रवैये को बेहद ग़ैर-ज़िम्मेदाराना, अशोभनीय और निंदनीय क़रार दे रहे हैं। वह यह भी सवाल खड़ा कर रहे हैं कि - पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की 20 मार्च को प्रेस कॉन्फ़्रेंस में जाने वाले उस पत्रकार पर ज़िला प्रशासन ने केस दर्ज कर लिया जिनकी बेटी 18 मार्च को लंदन से भोपाल लौटी थी और बाद में कोरोना पाॅजिटिव मिली थी।

महेश श्रीवास्तव यह भी सवाल उठा रहे हैं कि - ‘शनिवार को कोविड-19 पाॅजिटिव मिलने के बाद जैन समेत स्वास्थ्य विभाग के कई आला अफ़सर घर पर ही उपचार क्यों कराते रहे उन्होंने अस्पताल में भर्ती होने में आनाकानी क्यों की’

यहाँ बता दें कि घर पर रहकर इलाज कराना है या अस्पताल में, यह मरीज की गंभीरता को देखते हुए ज़िले के स्वास्थ्य अधिकारी की अनुशंसा पर निर्भर है। हालाँकि, सोमवार को मुख्य सचिव के निर्देश के बाद जैन और सिन्हा निजी अस्पतालों में उपचार के लिए भर्ती हुए। 

अब सवाल यह उठता है कि यदि किसी छोटे अधिकारी और कर्मचारी अथवा शहरी ने प्रोटोकाॅल की आड़ लेकर अमेरिका से परिजन की वापसी की जानकारी छिपाई होती और बाद में स्वयं कोरोना का शिकार हो जाता तथा लोगों में फैला देता तो क्या शिवराज सरकार इनको बख्श देती और क्या अब मिसाल कायम करने के लिए इन अफ़सरों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज करने का आदेश मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ख़ुद नहीं देना चाहिए

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