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शर्मनाक पत्रकारिता! लोग डूबते रहे, रेस्क्यू ‘रोक कर’ टीवी पर होता रहा ‘लाइव’

शर्मनाक पत्रकारिता! लोग डूबते रहे, रेस्क्यू ‘रोक कर’ टीवी पर होता रहा ‘लाइव’

भोपाल में लोग डूब रहे थे और बचाव के लिए गई नावें वीडियो बनवाने में लगी रहीं। गोताखोरों को मीडिया के लिए अच्छी फ़ुटेज देने के काम में लगा दिया गया। क्या मर गई इंसानियत?

मर गई इंसानियत! भोपाल में लोग डूब रहे थे और बचाव के लिए गई नावें वीडियो बनवाने में लगी रहीं। गोताखोरों को मीडिया के लिए अच्छी फ़ुटेज देने के काम में लगा दिया गया। बचाव दल के दूसरे लोगों को किनारे पर रोक दिया गया। मीडिया कर्मियों में आपाधापी थी। सबसे अच्छी फ़ुटेज लेने की। चिंता थी कैमरे चमकाने की। बाइट लेने की जल्दी थी। लोगों की जान की परवाह किसे! अधिकारी बोट पर बैठकर मीडिया के लिए बाइट देते रहे। और जब सवाल किया गया तो अधिकारी ने कहा दिया कि लोगों तक सूचना पहुँचाकर मीडिया मदद कर रहा था। बता दें कि ख़बर लिखे जाने तक डूबे लोगों को ढूँढने का काम जारी था।

दरअसल, घटना है भोपाल की। गणेश विजर्सन के दौरान शुक्रवार तड़के बड़ा हादसा हो गया। नाव पलटने से 11 युवकों की मौत हो गई। प्रतिमा विजर्सन के दौरान ज़िला प्रशासन और नगर निगम की बदइंतज़ामी और घनघोर लापरवाहियों की वजह से यह हादसा हुआ। दिल दहलाने वाली घटना के बाद मध्य प्रदेश के राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एसडीआरएफ़) और मीडिया का ‘कुरूप’ चेहरा भी सामने आया। रेस्क्यू ऑपरेशन को बाधित कर मीडिया वाले एसडीआरएफ़ की नावों पर सवार होकर अपने-अपने ‘चैनलों’ के लिए ‘लाइव’ करते रहे। इससे बचाव कार्य न केवल प्रभावित हुआ, बल्कि विलंब भी हुआ।

हादसे से लेकर रेस्क्यू ऑपरेशन को कवर करने वाले यूरोपियन प्रेस फ़ोटो एजेंसी के मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ राज्य के फ़ोटो जर्नलिस्ट संजीव गुप्ता ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘फ़ोटो जर्नलिस्ट के तौर पर काम करते हुए मुझे 37 साल हो गये हैं। भोपाल गैस कांड से लेकर एमपी-छत्तीसगढ़ के कई बड़े हादसों को मैंने कवर किया है, लेकिन मीडिया और एसडीआरएफ़ का ऐसा बदनुमा चेहरा पहले कभी नुमाया नहीं हुआ जो आज देखा।’

गुप्ता के मुताबिक़ हादसे के कोई डेढ़-दो घंटे बाद एसडीआरएफ़ की टीम मौक़े पर पहुँची। पौने छह बजे के क़रीब रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हुआ। हद तब हो गई जब टीम के मुखिया डी. सी. सागर के निर्देश पर रेस्क्यू में लगी पाँचों नावों को किनारे बुला लिया गया। नाव में मीडिया वाले और स्वयं सागर सवार हो गये (संजीव गुप्ता ने कहा, प्रमाण के तौर पर मेरे द्वारा क्लिक किए गए तमाम फ़ोटो और वीडियो हैं)।

संजीव गुप्ता के अनुसार, साढ़े सात से करीब साढ़े नौ बजे तक मीडिया वाले एसडीआरएफ़ की बोट से कवरेज और अपने-अपने चैनलों पर लाइव करते रहे। गुप्ता ने आगे कहा, यही नहीं, कई मीडिया वाले गोताखोरों को ‘निर्देश’ देते रहे कि ‘डुबकी मार दीजिये और निकल आइये’ - ये दृश्य भी मीडिया वालों ने अपने कैमरों में दिल भर कर ‘कैद किये’।

‘एक्शन सीन’ दिलाने में व्यस्त रही व्यवस्था!

गुप्ता ने कहा, ‘एसडीआरएफ़ के चीफ़ (एडिशनल डायरेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस रैंक के अफ़सर) सागर ने बोट पर बैठे-बैठे ही मीडिया वालों को बाइट दी। गोताखोर भी मीडिया वालों को ‘एक्शन सीन’ देने के साथ-साथ पानी से आधे निकलकर बाइट देते रहे।

भोपाल के एक सुधि नागरिक अमित दुबे भी हादसे की जानकारी लेने पहुँचे थे। उन्होंने भी मीडिया और एसडीआरएफ़ के कथित ग़ैर ज़िम्मेदाराना रवैये पर गहरा क्षोभ जताया।

बताया गया कि जब आमजन एसडीआरएफ़ और मीडिया वालों को किनारे पर खड़े होकर कोस रहे थे, तब अपने अफ़सर के निर्देश पर रेस्क्यू छोड़कर किनारे पर खड़े एसडीआरएफ़ के जवान भी अपने कप्तान (एसडीआरएफ चीफ़) के रवैये (रेस्क्यू बंद कर मीडिया वालों के साथ ‘जुट’ जाने) पर बुरी तरह ‘कलपते’ देखे गये।

 - Satya Hindi

मीडिया को फ़ुटेज देने के लिए बचाव दल और नाव को लगा दिया गया।

एसडीआरफ़ चीफ़ सागर की सफ़ाई

मीडिया की वजह से रेस्क्यू ऑपरेशन प्रभावित होने के सवाल पर एसडीआरफ़ के चीफ़ डी. सी. सागर ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘यह बात सही नहीं है। मीडिया की मदद लोगों तक जानकारियाँ पहुँचाने के लिए ली गई। मीडिया का रोल पूरे घटनाक्रम में मददगार का रहा। राहत और बचाव कार्य में इसकी वजह से विलंब के आरोप पूरी तरह से निराधार हैं।’

एबीपी न्यूज के मध्य प्रदेश संवाददाता बृजेश राजपूत ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘ख़बर को सबसे पहले अपने चैनल को पहुँचाने और बेहतर फ़ुटेज देने के लोभ में अनेक अवसरों पर इस तरह की आपाधापी हो जाती है। चूँकि भारत में विदेश की तरह दुर्घटनाग्रस्त इलाक़ों को मीडिया के जाने पर पाबंदी नहीं है - तमाशबीन भी पहुँचते हैं, यह भी इस तरह के हालात की एक मुख्य वजह है।

विसर्जन के लिए दो नावों को जोड़ा गया था

भोपाल में आधा दर्जन के लगभग स्थानों पर गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन होता है। खटलापुरा क्षेत्र के विसर्जन स्थल पर (छोटे तालाब में) शुक्रवार तड़के हादसा हुआ। यहाँ दो नावों को जोड़कर मंच बनाया गया था। इस पर सवार होकर क़रीब 19 लोग (ऐसा प्रत्यक्षदर्शियों और नाव में सवार रहे बचे लोगों में से कुछ का दावा है) प्रतिमा विसर्जन के लिए गहरे पानी में गये थे। नाव से प्रतिमा को तालाब में डालने के दौरान नाव पलट गई थी।

नाव पलटते ही चीख-पुकार मच गई। कुछ लोग किनारे पर खड़े पूरा घटनाक्रम अपने मोबाइल कैमरों में कैद करते रहे। जो तैरना जानते थे वे तैर कर किनारे पर पहुँच गये। बाक़ी लोग पानी में समा गये। समाचार लिखे जाने तक 11 शव बरामद कर लिये गये थे। अन्य लोगों की खोजबीन जारी थी।

मृतकों के परिजनों को 11-11 लाख की सहायता

हादसे में मारे गये युवकों की उम्र 18 से 35 वर्ष के बीच बतायी गई है। मृतकों में एक युवक 15 वर्षीय मुसलिम समुदाय से भी है। इसका नाम परवेज ख़ान है। नाव पर सवार लोगों को लेकर दो अलग-अलग दावे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि कुल 19 लोग नाव पर सवार थे, जबकि कुछ ने संख्या 25 से ज़्यादा होने का दावा किया है। छह लोगों में कुछ ख़ुद तैरकर किनारे आ गये थे, जबकि कुछ को मौक़े पर मौजूद लोगों ने बचा लिया।

मृतकों के परिजनों को प्रदेश सरकार ने 11-11 लाख रुपये की सहायता राशि मंज़ूर की है। राज्य सरकार ने पूरे मामले की मजिस्ट्रियल जाँच के आदेश दे दिए हैं। उधर नगर निगम ने भी दो-दो लाख रुपये की अनुग्रह राशि प्रत्येक मृतक के परिवार को देने का एलान किया है।

नाव चलाने वालों पर मुक़दमा

भोपाल पुलिस ने हादसे की शिकार नाव के चालक आकाश बाथम और चंगु बाथम के ख़िलाफ़ 304ए (ग़ैर इरादतन हत्या) का मामला दर्ज किया है।

ये लापरवाहियाँ सामने आयीं

  • विसर्जन के काम में लगी नावों में लाइफ़ जैकेट नहीं थीं
  • पर्याप्त संख्या में गोताखोर भी मौक़े पर तैनात नहीं किये गये थे
  • तैरना नहीं जानने वालों को विसर्जन के लिए जाने से नहीं रोका गया
  • एसडीआरएफ़ या प्रशिक्षित बचाव दल भी मौक़े पर तैनात नहीं थे
  • नावें विजर्सन के लिए फिट हैं या नहीं, कोई जाँच-पड़ताल नहीं की गई थी।
  • नाव वालों का पूरा विवरण भी पुलिस या निगम प्रशासन के पास नहीं था
  • विशाल प्रतिमाओं के विसर्जन क्रेन का उपयोग नहीं किया गया

2016 के हादसे से सबक नहीं लिया

भोपाल में साल 2016 में ऐसा ही हादसा हुआ था। गणेश प्रतिमा के विसर्जन के दौरान नाव पलट गई थी, जिसमें सवार पाँच लोगों की डूबने से मौत हो गई थी। हादसे के बाद ख़ूब सवाल उठे थे। आगे से सतर्कता बरतने का फ़ैसला हुआ था। नीति और नियम बने थे। साफ़ है, ‘सबक’ - कागजों और बयानबाज़ी तक ही सीमित रहा। यदि ऐसा नहीं होता तो भोपाल में पुनः इतना बड़ा हादसा नहीं होता।

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