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भीमा कोरेगांव केसः जेल में आरोपी भूख पड़ताल पर क्यों मजबूर

भीमा कोरेगांव केसः जेल में आरोपी भूख पड़ताल पर क्यों मजबूर

नवी मुंबई की तलोजा जेल में 7 लोग भूख हड़ताल पर हैं। ये लोग मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं और भीमा कोरेगांव केस में आरोपी हैं। इन्हें कोर्ट में जानबूझ कर पेश नहीं करने का आरोप लगाया गया है। अदालत ने निर्देश दिया कि इन सभी को कोर्ट में पेश किया जाए लेकिन इसके बावजूद अदालती आदेश की अनदेखी कर दी गई है। इस केस में कुछ लोगों को जमानत भी मिल चुकी है। फादर स्टेन स्वामी की मौत हो चुकी है। जानिये पूरा मामलाः

भीमा कोरेगांव मामले में 7 मानवाधिकार आरोपी शुक्रवार से भूख हड़ताल पर हैं। देश का मीडिया यह जानकारी ठीक से जनता को नहीं दे रहा है। इन 7 आरोपियों को इस मुकदमे के सिलसिले में उन्हें अदालत में किसी न किसी बहाने से पेश नहीं किया जा रहा है। मामले में आरोपी कार्यकर्ताओं - सागर गोराखे, सुधीर धावले, सुरेंद्र गाडलिंग, हनी बाबू, रोना विल्सन, रमेश गाइचोर और महेश राउत ने कहा कि पुलिस जानबूझकर उन्हें अदालत में पेश नहीं कर रही है। उनकी भूख हड़ताल का सोमवार को चौथा दिन है। ये सभी लोग फिलहाल नवी मुंबई की तलोजा जेल में बंद हैं।

मानवाधिकारों के लिए लड़ने वाले इन लोगों का आरोप है कि कई महीनों से उन्हें सुरक्षा कर्मियों के न होने या इसी तरह के हल्के-फुल्के बहाने बनाकर लगातार तय तारीखों पर अदालत में पेश नहीं किया जा रहा है।

भीमा कोरेगांव मामले की सुनवाई 9 अक्टूबर को थी लेकिन आरोपियों को सुनवाई के लिए अदालत में पेश नहीं किया गया। इसी मामले में आरोपी और सभी का केस लड़ रहे वकील सुरेंद्र गाडलिंग ने जेल से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अपनी दलीलें पेश कीं। उन्होंने अदालत को पूरी जानकारी दी। उनका बयान सुनने के बाद, मुंबई की विशेष एनआईए अदालत (नंबर 25) ने तलोजा सेंट्रल जेल को निर्देश दिया कि सभी कैदियों को अगली तारीख, 18 अक्टूबर (शुक्रवार) को अदालत में लाया जाए। लेकिन अदालत के इस साफ निर्देशों के बावजूद, नवी मुंबई पुलिस आयुक्त ने इसकी अनदेखी कर दी और इन लोगों को पेश नहीं किया।

वकील सुरेंद्र गाडलिंग और सागर गोरखे को एनआईए अदालत में उस दिन इस मुद्दे को पेश करना था और बॉम्बे हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका के लिए जरूरी दस्तावेज दाखिल करना था। इसके बावजूद 18 अक्टूबर को अदालत की तारीख पर भी सात कैदियों में से एक को भी अदालत में नहीं लाया गया।

18 अक्टूबर को इन लोगों को अदालत में पेश न करने की वजह बताई गई कि पुलिसकर्मी पर्याप्त संख्या में नहीं थे और वाहन भी नहीं था। लेकिन इन राजनीतिक कैदियों ने आरोप लगाया कि नवी मुंबई पुलिस आयुक्त इन संसाधनों का इस्तेमाल अन्य मकसद के लिए कर रही है।

भीमा कोरेगांव के इन 7 आरोपियों में से कुछ छह साल से और बाकी चार साल से जेल में हैं। इसके बावजूद मुकदमा शुरू नहीं हुआ है।


इस सिलसिले में बीके 16 ने बयान जारी किया है। यहां बीके 16 से अर्थ है- भीमा कोरेगांव के 16 आरोपी। बीके-16 ने कहा कि अदालत की तारीखों पर राजनीतिक कैदियों की जानबूझकर गैर-उपस्थिति उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।

31 दिसंबर, 2017 को कुछ जनसंगठनों ने मराठा संघ और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच भीमा कोरेगांव की लड़ाई की 200वीं वर्षगांठ मनाने के लिए पुणे के पास एल्गर परिषद का आयोजन किया। ब्रिटिश काल की उस सेना में महार दलित समुदाय के सदस्य शामिल थे। 1927 में, बाबासाहेब अम्बेडकर ने स्मारक का दौरा किया जिसके बाद दलित समूहों ने 1 जनवरी को हर साल महार सैनिकों को याद करना शुरू कर दिया।

1 जनवरी, 2018 को इस कार्यक्रम का कट्टर उग्र हिन्दू संगठनों ने इस कार्यक्रम का विरोध किया। भीमा कोरेगांव और पुणे के अन्य हिस्सों में हिंसा फैल गई और एक व्यक्ति की मौत हो गई। 2 जनवरी, 2018 को पुलिस ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पूर्व कार्यकर्ता संभाजी भिड़े और उनके सहयोगी मिलिंद एकबोटे के इस दंगे में शामिल होने का आरोप लगाते हुए पहला केस दर्ज किया।

पुलिस ने 8 जनवरी, 2018 को तुषार दामगुडे की शिकायत के आधार पर दूसरा मामला दर्ज किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि माओवादियों और कबीर कला मंच ने एल्गार परिषद में उत्तेजक गीतों, नाटकों और भाषणों के जरिये नफरत फैलाई, जिसके कारण भीमा-कोरेगांव में हिंसा हुई।

17 अप्रैल, 2018 को पुणे पुलिस ने अकादमिक रोना विल्सन (दिल्ली), दलित अधिकार कार्यकर्ता सुधीर धावले (मुंबई) आदि के आवासों पर तलाशी ली।

17 मई, 2018 को पुलिस ने यह बताते हुए कि तलाशी लेने पर आपत्तिजनक दस्तावेज़ मिले हैं, इस केस में काला कानून यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम) की धाराएं जोड़ दी गईं।

6 जून, 2018 को पुणे पुलिस ने रोना विल्सन, सुधीर धावले, सुरेंद्र गाडलिंग और शोमा सेन को गिरफ्तार किया।  28 अगस्त, 2018 को मानवाधिकार वकील सुधा भारद्वाज, कार्यकर्ता अरुण फरेरा, वर्नोन गोंसाल्वेस और तेलुगु कवि वरवरा राव को गिरफ्तार किया।

15 नवंबर, 2018 को पुलिस ने इस मामले में पहली चार्जशीट दाखिल की।  24 जनवरी, 2020 को मामला राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को ट्रांसफर कर दिया गया। 14 अप्रैल, 2020 को आनंद तेलतुंबडे और गौतम नवलखा ने सुप्रीम कोर्ट से गिरफ्तारी से राहत नहीं मिलने के बाद आत्मसमर्पण कर दिया।

28 जुलाई, 2020 को एनआईए ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू को गिरफ्तार किया।  8 अक्टूबर, 2020 को एनआईए ने आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी को रांची से गिरफ्तार किया।  22 फरवरी 2021 को बॉम्बे हाई कोर्ट ने 85 वर्षीय वरवरा राव को मेडिकल आधार पर जमानत दी।  28 मई, 2021 को हाईकोर्ट ने स्टेन स्वामी को अस्पताल में भर्ती करने का निर्देश दिया।

5 जुलाई, 2021 को फादर स्टेन स्वामी का अस्पताल में पुलिस की कस्टडी में निधन हो गया। उन्हें स्ट्रा पाइप से पानी पीने के लिए अदालत से अनुमति लेना पड़ी। स्टेन स्वामी की मौत न्याय पालिका और पूरे सिस्टम पर आज भी एक बदनुमा दाग की तरह है। एक मानवाधिकार कार्यकर्ता ने सही इलाज न मिलने पर दम तोड़ दिया।


1 दिसंबर, 2021 को हाईकोर्ट ने सुधा भारद्वाज को डिफ़ॉल्ट जमानत दी। 10 नवंबर, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने नवलखा को घर में नजरबंद रखने की इजाजत दी।  18 नवंबर, 2022 को हाईकोर्ट ने आनंद तेलतुंबडे को जमानत दी।  19 दिसंबर, 2023 को नवलखा को हाईकोर्ट से जमानत मिली।  17 अप्रैल, 2024 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा जमानत दिए जाने के 12 दिन बाद शोमा सेन जेल से बाहर आईं। 

यहां पर यह बताना जरूरी है कि जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद पर भी भीमा कोरेगांव केस में आरोप हैं। उमर खालिद लगातार 4 वर्षों से जेल में हैं। यह पांचवा साल है। लेकिन उमर खालिद को एक बार भी जमानत नहीं मिली। उन पर दिल्ली दंगों में भी शामिल होने का आरोप लगाया गया था। उमर खालिद के साथ ही जेएनयू के पूर्व छात्र नेता कन्हैया कुमार को भी गिरफ्तार किया गया था। कन्हैया जेल से बाहर हैं। अब कांग्रेस नेता हैं। दो बार लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन जीते नहीं। एक चुनाव सीपीआई टिकट पर और दूसरा कांग्रेस टिकट पर।

भीमा कोरेगांव केस में दंगा भड़काने के आरोपी संभाजी भी जेल से एक महीने बाद ही बाहर आ गए थे। यह बात अब दब गई कि भीमा कोरेगांव में एल्गार परिषद के कार्यक्रम के अगले दिन जो हिंसा हुई, उसके आरोप में आरएसएस से जुड़े रहे संभाजी गिरफ्तार किये गये थे। दलितों के इस कार्यक्रम से आरएसएस का हमेशा विरोध रहा है। उसे एल्गार परिषद का दलित समर्थक कार्यक्रम कभी पसंद नहीं आया। लेकिन आज देश में उस पर कोई बात नहीं हो रही है। बात सिर्फ यह हो रही है कि सारे मानवाधिकार कार्यकर्ता या तो माओवादी हैं या अर्बन नक्सल हैं या फिर देशद्रोही हैं। काले कानून यूएपीए की अदालतों में धज्जियां उड़ चुकी हैं लेकिन आज भी चुनिन्दा लोगों पर यूएपीए लगा धड़ल्ले से लगाया जा रहा है।

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