कोवैक्सीन 81% प्रभावी, नये क़िस्म का कोरोना भी रुकेगा: भारत बायोटेक
भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को मंजूरी देने के मामले में इसके तीसरे चरण के ट्रायल के जिन आँकड़ों को लेकर विवाद हुआ था वो अब आ गए हैं। भारत बायोटेक ने बुधवार दोपहर को ये आँकड़े जारी किए और कहा कि यह कोरोना को रोकने में 81 फ़ीसदी प्रभावी है।
कंपनी ने कहा है कि अंतरिम विश्लेषण से यह भी पता चला है कि गंभीर और साइड इफेक्ट यानी दुष्परिणाम निम्न स्तर की रहे। भारत बायोटेक ने यह भी दावा किया कि 'नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के विश्लेषण से पता चलता है कि टीके से बनी एंटीबॉडी ब्रिटेन में पाए गए नये क़िस्म के कोरोना को बेअसर कर सकती है।'
तीसरे चरण के आँकड़े 25,800 प्रतिभागियों पर ट्रायल के आधार पर हैं। इस मामले में और अधिक जानकारी इकट्ठा करने और वैक्सीन की प्रभावकारिता का मूल्यांकन करने के लिए 130 पुष्ट मामलों के अंतिम विश्लेषण तक ट्रायल जारी रहेगा।
बता दें कि तीन जनवरी को ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया यानी डीसीजीआई ने सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया की कोविशील्ड के साथ ही भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को 'सीमित इस्तेमाल' की मंजूरी दी थी। कोविशील्ड के 70 फ़ीसदी प्रभावी होने का दावा किया गया था। लेकिन कोवैक्सीन पर विवाद हो गया था। विवाद उस वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल के आँकड़ों पर ही था।
इन विवादों के बीच ही तीसरे चरण के ट्रायल के आँकड़े जारी करने से एक दिन पहले ही ट्वीट कर भारत बायोटेक ने जानकारी दी थी कि कोवैक्सीन के शोध को विज्ञान की प्रसिद्ध पत्रिका नेचर में प्रकाशित किया गया है।
Pleased to announce the publishing of COVAXIN® Non-Human Primate study results in the eminent scientific journal, Nature Communications.https://t.co/L0LiIM8S7f @NatureComms #BharatBiotech #Nature #COVAXIN #COVID19Vaccine #Journal #publication #SARS_CoV_2 #Viralinfections
— BharatBiotech (@BharatBiotech) March 2, 2021
डीसीजीआई द्वारा इसको मंजूरी दिए जाने के बाद शशि थरूर, आनंद शर्मा, जयराम रमेश जैसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने कोवैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल के आँकड़े को लेकर सवाल उठाए थे। बाद में विज्ञान से जुड़े लोगों ने भी सवाल उठाए।
एक वैज्ञानिक ने तो कह दिया था कि दुनिया में रूस, चीन के अलावा भारत तीसरा देश है जहाँ की वैक्सीन को मंजूरी दिए जाने की प्रक्रिया पर सवाल उठे।
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, कोवैक्सीन के पहले और दूसरे चरण के ट्रायल की जगह व तीसरे चरण से जुड़े रेडकर हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर गोवा के डॉ. धनंजय लाड ने कहा था, 'मुझे आश्चर्य है कि डीसीजीआई ने सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमिटी (एसईसी) की सिफारिश के आधार पर रातोरात निर्णय लिया। आदर्श रूप से डीसीजीआई एसईसी द्वारा सुझाए गए दस्तावेजों की समीक्षा करता है और इसमें कुछ दिन लग सकते हैं।'
कोरोना वैक्सीन के लिए तय विशेषज्ञ पैनल ने सीरम इंस्टीट्यूट की वैक्सीन को 1 जनवरी और भारत बायोटेक की वैक्सीन को 2 जनवरी को हरी झंडी दे दी थी। लेकिन डीसीजीआई ने एक दिन बाद ही तीन जनवरी को दोनों वैक्सीन को मंजूरी दे दी।
इस बीच इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ़ बायोएथिक्स के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनंत भान ने कहा था कि भारत के सिवा सिर्फ़ रूस और चीन ने ही अपने-अपने वैक्सीन का एफिकेसी डेटा सार्वजनिक किए बिना ही उपयोग की मंजूरी दे दी। उन्होंने कहा था, "...जिस तरह से मंजूरी दी गई है उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता है और जिस तरह की भाषा का प्रयोग किया गया है वो रचनात्मक लेखन लगता है न कि क़ानून पर आधारित।’
इस तरह के उठते सवालों के बीच ही एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया और इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च यानी आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव का बयान आया था।
उन्होंने कहा था कि भारत बायोटेक और आईसीएमआर द्वारा विकसित स्वदेशी वैक्सीन का उपयोग 'बैक-अप' के रूप में किया जाएगा। उनके अनुसार, इसे केवल तभी इस्तेमाल किया जाएगा जब देश को बड़ी संख्या में लोगों को टीका लगाने के लिए अतिरिक्त खुराक की आवश्यकता हो। कोवैक्सीन का उपयोग केवल 'क्लिनिकल ट्रायल मोड' में किया जाएगा जहाँ साइड-इफेक्ट्स की निगरानी की जाएगी।