इज़रायल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू मुश्किलों में घिरे हुए हैं क्योंकि उनके विरोधी दल उनके ख़िलाफ़ गठबंधन की सरकार बनाने की तैयारियों को अंतिम रूप दे रहे हैं। नेतन्याहू इस पद पर पिछले 12 साल से काबिज हैं और वह सबसे लंबे समय तक इस पद पर रहने वाले नेता हैं। दूसरी ओर, इसाक हर्ज़ोग इज़रायल के नए राष्ट्रपति चुने गए हैं। वह देश के 11 वें राष्ट्रपति हैं और लेबर पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं। 60 साल के हर्ज़ोग 9 जुलाई को पद संभालेंगे।
नेतन्याहू के ख़िलाफ़ नफ्ताली बेनैट के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनाने की कोशिशों को ताक़त मिली है। बेनैट की यामीना पार्टी के पास 6 सीटें हैं जबकि यायर लापिडो की यश अतिदी के पास 11 सीटें हैं। लापिडो वहां के मशहूर पत्रकार रहे हैं।
120 सदस्यों वाली इज़रायली संसद में यश अतिदी की पार्टी के पास दूसरे नंबर पर सबसे ज़्यादा सांसद हैं। इनके गठबंधन में कुछ और दल भी शामिल हैं।
सरकार बनाने के लिए 61 सांसदों की ज़रूरत है। लापिडो को इस बारे में बुधवार रात तक एलान करना होगा और अगर वह ऐसा नहीं कर पाते हैं तो इज़रायल में नए सिरे से चुनाव होंगे और बीते दो साल में यह पांचवा मौक़ा होगा, जब वहां चुनाव कराए जाएंगे। अगर वह एलान कर देते हैं तो इसके बाद संसद का सत्र बुलाया जाएगा जिसमें विश्वास मत लाया जाएगा।
बेनैट को कट्टर राष्ट्रवादी माना जाता है जबकि लापिडो मध्यमार्गी नेता हैं। दोनों के बीच में इस बात पर सहमति बन गई है कि वे बारी-बारी से प्रधानमंत्री पद संभालेंगे। बेनैट का नंबर पहले आएगा लेकिन अभी भी गठबंधन को लेकर काफी चीजों को फ़ाइनल किया जा रहा है।
इज़रायली मीडिया ने रिपोर्ट दी है कि बैनेट और लापिडो की अगुवाई वाले इस गठबंधन के पास नेतन्याहू को सत्ता से हटाने के लिए ज़रूरी सपोर्ट मौजूद है। हालांकि फिर भी इज़रायली मीडिया इसे लेकर कोई पक्का एलान करने में काफी सतर्कता बरत रहा है।
दूसरी ओर नेतन्याहू ने कहा है कि इस तरह का गठबंधन इज़रायल को कमजोर करेगा।
बीते साल नेतन्याहू और पूर्व सैन्य प्रमुख बेनी गैंट्ज़ो ने मिलकर आपातकाल की स्थिति में सरकार बनाई थी क्योंकि उस वक़्त कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ जंग चल रही थी। लेकिन यह सरकार दिसंबर में गिर गई थी और तब से नेतन्याहू कार्यवाहक प्रधानमंत्री के तौर पर कामकाज संभाल रहे थे।