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चुनावी झटकों के बाद बंगाल भाजपा में घमासान, कैसे उबरेगी पार्टी?

चुनावी झटकों के बाद बंगाल भाजपा में घमासान, कैसे उबरेगी पार्टी?

पश्चिम बंगाल में दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में जारी मतभेद क्या संगठन के हित में हैं? आख़िर इससे कैसे पार पाएगी बीजेपी?

पहले लोकसभा और उसके बाद हाल में हुए विधानसभा की चार सीटों के लिए हुए उपचुनाव में लगे करारे झटकों के बाद पश्चिम बंगाल भाजपा में घमासान मचा है। अब इसके लिए विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी पार्टी के पुराने नेताओं के निशाने पर हैं। केंद्रीय नेतृत्व ने लोकसभा से लेकर विधानसभा के उपचुनाव तक उम्मीदवारों के चयन में शुभेंदु की राय को ही सबसे ज्यादा तवज्जो दी थी। इसलिए अब हार का ठीकरा उनके सिर ही फोड़ा जा रहा है। इस बीच, तृणमूल कांग्रेस नेता कुणाल घोष ने यह कह कर पार्टी में उथल-पुथल मचा दी है कि उसके (भाजपा के) दो सांसद 21 जुलाई को तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने के लिए तैयार हैं।

हार की वजहों की समीक्षा के लिए कोलकाता में आयोजित भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में तमाम नेता एक-दूसरे के कोर्ट में गेंद फेंकने में ही जुटे रहे। शुभेंदु ने तो प्रधानंमत्री के सबका साथ, सबका विकास के नारे को नकारते हुए पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चा को खत्म करने की मांग उठाई। इस पर पार्टी में हड़कंप मचना स्वाभाविक था। डैमेज कंट्रोल की कवायद के तहत पहले तो शुभेंदु से ही सफाई दिलाई गई औऱ उसके बाद प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा कि यह शुभेंदु के निजी विचार हैं, पार्टी के नहीं।

शुभेंदु ने बैठक में कहा कि सबका साथ, सबका विकास बेकार की बात है। जो हमारे साथ है, हम उनके साथ हैं। राज्य में मुस्लिम वोट तृणमूल कांग्रेस को मिल रहा है। ऐसे में अल्पसंख्यक मोर्चे की क्या ज़रूरत है। हालांकि, कुछ घंटे बाद शुभेंदु ने अपने बयान पर सफाई दी। उन्होंने कहा कि यह नारा प्रधानमंत्री ने दिया था और यह अभी भी कायम है।

बैठक में शुभेंदु और प्रदेश अध्यक्ष सुकांत ने एक-दूसरे के खिलाफ टिप्पणी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसी वजह से सुकांत ने कहा कि चुनाव में संगठन की खास भागीदारी नहीं होती। बंगाल में अगर हम ज्यादा सीटें जीत जाते तो लोग उसका सेहरा अपने सिर पर बांधने में जुट जाते। लेकिन हारने के बाद इसका ठीकरा संगठन के सिर पर तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा ने शुभेंदु अधिकारी को पार्टी की चुनावी कमान सौंप कर ग़लती की थी। उम्मीदवारों के चयन में भी उनकी ही चली। 

केंद्रीय नेतृत्व का वरदहस्त मिलने के बाद शुभेंदु ने पुराने नेताओं से सलाह-मशविरा किए बिना पार्टी को अपने तरीक़े से चलाने का प्रयास किया। इससे पुराने नेताओं में नाराज़गी बढ़ी और पार्टी में नया बनाम पुराना मतभेद खुल कर सतह पर आ गया।

प्रदेश भाजपा के एक वरिष्ठ नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं कि शुभेंदु के कारण ही प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुकांत मजूमदार की जीत का अंतर घट गया। उनके मनमाने फैसले के कारण ही पूर्व अध्यक्ष दिलीप घोष हार गए। शुभेंदु ने अपनी करीबी अग्निमित्रा पाल को मेदिनीपुर से टिकट दिलाने के लिए घोष की सीट बदल दी। नतीजतन घोष भी हार गए और उनकी सीट पर उतरी अग्निमित्रा पाल भी।

उस नेता का कहना था कि लोकसभा और विधानसभा में पार्टी को जो झटके लगे हैं, शुभेंदु को उसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। लेकिन वो अब खुद को पाक-साफ घोषित करते हुए हार के लिए संगठन को जिम्मेदार ठहराने का प्रयास कर रहे हैं।

इस बीच, तृणमूल कांग्रेस नेता कुणाल घोष ने दावा किया है कि 21 जुलाई को भाजपा के दो सांसद तृणमूल कांग्रेस में शामिल होंगे। घोष का दावा है कि लोकसभा चुनाव में जीतने वाले भाजपा के 12 सांसदों में से दो हमारे संपर्क में हैं। उन्होंने टीएमसी में शामिल होने की इच्छा जताई है। लेकिन दल-बदल कानून को ध्यान में रखते हुए फिलहाल उनसे भाजपा में रह कर उसकी ख़बरें देने को कहा गया है। घोष का दावा है कि कम से कम 10 विधायक भी तृणमूल में आने के इच्छुक हैं।

दूसरी ओर, भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राहुल सिन्हा ने घोष के दावे को हवाई करार दिया है।  उनका कहना है कि पार्टी मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए अक्सर ऐसे निराधार दावे करती रही है। इसमें कोई दम नहीं है।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा में जारी मतभेद संगठन के हित में नहीं है। बंगाल से उसकी लोकसभा की सीटें तो घट ही गई हैं, विधानसभा की सीटें भी लगातार घटती जा रही हैं। वर्ष 2021 में 77 सीटें जीतने वाली पार्टी के पास अब महज 66 विधायक ही बचे हैं। किसी भी मुख्य विपक्षी पार्टी के लिए यह स्थिति आदर्श नहीं कही जा सकती।

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