बीबीसी पत्रकारों के मोबाइल और लैपटॉप में क्या तलाशा जा रहा
बीबीसी के दिल्ली और मुंबई दफ्तरों में छापे को तीसरा दिन बीतने वाला है लेकिन भारत सरकार के आयकर विभाग ने यह नहीं बताया है कि उसे जिन चीजों की तलाश थी, वो मिली या नहीं। अलबत्ता न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक आयकर अधिकारियों बीबीसी के पत्रकारों के मोबाइल और लैपटॉप की जांच कर रही है। हालांकि आयकर विभाग ने इस बारे में कोई बयान नहीं दिया है। लेकिन यह सवाल तो उठेगा ही कि आखिर बीबीसी के भारतीय पत्रकारों के मोबाइल और लैपटॉप में आयकर विभाग को किस चीज की तलाश है। पिछले दिनों से एकाउंट्स विभाग के कर्मचारियों से पूछताछ की गई। दस कर्मचारी पिछले 45 घंटों से भी ज्यादा समय से अपने घर नहीं जा सके हैं।
रॉयटर्स ने गुरुवार दोपहर बाद जारी एक समाचार में कहा कि भारतीय टैक्स अधिकारियों ने कुछ बीबीसी संपादकीय और प्रशासनिक कर्मचारियों के मोबाइल फोन और लैपटॉप की जांच की। , यह जानकारी बीबीसी के भारतीय पत्रकारों से जुड़े दो सूत्रों ने दी।
चश्मदीदों के मुताबिक, मंगलवार को अचानक निरीक्षण शुरू होने के बाद से टैक्स अधिकारी बीबीसी के दफ्तर में ही रुके हुए थे। कुछ वहीं सोए भी थे। सूत्रों ने बताया कि कुछ कर्मचारियों से देर रात तक वित्तीय लेन-देन पर पूछताछ की गई। एक सूत्र ने रॉयटर्स को बताया, अधिकारियों ने हममें से कुछ को अपना लैपटॉप खोलने और फोन देने के लिए कहा और फिर उसे वापस सौंप दिया। उन्होंने कहा कि मोबाइल और लैपटॉप के मालिकों से एक्सेस कोड मांगे गए थे। दूसरे सूत्र ने भी इसकी पुष्टि की कि आयकर अधिकारियों ने पत्रकारों के मोबाइल और लैपटॉप की जांच की है।
सूत्रों ने बताया कि बीबीसी दफ्तर में आज 16 फरवरी को उन पत्रकारों को आने दिया गया, जो पहले दिन यानी मंगलवार को तलाशी के दौरान मौजूद थे। शेष पत्रकार और अन्य कर्मचारी घरों से काम कर रहे हैं। हिन्दू सेना के मुट्ठीभर कार्यकर्ताओं के प्रदर्शन के बाद दिल्ली में बीबीसी दफ्तर के बाहर सुरक्षा बढ़ा दी गई है।
आयकर विभाग की जांच का आम तरीका यह है कि उसके सर्वे या छापे की कार्रवाई 6-7 घंटे चलती है। छापे या सर्वे की लंबी कार्रवाई तभी चलती है, जब विभाग को ठोस सबूत नहीं मिल पाते हैं। ठोस सबूत तलाशने के लिए आयकर अधिकारी फिर कई घंटे तक कड़ी मेहनत करते हैं। बीबीसी के मामले में यही है। उसका मुख्यालय लंदन में है। भारतीय दफ्तर में सिवाय सैलरी बनाने वाले कर्मचारियों के अलावा एकाउंट्स विभाग में और कोई नहीं है। पिछले साल जब ट्विटर पर छापे की कार्रवाई की गई थी तो ट्विटर के गुड़गांव दफ्तर में तीन कर्मचारी मौजूद थे। ईडी, आयकर विभाग के दो दर्जन कर्मचारी बिना छापा मारे उल्टे पैर लौट आए थे।
मोदी सरकार की यह कार्रवाई बीबीसी की एक डॉक्यूमेंट्री के कुछ हफ़्ते बाद आई है। बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री में 2002 के गुजरात में दंगों में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा निभाई गई भूमिका पर सवाल उठाया गया था। मोदी उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे।
गुजरात जनसंहार के दौरान हुई हिंसा और जनसंहार पर बीबीसी अपनी रिपोर्टिंग और डॉक्यूमेंट्री पर अभी तक कायम है। गुजरात की इस साम्प्रदायिक हिंसा में कम से कम 1,000 लोग, ज्यादातर मुस्लिम कत्ल-ए-आम में मारे गए, हालांकि कार्यकर्ताओं ने संख्या के दोगुने से अधिक होने का अनुमान लगाया।
भारत के लगभग सभी विपक्षी दलों ने बीबीसी पर कार्रवाई की निंदा की है। उन्होंने इसे "राजनीतिक प्रतिशोध" करार दिया है। मंगलवार को सत्तारूढ़ बीजेपी ने बीबीसी पर "जहरीली रिपोर्टिंग" का आरोप लगाया था, जबकि विपक्ष ने कार्रवाई के समय पर सवाल उठाया था। विपक्ष ने सवाल पूछा है कि पीएम नरेंद्र मोदी पर डॉक्यूमेंट्री "इंडिया: द मोदी क्वेश्चन" प्रसारित होने के के बाद ही ये छापे क्यों मारे गए।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते विवादास्पद डॉक्यूमेंट्री के मद्देनजर भारत में बीबीसी पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की याचिका को खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को "पूरी तरह से गलत" और "बिल्कुल योग्यता" करार दिया। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर डॉक्यूमेंट्री के लिंक को ब्लॉक करने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अप्रैल में सुनवाई होगी। 21 जनवरी को, सरकार ने बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के लिंक साझा करने वाले कई YouTube वीडियो और ट्विटर पोस्ट को ब्लॉक करने के निर्देश जारी किए।