BBC डॉक्युमेंट्रीः हैदराबाद के बाद JNU में रात को स्क्रीनिंग, लगी रोक
गुजरात दंगे 2002 और पीएम मोदी पर बनाई गई बीबीसी की डाक्युमेंट्री पर देश के दो यूनिवर्सिटीज में विवाद शुरू हो गया है। हैदराबाद यूनिवर्सिटी के कैंपस में छात्रों ने इसका प्रसारण किया तो जेएनयू ने छात्रसंघ से कहा है कि इस फिल्म का प्रसारण कैंपस में नहीं होना चाहिए। उसने कहा है कि छात्रसंघ के फिल्म आयोजन पर रोक लगा दी गई है।
हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी (एचसीयू) के छात्रों के एक समूह ने सोमवार रात को कैंपस के अंदर बीबीसी डॉक्युमेंट्री की स्क्रीनिंग का आयोजन किया। स्टूडेंट इस्लामिक ऑर्गनाइजेशन (SIO) और मुस्लिम स्टूडेंट फेडरेशन, जिसे फ्रेटरनिटी ग्रुप के नाम से जाना जाता है, ने हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के अंदर इसे आयोजित किया। इन समूहों के 50 से अधिक छात्रों ने स्क्रीनिंग में भाग लिया।
एबीवीपी के छात्र नेता महेश ने कहा, हमने मामले को विश्वविद्यालय के अधिकारियों के पास भेज दिया है और आयोजकों पर कार्रवाई की मांग की है। पुलिस ने कहा, हमें जानकारी मिली है कि कुछ छात्रों ने कैंपस के अंदर स्क्रीनिंग का आयोजन किया था, लेकिन हमें कोई लिखित शिकायत नहीं मिली है। अगर हमें कोई शिकायत मिलती है तो जांच की जाएगी।
जेएनयू में भी रोकः जेएनयू छात्र संघ ने विवादास्पद डॉक्युमेंट्री की आज मंगलवार रात 9 बजे स्क्रीनिंग की घोषणा करते हुए एक पोस्टर कथित तौर पर जारी किया है। इस पर जेएनयू के अधिकारियों ने इस आयोजन को रद्द करने का आग्रह करते हुए चेतावनी जारी की है। जेएनयू ने कहा कि अगर फिल्म को कैंपस में दिखाया गया तो सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
केरल के कई कॉलेज और यूनिवर्सिटीज में भी इस फिल्म को दिखाने की घोषणा की गई है।
एक तरफ तो तमाम यूनिवर्सिटीज में इसके प्रसारण को लेकर माहौल गर्म है। दूसरी तरफ रिटायर्ड जजों, नौकरशाहों और सशस्त्र बलों के दिग्गजों सहित 300 से अधिक प्रतिष्ठित भारतीयों ने भारत और उसके नेता के प्रति "अविश्वसनीय पूर्वाग्रह" दिखाने के लिए बीबीसी की निंदा करते हुए एक बयान जारी किया है।
बता दें कि भारत सरकार ने बीबीसी की विवादित डॉक्यूमेंट्री को दिखा रहे कई यूट्यूब चैनलों पर 21 जनवरी को बैन लगा दिया था। इस संबंध में सूचना प्रसारण मंत्रालय ने दिशा निर्देश जारी किया था। केंद्र सरकार ने सिर्फ यूट्यूब ही नहीं पचास से ज्यादा ट्विटर अकाउंट को भी प्रतिबंधित करने के निर्देश दिए थे। अभी भी तमाम सोशल मीडिया मंचों पर बीबीसी की डॉक्युमेंट्री का लिंक शेयर किया जा रहा है।
क्या है डॉक्युमेंट्री मेंः
इस डॉक्युमेंट्री में बताया गया है कि ब्रिटिश सरकार ने भी 2002 के गुजरात नरसंहार की गुप्त रूप से जांच कराई थी। इसमें गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर सवाल उठाए गए हैं। बीबीसी ने इसका प्रसारण ब्रिटेन में तो कर दिया लेकिन उसने भारत में दिखाने से मना कर दिया है। लेकिन कुछ यूट्यूब चैनलों ने इस फिल्म को बीबीसी की साइट से अपलोड कर प्रसारित कर दिया। कई ट्विटर हैंडलों से उसे ट्वीट भी किया गया है।
भारत सरकार ने बीबीसी की डाक्युमेंट्री को यूट्यब और अन्य सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर इसे दिखाने पर रोक लगा दी है।पिछले हफ्ते ही भारत ने इसकी निंदा की थी। उसने इसे प्रोपेगेंडा फिल्म बताया था। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था- हमें लगता है कि यह देश को बदनाम करने के लिए बनाई गई। यह एक दुष्प्रचार है। इसमें पूर्वाग्रह है, निष्पक्षता की कमी और औपनिवेशिक मानसिकता स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है। प्रवक्ता ने कहा कि डॉक्युमेंट्री उन व्यक्तियों का प्रतिबिंब है जो इस कहानी को फिर से पेश कर रहे हैं।
क्या हुआ था गुजरात में
इस डॉक्युमेंट्री में बताया गया है कि ब्रिटिश सरकार ने भी 2002 के गुजरात नरसंहार की गुप्त रूप से जांच कराई थी। इसमें गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर सवाल उठाए गए हैं। बीबीसी ने इसका प्रसारण ब्रिटेन में तो कर दिया लेकिन उसने भारत में दिखाने से मना कर दिया है। लेकिन कुछ यूट्यूब चैनलों ने इस फिल्म को बीबीसी की साइट से अपलोड कर प्रसारित कर दिया। कई ट्विटर हैंडलों से उसे ट्वीट भी किया गया है।गुजरात के गोधरा में 27 फरवरी 2002 को साबरमती ट्रेन में आग लगाने के बाद राज्य में हिंसा भड़क उठी थी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब दो हजार लोग इन दंगों में मारे गए थे। मुस्लिम महिलाओं से गैंगरेप की घटनाएं हुई थीं। घर जला दिए गए थे। तमाम एनजीओ और मानवाधिकार संगठनों की जांच में कहा गया था कि इस दंगे में पांच हजार से भी ज्यादा मौतें हुई थीं। इस मामले की जांच हुई, जिसने तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी को क्लीन चिट दी थी। मोदी मजबूत होते चले गए और देश के पीएम बन गए।
गुजरात दंगे की जांच को बाद में कोर्ट में भी चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने भी पीएम मोदी को न सिर्फ बेदाग बताते हुए क्लिन चिट दी, बल्कि इस मामले को उठाने वाले पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट, बी श्रीकुमार, सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और दंगे में 68 लोगों के साथ जिंदा जला दिए गए एहसान जाफरी की विधवा जकिया जाफरी को दंडित करने के लिए कहा। फैसला आने के 24 घंटे के अंदर ही तीस्ता सीतलवाड़ और बी. श्रीकुमार को गिरफ्तार कर लिया गया। संजीव भट्ट एक कथित हत्या के मामले में बहुत पहले से ही जेल में हैं। उनकी जमानत अर्जी कई अदालतों से खारिज हो चुकी है।