लव जिहाद: पहले केस में ही यूपी पुलिस पर गंभीर आरोप क्यों?
उत्तर प्रदेश में जब से 'लव जिहाद' यानी ग़ैरक़ानूनी धर्मांतरण से जुड़ा अध्यादेश आया है तब से कम से कम तीन केस दर्ज किए जा चुके हैं। लेकिन बरेली में जो पहला केस दर्ज किया गया है उसी में पुलिस का रवैया संदेहों में घिर गया है। इस नये क़ानून के तहत गिरफ़्तार किए गए मुसलिम युवक के परिजनों ने आरोप लगाया है कि लड़की के रिश्तेदारों ने पुलिस के दबाव में यह केस दर्ज कराया है। जब से यह केस दर्ज हुआ है तब से इस पर सवाल उठता रहा है।
सवाल तो तभी उठाया गया जब यूपी सरकार ने 28 नवंबर को अध्यादेश जारी किया तो इसके 12 घंटे के अंदर ही यह केस दर्ज कर लिया गया। इस पर सवाल यह भी उठा कि जब यह मामला क़रीब एक साल पहले का है और इस साल अप्रैल में उनकी शादी हो गई थी तो फिर परिवार अब क्यों एकाएक एफ़आईआर दर्ज करा रहा है अब गाँव के ही लोग इस पर आश्चर्यचकित हैं कि जब यह मामला दोनों परिवारों के बीच पूरी तरह निपट गया था तो इसमें अब ऐसा क्या हो गया!
वैसे, ऐसे ही सवाल इस अध्यादेश पर भी उठते रहे हैं। इसकी यह कहकर आलोचना की जा रही है कि लव जिहाद के नाम पर एक ख़ास समुदाय को प्रताड़ित किया जाएगा। बता दें कि उत्तर प्रदेश में 28 नवंबर को जो अध्यादेश लाया गया है उसमें अपराधों के लिए अधिकतम 10 साल तक सज़ा मिल सकती है। अध्यादेश कहता है कि कोई भी व्यक्ति ग़लत बयानी, ज़बरदस्ती, खरीद फरोख्त, धोखेबाजी कर या शादी के ज़रिए दूसरे को धर्मांतरित करने का प्रयास नहीं करेगा। यदि कोई व्यक्ति उस धर्म में वापस धर्मान्तरित होता है जिसमें वह हाल तक था तो उसे धर्मांतरण नहीं माना जाएगा। कोई भी पीड़ित व्यक्ति शिकायत दर्ज कर सकता है, और सबूत पेश करने की ज़िम्मेदारी अभियुक्त या उस व्यक्ति की रहेगी जिसने धर्मांतरण किया है।
जैसी आशंका थी वैसे ही आरोप बरेली में दर्ज पहले मामले में लगाए जा रहे हैं। आरोपी ओवैस अहमद के 70 वर्षीय पिता मुहम्मद रफीक ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' से कहा कि जब अहमद की तलाशी ले रही थी तो पुलिस ने उनकी पिटाई की थी। अहमद की गिरफ़्तारी बुधवार को हो पाई।
रिपोर्ट के अनुसार, रफीक ने कहा, 'लड़की के परिवार के सदस्य अच्छे लोग हैं और हमारा उनसे कोई विवाद नहीं है। मुझे पता है कि उन्होंने मेरे बेटे के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज नहीं कराई है... लड़की के पिता ने मुझसे मुलाक़ात की थी और कहा कि वह इस केस में मेरा समर्थन करेंगे। पुलिस ने सिर्फ़ प्रशंसा और पदोन्नति पाने के लिए एफ़आईआर दर्ज की है। उन्होंने मेरे साथ मारपीट की और लड़की के परिवार को भी धमकी दे रहे होंगे।'
पुलिस आरोपियों के परिजनों के इन आरोपों से इनकार करती है। रिपोर्ट दर्ज किए जाने के समय को लेकर बरेली (रेंज) के डीआईजी राजेश पांडे ने कहा कि यह एक 'संयोग' था।
अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार पांडे ने कहा, 'अगर हमें पहले शिकायत मिली होती तो हमने पहले ही एफ़आईआर दर्ज कर ली होती... कुछ संभावना थी कि शिकायत 27 नवंबर को आ सकती थी, और जब तक मामला दर्ज किया जाता तब तक क़ानून पारित हो चुका होता।'
पुलिस के अनुसार दोनों पिछले साल अक्टूबर में भाग गए थे। दोनों के बीच संबंध थे और लड़की के पिता ने तब केस दर्ज कराया था। पुलिस भी यह मानती है कि जब दोनों को पकड़ा गया और वापस गाँव लाया गया तो लड़की ने अपने परिवार द्वारा लगाए गए अगवा किए जाने के आरोपों को खारिज कर दिया था। तब लड़की ने स्वीकार किया था कि वह उस लड़के से शादी करना चाहती है। तब लड़की 17 साल की थी। जब दोनों परिवारों के बीच विवाद सुलझ गया था तो इस केस को बंद कर दिया गया था और कहा गया था कि अहमद के ख़िलाफ़ कोई आरोप सही नहीं पाए गए थे।
लेकिन अब जो ताज़ा केस किया गया है उसमें पुलिस द्वारा दबाव डाले जाने का गाँव के लोगों को ही संदेह है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, दोनों परिवारों के बीच पिछले साल विवाद निपटारा कराने वाले गाँव के प्रधान ध्रुव राज, बीजेपी बरेली ज़िला के अध्यक्ष पवन शर्मा के पिता नवल किशोर शर्मा, गाँव के नामचीन व्यक्ति नारायण दास जैसे लोग ही पुलिस पर संदेह करते हैं।
ग्रामीण क्या बोले
ध्रुव राज ने कहा कि क्योंकि लड़का-लड़की के भागने के मामले का निपटारा हो गया था और दोनों परिवारों के बीच सुलह हो गई थी पुलिस के दबाव की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। रिपोर्ट के अनुसार नवल किशोर ने दावा किया कि पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज करने से एक दिन पहले ही लड़की के पिता को उठा लिया था। उन्होंने कहा, 'पिछले हफ़्ते उसका (लड़की का) भाई मेरे पास आया और कहा कि कुछ पुलिस कर्मी आए थे और उसके पिता को ले गए। मैंने कहा कि मैं इसमें दखल नहीं दे सकता। अगले दिन मुझे पता चला कि लव जिहाद का आरोप लगा और एफ़आईआर भी दर्ज हुई। बाद में मुझे बताया गया कि अहमद के पिता रफीक को पुलिस कर्मी ले गए...। लड़की के पिता अब क्यों एफ़आईआर दर्ज कराएँगे'
रिपोर्ट के अनुसार गाँव में 10 फ़ीसदी मुसलिम हैं। एक निजी स्कूल के शिक्षक योगेंद्र कश्यप ने कहा कि वे हमेशा मिलजुल कर रहते आए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि लड़की और अहमद के बीच स्कूल के दिनों से संबंध थे।
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, नारायण दास ने कहा, 'महिला के पिता ने मुझे बताया कि पुलिस ने उन्हें एफ़आईआर दर्ज करने के लिए मजबूर किया है। उन्होंने मुझे बताया कि पुलिस ने उन्हें कुछ कागजात पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया और उन्हें बताया कि उन्हें क्या कहानी बतानी है। अब पुलिस ने मीडिया पर बात न करने के लिए उन पर दबाव बनाया है...। अब शादीशुदा लड़की का पिता इस तरह का मुद्दा क्यों उठाना चाहेगा'
बता दें कि 28 नवंबर को देवरनिया पुलिस स्टेशन में दर्ज प्राथमिकी में लड़की के पिता ने आरोप लगाया कि अहमद उसे धर्मांतरण करने के लिए लुभाने और दबाव डालने की कोशिश कर रहा था और उन्हें धमकी दे रहा था।
अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, डीआईजी पांडे ने कहा, 'अपने बयान में वह कहती रही कि वह आरोपी से शादी करना चाहती है। अहमद के परिवार के सदस्यों ने कहा कि अगर वह इस्लाम में परिवर्तित होती है तो वे उसे स्वीकार करेंगे। वह राजी हो गई, लेकिन उसका परिवार नहीं हुआ। मामला पंचायत के पास गया और यह निर्णय लिया गया कि न तो धर्मांतरण होगा और न ही विवाह।'
पांडे ने कहा, 'परिवार के आरोपों के अनुसार, अहमद ने उससे मिलना और धर्मपरिवर्तन करने के लिए दबाव डालना जारी रखा। हमें सूचित किया गया है कि उसके ससुराल वालों को भी पता चल गया था, और प्राथमिकी दर्ज होने से ठीक एक दिन पहले, उसने (लड़की) अपने पिता को फ़ोन करके कहा था कि वे उसे अपने साथ नहीं रख सकते।'
लड़की के पिता को थाना बुलाए जाने और रफीक के साथ मारपीट के आरोपों पर देवरनिया एसएचओ दया शंकर ने कहा कि केवल मामला दर्ज करने के लिए लड़की के पिता पुलिस स्टेशन पर आए थे और रफीक से सिर्फ़ अहमद के ठिकाने के बारे में पूछताछ की गई थी।