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बांग्लादेश में तख्तापलट की स्थिति क्यों आई? जानें वजह

बांग्लादेश में तख्तापलट की स्थिति क्यों आई? जानें वजह

आज तक बांग्लादेश की कमान संभालने के बाद शेख हसीना बांग्लादेश के इतिहास में सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाली नेता हैं। आख़िर अचानक से लोगों में ऐसा ग़ुस्सा कैसे आया?

बांग्लादेश में हुई ताज़ा हिंसा में कम से कम 300 लोगों की मौत के बाद अवामी लीग की सुप्रीमो शेख हसीना ने सोमवार को देश की प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। कई मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, हसीना अपनी बहन शेख रेहाना के साथ देश छोड़कर चली गई हैं।

प्रदर्शनकारियों ने लगाए गए राष्ट्रव्यापी कर्फ्यू का उल्लंघन करते हुए रविवार को 'ढाका तक लॉन्ग मार्च' किया था। प्रधानमंत्री ने प्रदर्शनकारियों पर तोड़फोड़ करने और मोबाइल इंटरनेट बंद करने का आरोप लगाया। अब ऐसी स्थिति है कि बांग्लादेश की पीएम को गुपचुप तरीक़े से देश छोड़ना पड़ गया है। तो सवाल है कि आख़िर बांग्लादेश में ऐसा क्या हो गया कि अचानक से तख्तापलट हो गया? आख़िर किन वजहों से लोगों में इतना ग़ुस्सा फूटा?

ताज़ा हिंसा तब फिर शुरू हुई जब प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे की मांग कर रहे और असहयोग आंदोलन के लिए बैठे लोगों की आवामी लीग, छात्र लीग और जुबो लीग के कार्यकर्ताओं की सरकार समर्थकों के साथ झड़प हो गई। प्रदर्शनकारी हसीना के इस्तीफे की मांग कर रहे थे। जुलाई में पहले हुए विरोध प्रदर्शन की शुरुआत छात्रों द्वारा सरकारी नौकरियों के लिए कोटा प्रणाली को समाप्त करने की मांग के साथ हुई थी। तब हिंसा में 200 से अधिक लोग मारे गए थे।

अब ताज़ा हिंसा में क़रीब 100 लोगों की मौत हो चुकी है। प्रदर्शनकारियों में छात्र और मुख्य विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी द्वारा समर्थित कुछ समूह शामिल हैं। उन्होंने 'असहयोग' का आह्वान किया, लोगों से करों और उपयोगिता बिलों का भुगतान न करने और बांग्लादेश में कार्य दिवस रविवार को काम पर न आने का आग्रह किया था। जुलाई में विरोध-प्रदर्शनों के पिछले दौर को पुलिस ने बड़े पैमाने पर कुचल दिया था। लेकिन इस बार ऐसा हो न सका।

विरोध-प्रदर्शन की असल वजह

एक महीने से भी कम समय पहले पूरे बांग्लादेश में प्रदर्शन शुरू हुए थे, जिनमें 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ देश के युद्ध में लड़ने वाले दिग्गजों के परिवारों के लिए सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण ख़त्म करने की मांग की गई थी। तब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि दिग्गजों का कोटा घटाकर 5 प्रतिशत किया जाना चाहिए, जिसमें 93 प्रतिशत नौकरियां योग्यता के आधार पर आवंटित की जानी चाहिए। शेष 2 प्रतिशत जातीय अल्पसंख्यकों और ट्रांसजेंडर और विकलांग लोगों के लिए अलग रखा जाए।

हालाँकि, सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को स्वीकार कर लिया, लेकिन प्रदर्शनकारियों ने हिंसा के लिए जवाबदेही की मांग जारी रखी। इसके लिए उन्होंने सरकार के बल प्रयोग को ज़िम्मेदार ठहराया। एपी की रिपोर्ट के हवाले से कहा गया है कि हाल के हफ्तों में कम से कम 11,000 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

शेख हसीना पर आरोप लगा कि विपक्ष के नेताओं को जेल में डाला गया। एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल हत्याएं करवाई गईं। चुनावों में धांधली करवाई गई। मीडिया की आज़ादी छीन ली गई। मानवाधिकारों का हनन किया गया। एक्टिविस्टों को 'ग़ायब' करवा दिया गया। लोकतंत्र के नाम पर तानाशाही की गई।

76 वर्षीय शेख हसीना जनवरी में लगातार चौथी बार चुनी गई थीं, जब सभी प्रमुख विपक्षी दलों ने चुनावों का बहिष्कार किया था। चुनावों से पहले हज़ारों विपक्षी सदस्यों को जेल में डाल दिया गया था।

हसीना का वर्तमान कार्यकाल 2008 से था, जब अवामी लीग ने चुनावों में जीत हासिल की थी। आज तक देश की कमान संभालने के बाद, वह बांग्लादेश के इतिहास में सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाली नेता हैं। 

वह 1981 से अपने पिता शेख मुजीबुर रहमान द्वारा स्थापित अवामी लीग का नेतृत्व कर रही हैं। हसीना ने अपनी कट्टर प्रतिद्वंद्वी खालिदा ज़िया को हराने के बाद 1996 से 2001 तक प्रधानमंत्री के रूप में काम किया। ज़िया ने 2001 में सत्ता हासिल की थी। लेकिन 2008 में फिर से हसीना ने सत्ता हासिल कर ली थी।

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