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मुँह खोलते ही विवादों में क्यों घिर जाते हैं आज़म ख़ान?

मुँह खोलते ही विवादों में क्यों घिर जाते हैं आज़म ख़ान?

समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता आज़म ख़ान और विवादों का चोली-दामन का साथ है। अक्सर जब भी वह मुँह खोलते हैं किसी ना किसी विवाद में फंस जाते हैं। 

समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता आज़म ख़ान और विवादों का चोली-दामन का साथ है। अक्सर जब भी वह मुँह खोलते हैं किसी ना किसी विवाद में फंस जाते हैं। कभी उनके बयान पर विवाद होता है तो कभी उनका अंदाज-ए-बयान विवाद का विषय बन जाता है। गुरुवार को लोकसभा में उनका बयान और अंदाज-ए-बयान दोनों ही विवाद का विषय बन गए। इस पर जमकर हंगामा हुआ और आख़िरकार उनकी टिप्पणी को सदन की कार्यवाही से निकालना पड़ा।

लोकसभा में तीन तलाक़ बिल पर चल रही बहस के दौरान जैसे ही सपा सांसद आज़म खान बोलने के लिए खड़े हुए। उन्होंने एक शेर पढ़कर अपनी बात कहनी शुरू की, 'तू इधर-उधर की न बात कर, ये बता कि क़ाफ़िला क्यों लुटा...।' आज़म शेर का पहला मिसरा पढ़ते हुए इधर-उधर देख रहे थे, लिहाजा स्पीकर की कुर्सी पर बैठीं रमा देवी ने मज़ाकिया अंदाज में उन्हें रोकते हुए कहा कि आप भी इधर-उधर ना देखें, बल्कि चेयर की तरफ़ देख कर अपनी बात कहें। इस पर आज़म अपनी ही रौं में रमा देवी से मुख़ातिब होकर कुछ का कुछ कहते चले गए। उन्हें पता ही नहीं चला कि कब वह तहज़ीब का दायरा लांघ गए।

आज़म की बातें बात रमा देवी को भी नागवार गुजरींं। उन्होंने सख़्त लहज़े में फौरन आपत्ति जताई और आज़म की टिप्पणी को सदन की कार्यवाही से निकालने का आदेश दे दिया। जब तक आज़म को अपनी ग़लती का एहसास हुआ तब तक बात हाथ से निकल चुकी थी।

आज़म ने बात को संभालने की कोशिश तो बहुत की। लेकिन यह कोशिश अपनी ही पतंग की टूटी हुई डोर को पकड़ने की तरह थी। आज़म की बात कटी पतंग की तरह आगे निकल चुकी थी। इस कटी पतंग को बीजेपी सांसदों ने फ़ौरन लपक लिया। देखते ही देखते सदन में आज़म के ख़िलाफ़ हंगामा खड़ा हो गया। 

क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सीधे मोर्चा संभालते हुए आज़म से इस मामले पर माफ़ी माँगने को कहा। उन्होंने याद दिलाया कि आज़म ख़ान को राज्यसभा के साथ-साथ उत्तर प्रदेश की विधानसभा का भी लंबा अनुभव है। ऐसे में उन्हें पता होना चाहिए कि सदन के अंदर कैसे बात की जाती है। ख़ासकर एक महिला पीठासीन अधिकारी को किस लहजे में संबोधित किया जाता है। 

मामला इतना बढ़ गया कि आज़म ख़ान को लोकसभा से इस्तीफ़ा देने तक की पेशकश करनी पड़ी। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव आज़म ख़ान को समझाते और उनका बचाव करते हुए दिखे। लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने भी आज़म के बयान और उनके अंदाज-ए-बयां दोनों पर कड़ी टिप्पणी की।

इससे पहले भी आज़म अपने बयानों को लेकर बड़े विवादों में फंस चुके हैं। पिछले हफ़्ते ही आज़म ख़ान ने यह कहकर एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया था कि मुसलिम नौजवान मॉब लिंचिंग के रूप में अपने पूर्वजों के पाकिस्तान ना जाने की सजा भुगत रहे हैं।

कुछ समय पहले आज़म ख़ान समाजवादी पार्टी के पूर्व राज्यसभा सदस्य मुनव्वर सलीम के अंतिम संस्कार में भोपाल गए थे। वहाँ वह पत्रकारों पर ही बरस पड़े। पत्रकारों ने उनसे सवाल पूछे तो उन्होंने पत्रकारों से कह दिया कि वह यहाँ (भोपाल) उनके वालिद (पिता जी) के अंतिम संस्कार में आए थे। इससे पहले वह सरकारी अधिकारियों से जूते साफ़ कराने की बात भी कह चुके हैं और योगी सरकार के मंत्रियों को लेकर भी कई बार विवादित बयान दे चुके हैं।

लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान आज़म अपनी प्रतिद्वंद्वी बीजेपी प्रत्याशी जयप्रदा के ख़िलाफ़ बेहद भद्दी टिप्पणी को लेकर विवादों में फंसे थे। इसे लेकर उन्हें चुनाव आयोग की फटकार भी पड़ी थी और उनके चुनाव प्रचार पर 72 घंटे की पाबंदी लगाई गई थी।

चुनाव प्रचार के दौरान आज़म ने यह कहकर बड़ा विवाद खड़ा कर दिया था कि करगिल युद्ध में भारत को सिर्फ़ मुसलिम सैनिकों की बदौलत ही फ़तह हासिल हुई थी, उनकी इस टिप्पणी पर बड़ा बवाल मचा था।

आज़म ख़ान के ऐसे विवादित बयानों की एक लंबी फ़ेहरिस्त है। उनके ऐसे बयानों से न सिर्फ़ उनकी बल्कि उनकी पार्टी के साथ-साथ कई बार मुसलिम समुदाय की भी छवि ख़राब हुई है। जब पार्टी में मुलायम सिंह यादव अध्यक्ष हुआ करते थे तब आज़म पर कुछ अंकुश रहता था लेकिन अखिलेश के मुख्यमंत्री और बाद में पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद लगता है कि आज़म पूरी तरह बेलगाम हो गए हैं। कई बार वह ऐसी बातें भी बोल जाते हैं जो अखिलेश को नागवार गुजरती हैं। उनके बयानों पर अक्सर अखिलेश भी चुप्पी साध लेते हैं और कोई भी टिप्पणी करने से बचते हैं।

आज़म आदतन मृदुभाषी हैं। लेकिन उनका लहजा सख़्त होता है। बात तो हल्की आवाज़ में करते हैं। लेकिन उस पर विवाद बड़ा हो जाता है। तीख़ा हो जाता है। हर विवाद के बाद लगता है कि आज़म ख़ान शायद पिछली ग़लतियों से सबक़ सीखेंगे और आगे कोई विवादित बयान नहीं देंगे। कोई ऐसी बात नहीं कहेंगे जो दूसरों को नागवार गुजरे। लेकिन हर बार यह उम्मीद दम तोड़ती नजर आती है। उनके ज़्यादातर बयानों को मुसलिम समुदाय में भी पसंद नहीं किया जाता। बार-बार दिए जाने वाले विवादित बयानों की वजह से उनकी छवि एक ऐसे  ग़ैर- जिम्मेदार नेता की बनती जा रही है जो कभी भी कुछ भी बोल सकता है।

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