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अयोध्याः ताज महल से बेहतर मसजिद बनाने के चक्कर में यूनिवर्सिटी क्यों हटा दी

अयोध्याः ताज महल से बेहतर मसजिद बनाने के चक्कर में यूनिवर्सिटी क्यों हटा दी

अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह की चर्चा के बीच वहां सरकारी जमीन पर बनने वाली प्रस्तावित मसजिद की भी चर्चा शुरू हो गई है। मंदिर का एक बड़ा हिस्सा सरकारी संरक्षण में बनकर तैयार है लेकिन मसजिद की एक ईंट भी रखी नहीं गई। अब इसे ताज महल से भी सुंदर बनाने के दावे किए जा रहे हैं। मसजिद के पहले वाले नक्शे में वहां अस्पताल और यूनिवर्सिटी बनाने की बात भी थी लेकिन यूनिवर्सिटी का प्रस्ताव गायब कर दिया गया है। मसजिद कमेटी इससे किसका भला करना चाहती है, कोई जवाब देगाः

बाबरी मसजिद की जमीन को लेकर 2019 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सरकार ने करीब 4500 वर्गमीटर का जमीन का टुकड़ा अयोध्या शहर से 25 किलोमीटर दूर आवंटित किया और इसके लिए एक मसजिद कमेटी का भी गठन किया गया। बाबरी मसजिद वाली जगह पर राम मंदिर बनकर तैयार है और 22 जनवरी को वहां प्राण प्रतिष्ठा भी होने वाली है। दूसरी तरफ अयोध्या में प्रस्तावित मसजिद की एक ईंट भी नहीं रखी गई और सरकार ने इस बीच नवंबर 2023 में इस कमेटी को भी बदल दिया। इस कमेटी में महाराष्ट्र से भाजपा नेता अरफात शेख को रखा गया है। अरफात शेख अब प्रस्तावित मसजिद को ताज महल से भी ज्यादा खूबसूरत बनाने के सपने मुसलमानों को दिखा रहे हैं। एक तरह से मसजिद बनवाने की जिम्मेदारी उन्होंने संभाल ली है।

अयोध्या में मुस्लिम आबादी 2011 की जनगणना के मुताबिक करीब साठ हजार है। वहां शहर के अंदर करीब दस मसजिद और दरगाहें हैं। जिस बाबरी मसजिद को गिराकर अब राम मंदिर बन रहा है, उसी के बदले सरकार ने धन्नीपुर गांव में पांच एकड़ का प्लॉट आवंटित किया है। अयोध्या के मुसलमानों या वहां की तंजीमों ने अभी एक बार भी प्रस्तावित मसजिद को लेकर अपनी ओर से सक्रियता नहीं दिखाई लेकिन नवंबर में नई कमेटी आने के बाद कमेटी के लोग सक्रियता दिखा रहे हैं। लेकिन नई कमेटी ने जिस तरह पुराना नक्शा बदल कर नए नक्शे में चंदे के दम पर ताज महल से भी खूबसूरत मसजिद बनाने का ऐलान किया है, उससे सवाल उठ रहे हैं।

पुराना नक्शा बदल दिया

मसजिद का पुराना नक्शा 4500 वर्ग मीटर जमीन के हिसाब से जामिया मिलिया इस्लामिया नई दिल्ली में वास्तुकला संकाय के संस्थापक डीन एस.एम. अख्तर ने तैयार किया था। जिन्होंने आम राय से इस प्लान में अस्पताल, रिसर्च सेंटर, लाइब्रेरी और सामुदायिक रसोई (किचन) को भी शामिल किया था। लेकिन नवंबर में भाजपा नेता अरफात शेख के नेतृत्व में बनी नई कमेटी ने न सिर्फ नक्शा बदल दिया, बल्कि अपने लिए कई सारे टारगेट खुद तय कर लिए हैं। शेख ने कहा कि अब इस जगह देश की सबसे बड़ी मसजिद जो ताजमहल से भी खूबसूरत होगी, बनाई जाएगी। यहां पर विश्व का सबसे विशालकाय कुरान रखा जाएगा। जिसकी लंबाई चौड़ाई 21 फीट होगी।

अयोध्या मसजिद की नई डिजाइन को लेकर कमेटी के अध्यक्ष अरफात शेख के अपने तर्क भी हैं। उनका कहना है कि "पहले का डिज़ाइन अंडे जैसा दिखता था, मसजिद जैसा नहीं। '' उन्होंने कहा कि पुणे के वास्तुकार, इमरान शेख द्वारा तैयार किया गया नया डिज़ाइन, फरवरी के अंत तक तैयार हो जाएगा। नए नक्शे में अस्पताल और सामुदायिक रसोई को बरकरार रखा जाएगा। यह भारत की पहली मसजिद होगी जिसमें पांच मीनारें होंगी। यहां लाइट एंड साउंड शो की भी योजना बनाई जा रही है। मसजिद की लाइटें सूर्यास्त के समय जलेंगी और सूर्योदय के समय अपने आप बंद हो जाएंगी।

पैसा कहां से आएगा

अयोध्या में मसजिद का निर्माण इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन (आईआईसीएफ) करेगा। प्रशासनिक देरी और पैसे की कमी से अभी कोई काम शुरू नहीं हो सका है। इसलिए फाउंडेशन अब जनता से चंदा लेगी। कहा जा रहा है कि फरवरी में इस प्रक्रिया को शुरू किया जाएगा। अरफात शेख का कहना है कि मसजिद निर्माण रमज़ान के बाद 2024 की दूसरी छमाही में शुरू होगा। उन्होंने कहा, "कुरान की आयतों वाली एक ईंट मदीना (सऊदी अरब) और पूरे भारत में प्रमुख दरगाहों तक जाएगी।" इसके बाद इसे साइट पर रखा जाएगा।

 - Satya Hindi

अयोध्या में प्रस्तावित मसजिद का पुराना डिजाइन

उन्होंने स्पष्ट किया कि आईआईएफसी दान के लिए घर-घर नहीं जाएगा, बल्कि आसान दान के लिए क्यूआर कोड के साथ फरवरी के अंत या मार्च की शुरुआत में एक वेबसाइट लॉन्च करेगा। यह राम मंदिर के लिए धन जुटाने के लिए 2021 में विश्व हिंदू परिषद के 45-दिवसीय राष्ट्रव्यापी राम मंदिर निधि समर्पण अभियान के विपरीत है। संस्था ने घर-घर जाकर करीब ₹2,100 करोड़ इकट्ठा किए थे।

मसजिद का नाम बदला

अयोध्या में मसजिद निर्माण की जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को सौंपी गई थी। उसने पिछले साल ट्रस्ट बनाया। ट्रस्ट ने फाउंडेशन बनाया और अरफात शेख उसी फाउंडेशन से हैं। शेख पहले महाराष्ट्र राज्य अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष थे। उन्होंने मस्जिद के नाम मस्जिद-ए-अयोध्या पर आपत्ति जताते हुए इसे बदलकर मुहम्मद बिन अब्दुल्ला मस्जिद कर दिया है। अब यह पैगंबर के नाम पर है। 

इतनी सारी कवायद के बाद यह सवाल बना हुआ है कि अयोध्या से 25 किलोमीटर दूर इस प्रस्तावित मसजिद में वो मुसलमान कैसे नमाज पढ़ने जाएंगे जो बाबरी मसजिद में नमाज पढ़ा करते थे। दूसरी बात यह है कि धन्नीपुर में कितने मुसलमान आसपास से नमाज पढ़ने आएंगे। पहले के नक्शे में जिस तरह इसमें यूनिवर्सिटी का प्रोजेक्ट था, वो ज्यादा बेहतर रहता। बहरहाल, ताज महल से भी खूबसूरत मसजिद का इंतजार कर रहे मुसलमान अभी सिर्फ इंतजार ही कर सकते हैं। क्योंकि पांच एकड़ प्लॉट में निर्माण एक बड़ा प्रोजेक्ट है। वह भी तब जब पैसे नहीं हैं।

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