अयोध्या मामला: 2 अगस्त को तय होगी सुनवाई की तारीख़
राम जन्मभूमि-बाबरी मसजिद विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को अहम सुनवाई हुई। अदालत ने कहा है कि अयोध्या मामले में सुनवाई के लिए वह 2 अगस्त को तारीख़ तय करेगी। इससे पहले मध्यस्थता कमेटी ने कोर्ट में रिपोर्ट दाख़िल की। अदालत ने यह भी कहा कि मध्यस्थता की प्रक्रिया 31 जुलाई तक जारी रहेगी।
इससे पहले राम जन्मभूमि-बाबरी मसजिद विवाद पर 10 मई को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में सुनवाई हुई थी। उस दौरान जस्टिस कलीफ़ुल्ला कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सीलबंद लिफ़ाफे में सर्वोच्च अदालत को सौंपी थी। मध्यस्थता कमेटी ने अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिए संविधान पीठ से और समय देने की माँग की थी जिसे पीठ ने स्वीकार करते हुए पीठ ने मध्यस्थता कमेटी का कार्यकाल 15 अगस्त तक बढ़ा दिया था।
Ayodhya land dispute case: Justice Kalifulla, chairman of mediation committee submits report in Supreme court. CJI says, "We now fix the date of hearing on August 2nd. We request the mediation committee to inform the outcome of the proceedings as of July 31st." pic.twitter.com/fSdvCc47mr
— ANI (@ANI) July 18, 2019
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद में समाधान के लिए मध्यस्थों की एक कमेटी बनाई थी। जस्टिस एफ़. एम. कलीफ़ुल्ला (रिटायर्ड) की अध्यक्षता में बनी कमेटी में आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पाँचू को भी शामिल किया गया था। समिति ने मामले की मध्यस्थता को लेकर रिपोर्टिंग पर रोक लगा दी थी। समिति ने सभी पक्षों से कहा था कि वे इसकी गोपनीयता को बनाये रखें।
मध्यस्थता और बातचीत के ज़रिए अयोध्या विवाद सुलझाने की कोशिशें पहले भी कई बार हुईं हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने 3 अगस्त, 2010 को सुनवाई के बाद सभी पक्षों के वकीलों को बुला कर यह प्रस्ताव रखा था कि बातचीत के ज़रिए मामले को सुलझाने की कोशिश की जाए। लेकिन हिन्दू पक्ष ने बातचीत से मामला सुलझाने की पेशकश को खारिज कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2017 में मंदिर विवाद को कोर्ट के बाहर ही सुलझाने की सलाह दी थी। कोर्ट ने कहा था कि यह विवाद धर्म और आस्था से जुड़ा है, इसमें दोनों पक्ष आपस में बातचीत करके मुद्दे को सुलझाने की कोशिश करें। कोर्ट ने तब कहा था कि अगर ज़रूरत पड़ी तो कोर्ट मध्यस्थता के लिए तैयार है।
साल 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने यह कोशिश की थी कि निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड और राम लला विराजमान के प्रतिनिधियों को एक जगह बिठा कर बातचीत कराई जाए और मामले का निपटारा अदालत के बाहर ही कर लिया जाए।
चंद्रशेखर सरकार के रहते दोनों तरफ़ के विशेषज्ञों ने कुल छह बैठकें कीं। सात हजार पन्नों के दस्तावेज़ों की अदला-बदली हुई। 6 फरवरी, 1991 की पाँचवीं बैठक में सरकार ने तय किया कि दोनों पक्षों के दिए गए कागजों की मूल अभिलेखों के साथ जाँच होगी। चंद्रशेखर समझौते पर पहुँचते, इससे पहले ही कांग्रेस ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया था और सरकार गिर गई थी। इसके अलावा मुसलिम नेता अली मियाँ और काँची कामकोटि के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती को बिठा कर बात करने और उनकी मध्यस्थता से सभी पक्षों को राजी करने की कोशिशें भी हुईं थीं।