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अयोध्या विवाद- उपासक के नाते वहाँ पूजा का हक़: याचिकाकर्ता

अयोध्या विवाद- उपासक के नाते वहाँ पूजा का हक़: याचिकाकर्ता

सुप्रीम कोर्ट में दसवें दिन सुनवाई में मूल याचिकाकर्ताओं में शामिल गोपाल सिंह विशारद के वकील ने दलील रखी कि भगवान राम का उपासक होने के नाते मेरा वहाँ पर पूजा करने का अधिकार है।

सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को दसवें दिन भी अयोध्या विवाद पर सुनवाई जारी रही। मूल याचिकाकर्ताओं में शामिल गोपाल सिंह विशारद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने पीठ के समक्ष दलीलें रखीं। उन्होंने कहा कि भगवान राम का उपासक होने के नाते मेरा वहाँ पर पूजा करने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट उन केसों की सुनवाई कर रहा है जिसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट के 30 सितंबर 2010 के फ़ैसले के ख़िलाफ़ 14 अपीलें दायर की गई हैं। इसी मामले में रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा की ओर से अभी तक दलीलें रखी जा रही थीं। लेकिन बुधवार शाम से ही याचिकाकर्ताओं की दलीलें सुनी जा रही हैं और गुरुवार को भी इनकी दलीलें सुनी गईं।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील रंजीत कुमार ने दलील रखी कि मैं उपासक हूँ और मुझे विवादित स्थल पर उपासना का अधिकार है। यह अधिकार मुझसे छीना नहीं जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि वह रामलला विराजमान के वकील वैद्यनाथन और परासरन के उन तर्कों से सहमत हैं कि वह ज़मीन ख़ुद में भगवान की ज़मीन है। उन्होंने कहा, ‘भगवान राम का उपासक होने के नाते मेरा वहाँ पर पूजा करने का अधिकार है। यह मेरा सामाजिक अधिकार है, जिसे हटाया नहीं जा सकता। यह वह जगह है जहाँ भगवान राम का जन्म हुआ था। मैं यहाँ पर पूजा करने का अधिकार माँग रहा हूँ।’

वकील रंजीत कुमार ने कुछ मुसलिम गवाहों का ज़िक्र कर यह बताने की कोशिश की कि मंदिर का अस्तित्व वहाँ काफ़ी पहले से था। उन्होंने एक मुसलिम गवाह का ज़िक्र करते हुए कहा कि बाबरी मसजिद में काफ़ी लंबे अर्से से नमाज़ नहीं हो रही है और ब्रिटिश राज में मसजिद में सिर्फ़ जुमे की नमाज़ होती थी।

सुप्रीम कोर्ट के सवाल पूछने पर रंजीत कुमार ने कहा कि उनका क्रॉस एग्जामिनेशन नहीं किया गया, लेकिन वह लोग ख़ुद सामने आए थे और उन्होंने बयान दिया था। 

रामलला विराजमान की दलीलें

अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के नौवें दिन रामलला विराजमान के वकील सी. एस. वैद्यनाथन ने कहा था कि अगर जन्मस्थान ही देवता है, अगर संपत्ति ख़ुद में एक देवता है तो ज़मीन के मालिकाना हक़ का दावा कोई नहीं कर सकता। उन्होंने यह भी कहा कि भगवान रामलला नाबालिग हैं और ऐसे में नाबालिग की ज़मीन को न तो बेचा जा सकता है और न ही छीना जा सकता है। 

सुनवाई के दौरान एक सवाल पर वैद्यनाथन ने दलील दी कि यदि वहाँ पर कोई मंदिर नहीं था, कोई देवता नहीं है तो भी जन्मभूमि के प्रति लोगों की काफ़ी आस्था है। ऐसे में वहाँ पर मूर्ति रखने से पवित्रता ही आएगी। उन्होंने यह भी कहा, ‘ज़मीन केवल भगवान की है। वह भगवान राम का जन्मस्थान है, इसलिए किसी के वहाँ मसजिद बना कर उसपर कब्जे का दावा करने का सवाल नहीं उठता।’ 

बता दें कि अयोध्या मामले की पाँच सदस्यीय संविधान पीठ सुनवाई कर रही है। इससे पहले मध्यस्थता की भी कोशिश की गई थी लेकिन वह प्रयास भी विफल हो गया था।

इलाहाबाद हाई कोर्ट का फ़ैसला

सुप्रीम कोर्ट उन केसों की सुनवाई कर रहा है जिसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट के 30 सितंबर 2010 के फ़ैसले के ख़िलाफ़ 14 अपीलें दायर की गई हैं। हाई कोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ भूमि को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान के बीच समान रूप से विभाजित करने का आदेश दिया था। लेकिन हाई कोर्ट का यह फ़ैसला कई लोगों को पसंद नहीं आया। यही कारण है कि इस मामले के ख़िलाफ़ कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएँ दायर कीं। सुप्रीम कोर्ट ने इन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मई 2011 में हाई कोर्ट के फ़ैसले पर रोक लगा दी थी। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। इसी मामले में यह सुनवाई चल रही है।

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