ऐ मेरे वतन के लोगों...सुनकर रो पड़े थे जवाहर लाल नेहरू और लता
लोकप्रिय देशभक्ति गीत, ऐ मेरे वतन के लोगों, भारत-चीन युद्ध के बाद लिखा गया था और तब से यह भारत का सबसे लोकप्रिय देशभक्ति गीत बन गया है। 27 जनवरी 1963 को जब लता मंगेशकर ने इसे राष्ट्रपति डॉ. एस राधाकृष्णन और प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की मौजूदगी में नेशनल स्टेडियम में गाया तो तत्कालीन प्रधानमंत्री की आंखें नम हो गईं। नेहरू ने कहा था कि एक सच्चा भारत इस गीत से पूरी तरह प्रभावित होगा।
इसकी शुरुआत दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में भारतीय युद्ध विधवाओं के लिए फिल्म इंडस्ट्री ने धन जुटाने के लिए आयोजित किया था। इसका संगीत सी. रामचंद्र ने दिया था और लता मंगेशकर द्वारा गाया गया था। साढ़े छह मिनट का गीत सुनते ही पंडित जवाहरलाल नेहरू की आंखें भर आईं। आइए इस महान गीत के रचने की कुछ कहानियों को उजागर करें।
Aye mere watan ke logo🙏🙏
— Gautam Aggarwal 🇮🇳 (@gauagg) February 6, 2022
Lost for words to describe the legend and emotion #LataMangeshkar ji 🙏🙏
Om Shanti 🙏 pic.twitter.com/jvFwod5UvY
शुरू में, जब लता मंगेशकर ने ऐ मेरे वतन के लोगों गाने से इनकार कर दिया, तो आशा भोसले के नाम को इसकी जगह सुझाया गया। हालांकि, कवि प्रदीप लता मंगेशकर को इसे गाने के लिए मनाने में कामयाब रहे। कवि प्रदीप ने खुलासा किया था कि ऐ मेरे वतन के लोगो की पंक्तियाँ उनके दिमाग में तब आई थीं जब वह मुंबई के माहिम बीच पर टहल रहे थे। चूँकि उसके पास कलम या कागज नहीं था, उन्होंने वहाँ से गुजर रहे एक अजनबी से कलम माँगी और सिगरेट के डिब्बे के एल्युमिनियम फॉयल पर पंक्तियाँ लिख दीं।
End of an Era!
— Hardi Singh (@HardiSpeaks) February 6, 2022
India's Nightingale, Lata Mangeshkar leaves us forever 🙏🏻🌺🌺🌺🙏🏻
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यह तय हो गया था कि लता मंगेशकर गीत गाएंगी और सी रामचंद्र इसका संगीत देंगे। गायक और संगीतकार के बीच मतभेद था और लता ने गीत से बाहर निकलने का विकल्प चुना। इसके बाद आशा भोंसले को इसे गाने के लिए कहा गया। लेकिन प्रदीप अड़े थे कि इसे लता ही गा सकती हैं। उन्होंने महसूस किया कि इस गीत को लता की आवाज जो भावना और न्याय दे सकती है, वह अद्वितीय है। इसके बाद प्रदीप लता के पास गए और उन्हें गाने के लिए मना लिया।
कहा जाता है कि लता पहली बार गाने के बोल सुनकर रो पड़ी थीं। वह तुरंत इसे गाने के लिए तैयार हो गईं लेकिन इस शर्त पर कि रिहर्सल के दौरान प्रदीप खुद मौजूद रहेंगे।
हालांकि गाना सुनने के बाद लता ने सुझाव दिया कि इसे सोलो की बजाय युगल गीत में गाया जाना चाहिए। दूसरी ओर, कवि प्रदीप चाहते थे कि लता इसे अकेले गाएं। हालांकि युगल में ही लता और आशा ने गाने की रिहर्सल की थी, लेकिन आशा ने इसके बाद गाने से दूरी बना ली थी। लता ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन आशा ने अपना मन बना लिया था। हालांकि उस समय के अखबारों में लता और आशा दोनों के नाम थे।
महान संगीतकार और गायक हेमंत कुमार ने इस विवाद को संभालने की कोशिश की लेकिन वह भी आशा को मना नहीं पाए। फिर लता ने इसे दिल्ली में अकेले गाया।
जब लता ने इसे राष्ट्रपति डॉ. एस राधाकृष्णन और प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की मौजूदगी में नेशनल स्टेडियम में गाया तो तत्कालीन प्रधानमंत्री की आंखें नम हो गईं। नेहरू ने यह भी कहा था कि एक सच्चा भारत इस गीत से पूरी तरह प्रभावित होगा। 27 जनवरी 1963 को नेशनल स्टेडियम में आयोजित समारोह में आमंत्रित नहीं किए जाने पर कवि प्रदीप उदास हो गए थे। हालांकि, दो महीने बाद, जब नेहरू एक स्कूल कार्यक्रम के लिए मुंबई आए, तो कवि प्रदीप ने उनके सामने यह गीत गाया। प्रदीप ने अपनी लिखावट में लिखा यह गीत भी नेहरू को भेंट किया।