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बर्ड फ्लू: पक्षियों की इस बीमारी से इंसानों को कैसा डर?

बर्ड फ्लू: पक्षियों की इस बीमारी से इंसानों को कैसा डर?

देश में अब तक एवियन इंफ्लूएंजा यानी बर्ड फ्लू से कोई भी इंसान संक्रमित नहीं है। सिर्फ़ पक्षी ही बीमार हैं। तो पक्षियों की इस बीमारी से इंसान क्यों डर रहे हैं? राज्य सरकारों से लेकर केंद्र सरकार तक आख़िर इतने चिंतित क्यों हैं? 

देश में अब तक एवियन इंफ्लूएंजा यानी बर्ड फ्लू से कोई भी इंसान संक्रमित नहीं है। सिर्फ़ पक्षी ही बीमार हैं और मरे भी हैं। तो पक्षियों की इस बीमारी से इंसान क्यों डर रहे हैं? राज्य सरकारों से लेकर केंद्र सरकार तक आख़िर इतने चिंतित क्यों हैं? लाखों पक्षियों को मारा क्यों जा रहा है? 

तो पहला सवाल। आख़िर यह बर्ड फ्लू क्या है? बर्ड फ्लू एक वायरल संक्रमण है। यानी वायरस से फैलने वाला संक्रमण। वायरस एक ऐसी चीज है जो न तो जीवित है और न ही मृत। जब यह किसी जीव के संपर्क में आता है तो सक्रिय हो जाता है। यानी बिना किसी जीव के संपर्क में आए यह एक मुर्दे के समान है और यह ख़ुद को नहीं बढ़ा सकता है। बर्ड फ्लू पक्षियों में पलने-बढ़ने वाला वायरस है और यह उनके लिए काफ़ी घातक है। 

अब सवाल है कि क्या यह इंसानों या जानवरों में फैल सकता है? हालाँकि अधिकांश क़िस्म के बर्ड फ्लू वायरस पक्षियों को संक्रमित करते हैं और ये सामान्य तौर पर इंसानों और जानवरों नहीं फैलते हैं। बर्ड फ्लू की कई क़िस्में हैं- H1N1, H2N9, H6N5 आदि। देश के 9 राज्यों में बर्ड फ्लू की पुष्टि हुई है जिसमें से केरल में एवियन इन्फ्लुएंजा के H5N8 की पुष्टि हुई है। और राज्यों में पुष्टि होना बाक़ी है। लेकिन इसका H5N1 रूप इंसानों और अन्य जानवरों को भी सबसे ज़्यादा प्रभावित करता है। यह वायरस न तो पक्षियों से इंसानों में आसानी से फैलता है और न ही इस वायरस को इंसान से इंसानों में फैलने के लिए जाना जाता है। लेकिन बर्ड फ्लू के इंसानों में संक्रमण के मामलों में मौत दर ज़्यादा होती है। यानी बर्ड फ्लू कोरोना वायरस से सीधा उल्टा है। कोरोना इंसानों से इंसानों में काफ़ी तेज़ी से फैलता है और मृत्यु दर काफ़ी कम है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने भी कहा है कि लोगों में बर्ड फ्लू संक्रमण के लगभग सभी मामले संक्रमित जीवित या मृत पक्षियों, या बर्ड फ्लू से संक्रमित वातावरण के साथ निकट संपर्क में आने से जुड़े हैं। वायरस आसानी से इंसानों को संक्रमित नहीं करता है और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलना असामान्य सी बात लगती है। 

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चिकेन खाना सुरक्षित है या नहीं?

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, इस बात का कोई सबूत नहीं है कि बर्ड फ्लू का संक्रमण ठीक से तैयार और अच्छी तरह से पके हुए भोजन के माध्यम से लोगों में फैल सकता है। क्या चिकन, पोल्ट्री उत्पाद और अन्य जंगली पक्षियों को खाना सुरक्षित है? इसका एक सीधा जवाब है। हाँ, सुरक्षित है। बस शर्त यह है कि मांस को साफ़-सुथरे तरीक़े से बनाया जाए और वह ठीक से और पूरी तरह पकाया गया हो। यह इसलिए कि यह वायरस गर्मी के प्रति संवेदनशील है। खाना पकाने के लिए उपयोग किए जाने वाले सामान्य तापमान 70 डिग्री सेल्सियस वायरस को मार देगा। 

एक मानक एहतियात के रूप में डब्ल्यूएचओ का सुझाव है कि पोल्ट्री उत्पादों और जंगली पक्षियों को हमेशा अच्छी तरह तैयार किया जाना चाहिए, स्वच्छता बरती जानी चाहिए और मांस को ठीक से पकाया जाना चाहिए।

बर्ड फ्लू को ऐसे पहचानें-

  • तेज़ बुखार आए
  • तापमान 38 डिग्री सेल्सियस हो जाए
  • गले में ख़राश, कफ 
  • नाक का बहना
  • आँखों में सूजन, दर्द 
  • गले में सूजन
  • दस्त लगना
  • सिर और मांसपेशियों में दर्द
  • पेट के नीचे वाले हिस्से में दर्द
  • निमोनिया और सांस लेने में दिक्क़त

माना जाता है कि बर्ड फ्लू के मामले 1878 में पहली बार रिपोर्ट किए गए थे। तब से लेकर अब तक दुनिया भर के कई देशों में कई क़िस्म का बर्ड फ्लू वायरस आ चुका है। अब तक इंसानों के लिए सबसे ज़्यादा चिंता पैदा करने वाली बर्ड फ्लू की H5N1 क़िस्म है। इसकी वैक्सीन विकसित की जा चुकी है, लेकिन बड़े स्तर पर इस्तेमाल के लिए यह अभी तैयार नहीं है। 

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बर्ड फ्लू की भारत में क्या है ताज़ा स्थिति?

बता दें कि दिल्ली में भी बर्ड फ्लू का मामला आ चुका है। अब तक देश के नौ राज्यों में बर्ड फ्लू की पुष्टि हो चुकी है। दिल्ली के अलावा महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, केरल, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और गुजरात में बर्ड फ्लू के मामले आ चुके हैं। इनके अलावा जम्मू-कश्मीर, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यो में भी अलर्ट है। एक तरह से कहें तो पूरे देश में इसका डर है। अब तक लाखों पक्षी इस बीमारी से मर चुके हैं। 

हालाँकि, पिछले हफ़्ते ही सरकार ने साफ़ किया था कि देश में इंसानों में बर्ड फ्लू के मामले नहीं आए हैं। देश भर में राज्यों के मुख्य सचिवों से कहा गया है कि वे स्थिति पर नज़र रखें और स्वास्थ्य अधिकारियों से संपर्क में रहें। राज्यों से भी यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि पर्याप्त मात्रा में पीपीई किट उपलब्ध कराया जाए।

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