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उत्तराखंड में आख़िर क्यों बढ़ रही हैं हिमस्खलन की घटनाएँ?

उत्तराखंड में आख़िर क्यों बढ़ रही हैं हिमस्खलन की घटनाएँ?

उत्तराखंड में हिमस्खलन पहले कई बार हो चुका है। ऊँचे पहाड़ों पर जिस तरह पर्यावरण की उपेक्षा की जाती है और विकास के नाम पर सरकार के तय दिशा-निर्देशो की धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं, इस तरह की वारदात न तो अनपेक्षित न ही अभूतपूर्व। 

उत्तराखंड में हुए ज़बरदस्त हिमस्खलन में कई लोगों के लापता होने की ख़बर तो है ही, जिस जगह यह हादसा हुआ है, उसके पास ही एक पनबजिलीघर है, जिसके इस हिमस्खलन की चपेट में आने की आशंका है। यदि ऐसा हुआ तो बड़े पैमाने पर तबाही हो सकती है।

लेकिन यह पहली बार नहीं है कि उत्तराखंड में इस तरह का हिमस्खलन हुआ है। वहाँ इस तरह का हादसा इसके पहले कई बार हो चुका है। ऊँचे पहाड़ों पर जिस तरह पर्यावरण की उपेक्षा की जाती है और विकास के नाम पर सरकार के तय दिशा-निर्देशो की धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं, इस तरह की वारदात न तो अनपेक्षित न ही अभूतपूर्व। 

केदारनाथ 

पिछले एक-दो साल की घटनाओं पर नज़र डालने से ट्रेंड साफ हो जाता है। उत्तराखंड के ही केदारनाथ के पास वासुकी ताल के पास जुलाई, 2020 में ज़ोरदार हिमस्खलन हुआ था। इसकी चपेट में चार सैलानी आए थे, जो वहाँ ट्रेकिंग करने गए थे। 

स्टेट डिजास्टर रिस्पॉन्स फ़ोर्स ने तुरन्त अपनी टीम भेज कर उन सैलानियों का पता लगाया था। एसडीआरएफ़ के विनीत कुमार ने कहा था कि त्रियुगीनारायण गाँव के प्रमुख ने उन सैलानियों को देखा है और उनके बारे में जानकारी दी है। बाद में उन सभी सैलानियों को बचा लिया गया था। 

चमोली

इसके पहले सितंबर, 2019 में हंगरी से आए पर्वतारोही पीटर विटेक चमोली में आए हिमस्खनल की चपेट में आ गए थे। पीटर विटेक 7,120 मीटर की ऊँचाई पर त्रिशूल पर्वत पर हिमस्खलन की चपेट में आए और लापता हो गए, उन्हें नहीं ढूंढा जा सका। यह वारदात गढ़वाल हिमालय पर हुई थी।

 - Satya Hindi

पिथौरागढ़ 

जून 2020 में उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले के नंदा देवी पूर्व की चोटी पर एक पर्वतारोही हिमस्खलन की चपेट में आया था। 

बाद में इंडो टिबेटन बॉर्डर पुलिस ने सात पर्वतारोहियों के शव बरामद किए थे। ये सभी उत्तराखंड के अलग-अलग हिस्सों में आए हिमस्खलन के शिकार हो गए थे। 

गढ़वाल

इसके पहले दिसंबर 2019 में सीमा सुरक्षा बल के जवान शेख़ हाज़ी हुसैन हिमस्खलन के शिकार हो गए थे। मछलीपटनम निवासी शेख हुसैन उत्तराखंड में तैनात थे और सामान्य ड्यूटी पर ही थे जब हठात आए हिमस्खलन ने उन्हें अपनी चपेट में ले लिया था। 

गंगोत्री वन

अक्टूबर, 2019 में इंडो टिबेटन बॉर्डर पुलिस के नोर्बू वांगदुस उत्तराखंड के गंगोत्री वन की चोटी पर हिमस्खलन के शिकार हो गए थे। वे खुद मशहूर पर्वतारोही थे, लेकिन यकायक आए हिमस्खलन से बच नहीं सके थे। 

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इसी साल पिछले महीने यानी जनवरी में जम्मू-कश्मीर के छह ज़िलों और उत्तराखंड के कई ज़िलों में हिमस्खलन की चेतावनी दी गई थी। यह कहा गया था कि उत्तराखंड के चंपावत, बागेश्वर, पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी में ज़बरदस्त हिमपात होगा और इनमें से कुछ जगहों पर हिमस्खलन भी हो सकता है। 

ज़्यादा हिमस्खलन क्यों?

ऊँचे पहाड़ों पर हिमस्खलन असामान्य घटना नहीं है और यह हिमालय ही नहीं, दुनिया के दूसरे पहाड़ों पर भी होता रहता है। पर बीते कुछ सालों से हिमालय और उसमें भी निचले हिमालय पर हिमस्खलन की घटनाएं लगातार बढ़ रही है। स्थानीय लोगों ने कई बार कहा है कि पहले ऐसा नहीं होता था। पहले जिन इलाक़ों में हिमस्खलन नहीं होता था, वहाँ भी होने लगे हैं। 

पर्यवेक्षकों का कहना है कि विकास के नाम पर पहाड़ों को जिस तरह काटा जा रहा है, उससे स्थिति बहुत बिगड़ गई है। पहाड़ों का तामपान तो बढा ही है, कई जगहों पर पहाड़ काटे जाने से ग्लेशियर सिकुड़ गए हैं।

ऐसे में कई स्थानों पर ग्लेशियर अपना रास्ता बदल लेते हैं और ऐसे में हिमस्खलन होता है। हिमालय के निचले इलाक़ों और चमोली-गढ़वाल वगैरह में पहले से ज़्यादा हिमस्खलन इसी वजह से होते हैं। 

पर्यावरणविदों ने इस पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि खुद सरकार के अपने दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया जाता है और ज़्यादा से ज़्यादा सैलानियों को आकर्षित करने की कोशिश में उन जगहों पर भी पहाड़ काट दिए जाते हैं या होटल वगैरह बना दिए जाते हैं, जहाँ ऐसा नहीं किया जाना चाहिए। ऐसे में यह हिमस्खलन  कोई बहुत बड़े आश्चर्य की बात नहीं है। 

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