एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन पर डेनमार्क, नॉर्वे, आइसलैंड में तात्कालिक रोक
जिस एस्ट्राज़ेनेका-ऑक्सफ़ोर्ड से क़रार कर सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया कोरोना वैक्सीन बना रहा है उसी एस्ट्राज़ेनेका-ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन पर कई यूरोपीय देशों में तात्कालिक तौर पर रोक लगाई गई है। यह रोक डेनमार्क, नॉर्वे और आइसलैंड ने गुरुवार को लगाई। ये देश अब इस वैक्सीन की पड़ताल करने के बाद इस पर आगे फ़ैसला लेंगे। इन देशों की चिंता यह है कि इस वैक्सीन को लगाने के बाद कुछ मामलों में ब्लड क्लॉटिंग यानी ख़ून जमने की समस्या आई है। हालाँकि, एस्ट्राज़ेनेका ने कहा है कि वैक्सीन पूरी तरह सुरक्षित है। एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन की अब तक दुनिया भर में तारीफ़ की जाती रही है।
एस्ट्राज़ेनेका ही वह कंपनी है जिसने ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के साथ मिलकर इस वैक्सीन को विकसित किया है और जिसका भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया बड़े पैमाने पर उत्पादन कर रहा है। सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा बनाई गई वैक्सीन भारत में तो सप्लाई की ही जा रही है, दुनिया के कई देशों में भी सप्लाई की जा रही है। हालाँकि भारत जैसे कई देशों में ब्लड क्लॉटिंग जैसी कोई भी शिकायत नहीं आई है।
डेनमार्क पहला देश है जिसने एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन को निलंबित किया है। देश के स्वास्थ्य अधिकारियों ने एक बयान में कहा है कि ब्लड क्लॉटिंग की गंभीर शिकायतों के बाद यह क़दम उठाया गया। इसने कहा है कि यह एहतियात के तौर पर किया गया है।
यूरोपीय मेडिसिन एजेंसी यानी ईएमए ने कहा है कि 9 मार्च तक यूरोपीय आर्थिक क्षेत्र में टीकाकरण किए गए 30 लाख से अधिक लोगों में से 22 मामलों में ख़ून जमने की शिकायत सामने आई है।
इससे पहले ऑस्ट्रिया ने सोमवार को तब एस्ट्राज़ेनेका की सप्लाई की गई एक ख़ास खेप की वैक्सीन पर तात्कालिक तौर पर रोक लगा दी थी जब वैक्सीन लगाने के कुछ दिनों बाद 49 साल के एक नर्स की मौत हो गई थी। तब मौत का कारण ब्लड क्लॉटिंग यानी ख़ून का जमना बताया गया था। इसके अलावा चार अन्य यूरोपीय देशों- इस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया और लग्ज़मबर्ग ने भी वैक्सीन की सप्लाई वाली उसी ख़ास खेप पर रोक लगाई। उस खेप में यूरोप के 17 देशों को 10 लाख वैक्सीन की खुराक भेजी गई थी।
इस बीच यूरोप की मेडिसिन एजेंसी ईएमए ने कहा है कि शुरुआती जाँच में पता चलता है कि एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन की जो खेप ऑस्ट्रेलिया में भेजी गई थी वह संभवत: नर्स की मौत का कारण नहीं थी।
इन रिपोर्टों के बाद भी यूरोपीय देशों के विशेषज्ञों ने इस वैक्सीन को सुरक्षित और प्रभावी बताया है और कहा है कि रोक लगाने जैसे क़दम उठाना 'बहुत ज़्यादा एहतियात' है।
एएफ़पी की रिपोर्ट के अनुसार लंदन स्कूल ऑफ़ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन में फार्माकोएपिडेमियोलॉजी के एक प्रोफेसर स्टीफन इवांस ने कहा कि यह यूरोप में कुछ अलग-अलग रिपोर्टों के आधार पर एक ज़्यादा-सतर्क दृष्टिकोण अपनाने का नतीजा है। उन्होंने कहा, 'जोखिम और लाभ का संतुलन अभी भी वैक्सीन के पक्ष में है।'
एस्ट्राज़ेनेका ने भी अपनी वैक्सीन के सुरक्षित होने का दावा किया है। बता दें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने भी एस्ट्राज़ेनेका-ऑक्सफोर्ड की कोरोना वैक्सीन को आपात इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है और इसे पूरी तरह सुरक्षित और कोरोना के ख़िलाफ़ प्रभावी बताया है।