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तमिलनाडु में स्टालिन, केरल में विजयन की राह कितनी आसान?

तमिलनाडु में स्टालिन, केरल में विजयन की राह कितनी आसान?

तमिलनाडु और केरल में नयी विधानसभा के लिए 6 अप्रैल को मतदान होगा। दोनों राज्यों में कोरोना के बढ़ते मामलों के बावजूद ज़ोर-शोर से चुनाव प्रचार हुआ। 

तमिलनाडु और केरल में नयी विधानसभा के लिए 6 अप्रैल को मतदान होगा। दोनों राज्यों में कोरोना के बढ़ते मामलों के बावजूद ज़ोर-शोर से चुनाव प्रचार हुआ। सभी राजनीतिक पार्टियों और उम्मीदवारों ने मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए पूरी ताक़त झोंक दी है। अब तक जितने भी ओपिनियन पोल आये हैं, अगर उन्हें सही माना जाए, तो तमिलनाडु में सत्ता परिवर्तन होगा और डीएमके के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार बनेगी। केरल में वामपंथी मोर्चा अपनी सरकार बचाने में कामयाब रहेगा और नया इतिहास लिखेगा। ज़्यादातर राजनीतिक पंडित भी यह मान रहे हैं कि डीएमके के मुखिया स्टालिन तमिलनाडु के नये मुख्यमंत्री होंगे, जबकि मार्क्सवादी नेता पिनराई विजयन केरल के मुख्यमंत्री बने रहेंगे।

स्टालिन के अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों से आगे होने के कई कारण हैं। अन्ना डीएमके पिछले 10 सालों से सत्ता में है। अन्ना डीएमके की पहचान 'अम्मा' जयललिता से रही है। 2016 के चुनाव में अन्ना डीएमके को ऐतिहासिक जीत दिलाने के कुछ महीनों बाद जयललिता की मौत हो गयी। उनकी मौत के बाद तमिलनाडु में नाटकीय परिणाम हुए। पहले पन्नीरसेल्वम मुख्यमंत्री बने। इसके बाद जयललिता की क़रीबी शशिकला ने पार्टी की कमान अपने हाथों में ली और अपने वफ़ादार पलानिस्वामी को मुख्यमंत्री बनाया। इसके कुछ दिनों बाद शशिकला ने ख़ुद मुख्यमंत्री बनने की कोशिश शुरू की। शशिकला के शपथग्रहण की तारीख़ भी तय हो गयी। लेकिन इसी दौरान भ्रष्टाचार के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें दोषी क़रार दिया और उन्हें चार साल जेल की सज़ा हुई। शशिकला के जेल जाने के बाद केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने दो गुटों में बँटे अन्ना डीएमके को एक किया और पलानिस्वामी और पन्नीरसेल्वम के बीच संधि करवायी। पन्नीरसेल्वम उपमुख्यमंत्री बने। इसके बाद आरोप लगने शुरू हुए कि तमिलनाडु सरकार को केंद्र चला रहा है।

अन्ना डीएमके का सारा नियंत्रण भी बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के हाथों में है। स्टालिन ने तमिलनाडु की अस्मिता को राजनीतिक मुद्दा बनना शुरू किया। इसी दौरान जब 2019 में लोकसभा चुनाव हुए, तब स्टालिन के नेतृत्व में यूपीए ने अन्ना डीएमके के नेतृत्व वाले एनडीए को करारी शिकस्त दी। तमिलनाडु की 39 लोकसभा सीटों में से 38 सीटें यूपीए के खाते में गयीं, जबकि सिर्फ़ एक सीट एनडीए को मिली। इस चुनाव में तमिल फ़िल्मों के स्टार कमल हासन की पार्टी भी बुरी तरह पिट गयी।

लोकसभा चुनावों के बाद इस बात को लेकर चर्चा गरम रही कि सुपरस्टार रजनीकांत अपनी राजनीतिक पार्टी बनाकर विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। इस हलचल से सभी राजनीतिक पार्टियों में खलबली मच गयी।

लेकिन चुनाव तारीखों की घोषणा से ऐन पहले ख़राब सेहत का हवाला देते हुए रजनीकांत ने राजनीति में न आने का ऐलान कर दिया। इससे मुक़ाबला सीधे स्टालिन के नेतृत्व वाले यूपीए और मुख्यमंत्री पलानिस्वामी और उपमुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम के नेतृत्व वाले एनडीए के बीच हो गया। दोनों तरफ़ से वोटरों को रिझाने के लिए कई बड़े वायदे किये गये। अन्ना डीएमके ने वोटरों को मुफ़्त में वाशिंग मशीन, इलेक्ट्रिक कुकर, साल में छह रसोई गैस सिलेंडर, केबल कनेक्शन, हर परिवार में एक व्यक्ति को रोज़गार देने का वायदा किया। वहीं डीएमके भी पीछे नहीं रही। डीएमके ने पेट्रोल, डीज़ल, रसोई गैस, दूध के दाम कम करने का वायदा किया। साथ ही विद्यार्थियों को लैपटॉप देने का भी भरोसा दिया। 

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डीएमके ने तमिल स्वाभिमान को भी चुनावी हथियार बनाया। श्रीलंकाई तमिल भाषियों को भारतीय नागरिकता दिलवाने और मेडिकल एंट्रेंस परीक्षा तमिल में करवाने का भी वायदा किया। लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान जिस तरह का जन समर्थन और जन आकर्षण स्टालिन के प्रति देखने को मिला है, उससे साफ़ है कि वह मुख्यमंत्री की कुर्सी के क़रीब पहुँच गये हैं। चुनाव प्रचार के दौरान एक दिलचस्प बात भी देखने को मिली है। डीएमके के कुछ उम्मीदवार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से उनके निर्वाचन क्षेत्र में आकर प्रचार करने को कह रहे हैं। इन उम्मीदवारों को लगता है कि मोदी और शाह के प्रचार से उनको फ़ायदा होगा क्योंकि तमिलनाडु के लोग हिन्दी और अंग्रेज़ी में भाषण सुनना पसंद नहीं करते।

केरल में ऐतिहासिक नतीजा आएगा!

अगर बात केरल की की जाए, तो यहाँ वामपंथी मोर्चा नया इतिहास रचता हुआ नज़र आ रहा है।

मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को नेताओं के बीच गुटबाज़ी का नुक़सान हो रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी और पूर्व गृह मंत्री रमेश चेन्निथला मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं और दोनों एक-दूसरे को राजनीतिक तौर पर पछाड़ने की कोशिश में लगे हुए हैं। यही वजह है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रचार की कमान ख़ुद अपने हाथों में थाम ली है। राहुल गांधी के लिए केरल का चुनाव प्रतिष्ठा का विषय है। पिछले लोकसभा चुनाव में वह दो जगह से चुनाव लड़े थे। परिवार की पारंपरिक सीट अमेठी में वह हार गये, जबकि केरल की वायनाड सीट से उनकी जीत हुई। वह फ़िलहाल लोकसभा में केरल की वायनाड सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। केरल में कांग्रेस की हार होने का मतलब राहुल गांधी को राजनीतिक तौर पर एक और झटका लगना होगा।

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वहीं वामपंथी मोर्चा ताक़तवर नज़र आ रहा है। हाल ही में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में वामपंथी पार्टियों ने शानदार जीत दर्ज़ की। मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने युवाओं और महिलाओं को बढ़ावा दिया। यही दाँव कामयाब रहा। विधानसभा चुनाव में भी वामपंथियों ने इस बार युवाओं और महिलाओं पर भरोसा जताया है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि दलित और पिछड़ी जाति के लोग अब भी वामपंथियों के साथ बने हुए हैं। कांग्रेस को मुसलमान और ईसाई समुदाय के लोगों पर भरोसा है। बीजेपी की नज़र अगड़ी जाति के लोगों पर है। अब तक जो हुआ है, उससे साफ़ है कि वाम मोर्चा का पलड़ा भारी है। केरल में पिछले चार दशकों में हर पाँच साल बाद सरकार बदली है। लेकिन इस बार पिनराई विजयन परंपरा तोड़ते नज़र आ रहे हैं।

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