सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने बुधवार को कहा कि वह असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) से संबंधित याचिकाओं पर 17 अक्टूबर से सुनवाई शुरू करेगी।
इन याचिकाओं में नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।
लंबे समय से असम में नागरिकता को लेकर विवाद रहा है। अब सुप्रीम कोर्ट को फैसले के बाद विवाद का समाधान निकल सकता है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होने की बात सामने आने से एक बड़ी आबादी में उम्मीद जगी है कि इससे उन्हें राहत मिलेगी।
इंडिया टुडे वेबसाइट की एक रिपोर्ट के मुताबिक सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की खंडपीठ ने संबंधित पक्षों को 10 अक्टूबर से पहले निर्धारित प्रारूप में सामान्य संकलन प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
अदालत यह तय करेगी कि नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए किसी संवैधानिक कमज़ोरी से ग्रस्त है या नहीं।
धारा 6ए एक विशेष प्रावधान है जिसे 15 अगस्त 1985 को केंद्र सरकार और असम आंदोलन के नेताओं के बीच हस्ताक्षरित 'असम समझौते' नामक समझौता ज्ञापन को आगे बढ़ाने के लिए 1955 के नागरिकता अधिनियम में शामिल किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट में 2009 से लंबित है यह मामला
धारा 6ए के तहत, जो विदेशी 1 जनवरी, 1966 से पहले असम में आए थे और राज्य में सामान्य रूप से निवासी थे, उनके पास भारतीय नागरिकों के सभी अधिकार और दायित्व होंगे। वहीं जो लोग 1 जनवरी, 1966 और 25 मार्च, 1971 के बीच असम में आए थे, उनके पास समान अधिकार और दायित्व होंगे, सिवाय इसके कि वे 10 साल तक मतदान नहीं कर पाएंगे।सुप्रीम कोर्ट 17 याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। इसमें असम पब्लिक वर्क्स की एक याचिका भी शामिल है, जिसमें अप्रवासियों को नागरिकता देने में धारा 6ए की "भेदभावपूर्ण प्रकृति" को चुनौती दी गई है। दलीलों में तर्क दिया गया कि विशेष प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 6 का उल्लंघन है, जिसने अप्रवासियों को नागरिकता देने की कट-ऑफ तारीख 19 जुलाई, 1948 तय की है।
यह मामला सुप्रीम कोर्ट में 2009 से लंबित है। 2014 में दो जजों की बेंच ने 13 सवाल तैयार करने के बाद इसे तीन जजों की बेंच के पास भेज दिया था। इसके बाद 2015 में तीन जजों की बेंच ने इसे पांच जजों की बेंच के पास भेज दिया था।
असम की दशकों पुरानी समस्या का समाधान हो सकता है
लॉ से जुड़ी खबरों की वेबसाइट लाईव लॉ के मुताबिक सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने प्रक्रियात्मक निर्देश पारित करने के लिए बुधवार को यह मामला उठाया था।पीठ ने कहा कि इस मामले में 10 जनवरी, 2023 को प्रक्रियात्मक निर्देश पहले ही जारी किए जा चुके हैं।सामान्य संकलन की सॉफ्ट कॉपी 3 अक्टूबर तक तैयार की जाएगी। लिखित प्रस्तुतियां 10 अक्टूबर तक दाखिल की जाएंगी।
हम 17 अक्टूबर को सुनवाई शुरू करेंगे। हमें कम से कम मामले को जानना है और फिर पढ़ने के लिए खुद को एक सप्ताह का समय देना होगा। माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट की अब तेजी से इस मामले की सुनवाई कर इसपर फैसला सुनाएगा। इससे असम की दशकों पुरानी समस्या का समाधान हो सकता है। एक बड़ी आबादी को इससे राहत मिलेगी।
इसलिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे है असम के कई संगठन
लाईव लॉ की रिपोर्ट कहती है कि नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए असम समझौते के अंतर्गत आने वाले व्यक्तियों की नागरिकता पर एक विशेष प्रावधान है और यह प्रावधान करती है कि जो लोग एक जनवरी, 1966 और 25 मार्च, 1971 के बीच भारत में आए और असम में रह रहे हैं, उन्हें खुद को भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत करने के लिए अनुमति दी जाएगी।गुवाहाटी स्थित नागरिक समाज संगठन, असम संमिलिता महासंघ ने 2012 में ही इस धारा 6ए को चुनौती दी थी। इस संगठन का कहना है कि धारा 6ए भेदभावपूर्ण, मनमाना और अवैध है क्योंकि यह असम और शेष भारत में प्रवेश करने वाले अवैध प्रवासियों को नियमित करने के लिए अलग-अलग कट-ऑफ तारीखें प्रदान करती है।
इसने असम राज्य से संबंधित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को 24 मार्च 1971 से पहले की मतदाता सूची को ध्यान में रखकर अपडेट करने के बजाय 1951 में तैयार एनआरसी में शामिल विवरण के आधार पर अपडेट करने के लिए संबंधित प्राधिकारी को निर्देश देने की मांग की है। असम के अन्य संगठनों ने भी धारा 6ए की वैधता को चुनौती देते हुए याचिकाएं दायर कीं हैं।