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पीएम मोदी की राह मुश्किल करेगा सिटिज़नशिप विधेयक?

पीएम मोदी की राह मुश्किल करेगा सिटिज़नशिप विधेयक?

बीजेपी को इस बार असम और उत्तर-पूर्व के राज्यों में अच्छी जीत हासिल करने की उम्मीद है। लेकिन सिटिज़नशिप विधेयक को लेकर हो रहा उग्र विरोध उसके मंसूबों पर पानी फेर सकता है।

असम समेत उत्तर-पूर्व के राज्यों में अतिरिक्त लोकसभा सीट जीतने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना चकनाचूर हो सकता है। बीजेपी को लगता है कि हिंदी भाषी प्रदेशों में इस बार उसकी लोकसभा की सीटें कम हो सकती हैं। उसे उम्मीद थी कि इन सीटों की भरपाई वह उन राज्यों से करेगी जहाँ पिछली बार उसे कम सीटें मिली थीं। असम और उत्तर-पूर्व के राज्यों को वह इसी नज़र से देख रही थी लेकिन पिछले दो दिनों से सिटिज़नशिप विधेयक को लेकर जिस तरह असम और उत्तर-पूर्व के राज्यों में हालात बिगड़े हैं, उससे उसके मंसूबों पर पानी फिर सकता है सिटिज़नशिप विधेयक मंगलवार को ही लोकसभा में पास हुआ है। 

सिटिज़नशिप विधेयक की वजह से असम और उत्तर-पूर्व के राज्यों में बीजेपी के ख़िलाफ़ काफ़ी गुस्सा है। इस विधेयक के ख़िलाफ़ लोग लामबंद हैं और सड़क पर आंदोलन कर रहे हैं। मंगलवार को 11 घंटे के बंद के दौरान असम में 6 लोग घायल हो गए जिसमें से 3 की हालत गंभीर है। ये आंदोलनकारी असम-अगरतला राष्ट्रीय राजमार्ग को बंद करने की कोशिश कर रहे थे। आंदोलनकारियों को रोकने के प्रयास में पुलिस को गोली चलानी पड़ी।

बीजेपी के दफ़्तरों पर हमले 

आंदोलनकारियों ने असम के कई जिलों में भारतीय जनता पार्टी के ऑफ़िस को भी निशाना बनाया है। इसी तरीके से त्रिपुरा, मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और मेघालय में छिटपुट हिंसा और बंद की ख़बर है। 

ये आंदोलन नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट ऑर्गनाइजेशन और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) की अगुवाई में चल रहा है। आंदोलनकारियों ने गुवाहाटी में जगह-जगह पर चक्काजाम किया और वाहनों में तोड़फ़ोड़ की। शहर में ऩकाब लगाए मोटरसाइकिल सवार आंदोलनकारी देखे गए, जिन्होंने चौपहिया वाहनों पर पथराव किया। इस मामले में 44 लोगों को गिरफ़्तार भी किया गया है। 

डिब्रूगढ़ में आंदोलनकारियों ने बीजेपी ऑफ़िस को तहस-नहस करने की कोशिश की। वहाँ के एसपी के भी हिंसा में घायल होने की ख़बर है। इसी तरीक़े से गोलाघाट और जोरहट जिलों में भी बीजेपी के दफ़्तरों पर हमले किए गए।

सिटिज़नशिप विधेयक पर असम गण परिषद ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया है। मेघालय में नैशनल पीपल्स पार्टी और त्रिपुरा में सरकार में शामिल इंडिजिनस पीपल्स फ़्रंट भी इस विधेयक के विरोध में हैं।

आंदोलन की वजह से भारतीय जनता पार्टी को उस वक़्त तगड़ा झटका लगा, जब असम, मेघालय, नागालैंड और मिज़ोरम में उसके सहयोगी दलों ने सिटिज़नशिप विधेयक का समर्थन करने से इनकार कर दिया। इस बीच ख़बर ये भी है कि भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता मेहंदी आलम बोरा ने पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया है। उधर, त्रिपुरा में बीजेपी की सरकार को समर्थन दे रही इंडिजिनस पीपल्स फ़्रंट ने आंदोलन का समर्थन किया है। 

क्या है सिटिज़नशिप विधेयक?

अप्रवासी नागरिकों का मसला उत्तर-पूर्व के राज्यों में लंबे समय से विवाद का मुद्दा बना हुआ है। 70 और 80 के दशक में इस विवाद ने काफ़ी उग्र रूप धारण कर लिया था। असम के लोगों का कहना है कि असम के बाहर के लोगों के राज्य में आने से जनसंख्या संतुलन तो बिगड़ा ही है, उनकी संस्कृति और रोज़गार को भी भारी नुक़सान हुआ है। 

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बांग्लादेशियों का हुआ था विरोध 

1971 में बांग्लादेश की लड़ाई के दौरान भारी संख्या में बांग्लादेशी असम में भागकर आए थे। जिसका वहाँ के स्थानीय नागरिकों ने काफ़ी विरोध किया था। बाद में असम विश्वविद्यालय के छात्रों ने ज़बरदस्त आंदोलन किया और आगे चलकर असम गण परिषद के नाम से राजनीतिक दल बनाकर चुनाव भी लड़ा और उन्हें भारी जीत भी हासिल हुई। 

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आंदोलनकारियों के सरकार बनाने के बाद, भारत सरकार के साथ उनका असम एकॉर्ड के नाम से 1985 में एक समझौता भी हुआ। इस समझौते के मुताबिक़, 24 मार्च 1971 तक असम में आने वाले लोगों को नागरिकता प्रदान करने का फ़ैसला किया गया। यानी 25 मार्च 1971 के बाद आने वाले लोगों को विदेशी मानकर देश से बाहर निकाला जाएगा।

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हिंदू आप्रवासियों को नागरिकता देने की बात

केंद्र में सरकार बनाने के बाद बीजेपी ने बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, म्यांमार जैसे देशों से असम में आने वाले ग़ैर मुसलिम, ख़ासकर हिंदू आप्रवासियों को नागरिकता देने की बात की। इसके पीछे बीजेपी का कहना था कि इन देशों में हिंदुओं समेत दूसरे अल्पसंख्यकों का काफ़ी उत्पीड़न होता है, जिसके कारण वे भागकर भारत में शरण लेते हैं और मानवीय आधार पर ऐसे शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी जानी चाहिए। इन देशों से आए मुसलिम शरणार्थियों को इस नागरिकता क़ानून से बाहर रखने के पीछे तर्क यही है कि इन मुसलिम देशों में धर्म के आधार पर मुसलमानों का उत्पीड़न नहीं हो सकता। 

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इसीलिए सिटिज़नशिप विधेयक लाया गया, जिसमें इन देशों से आए हिंदू, सिख, जैन, पारसी, ईसाईयों को नागरिकता देना तय किया गया और नागरिकता पाने की पात्रता की अवधि बढ़ाकर 31 दिसंबर 2014 कर दी गई। बीजेपी का तर्क है कि इस विधेयक के क़ानून बनने के बाद असम में बाहर के मुसलमानों के आने की वजह से जो संकट पैदा हुआ, उससे निपटने में मदद मिलेगी और बाहर से आई ग़ैर मुसलिम आबादी की वजह से जनसंख्या संतुलन भी नहीं बिगड़ेगा। 

लेकिन असम के लोगों का कहना है कि असली मुद्दा धर्म के आधार पर आने वाले आप्रवासियों का नहीं है। मुद्दा, ग़ैर क़ानूनी तरीके से बांग्लादेश को लांघकर असम आने वाले आप्रवासियों का है। इन आप्रवासियों में बड़ी संख्या हिंदुओं की भी है। असम के लोग हिंदू और मुसलमान, दोनों आप्रवासियों का विरोध कर रहे हैं।

असम के लोगों का कहना है कि मुद्दा धर्म के आधार पर आने वाले आप्रवासियों का नहीं है। मुद्दा, ग़ैर क़ानूनी तरीके से बांग्लादेश को लांघकर असम आने वाले आप्रवासियों का है। असम के लोग हिंदू और मुसलमान, दोनों आप्रवासियों का विरोध कर रहे हैं।

सहयोगी दल उतरे विरोध में 

जनसंख्या के अनुपात के हिसाब से असम में जम्मू-कश्मीर के बाद सबसे ज़्यादा मुसलिम आबादी है। असम के बाहर त्रिपुरा, जहाँ पर बीजेपी की सरकार है। मेघालय और नागालैंड, जहाँ बीजेपी सत्ता में शामिल है और मिज़ोरम, जहाँ बीजेपी सरकार में एक घटक दल के तौर पर है, ये सभी राज्य सिटिज़नशिप विधेयक का विरोध कर रहे हैं। 

असम गण परिषद तोड़ चुकी है नाता 

असम गण परिषद ने इसी मसले पर बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया है। मेघालय में नैशनल पीपल्स पार्टी ने भी कहा है कि वह गठबंधन में रहने के फ़ैसले पर विचार कर रही है। त्रिपुरा में सरकार में शामिल इंडिजिनस पीपल्स फ़्रंट भी इसी राह पर जाती दिख रही है। मिज़ोरम में स्थानीय लोगों को इस बात का डर है कि इस विधेयक की आड़ में बांग्लादेश से भारी संख्या में बुद्धिस्ट चकमा निवासी राज्य में प्रवेश कर सकते हैं।

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