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असम : एनआरसी से बाहर रह गए लोग झूल रहे हैं अनिश्चितता में

असम : एनआरसी से बाहर रह गए लोग झूल रहे हैं अनिश्चितता में

असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की अंतिम सूची से बाहर किए गए लोगों को अस्वीकृति पर्ची जारी करने की प्रक्रिया को कोविड-19 महामारी की स्थिति के कारण स्थगित कर दिया गया था। 

असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की अंतिम सूची, 2019 से जिनके नामों को बाहर रखा गया, ऐसे 19.06 लाख आवेदकों की नागरिकता की स्थिति एक साल गुजर जाने के बाद भी अधर में लटकी हुई है। सूची से बाहर किए गए लोगों को अस्वीकृति पर्ची जारी करने की प्रक्रिया को कोविड-19 महामारी की स्थिति के कारण स्थगित कर दिया गया था। 

जिन 19 लाख लोगों को एनआरसी से बाहर रखा गया, वे अस्वीकृति की पर्ची मिलने पर ही राज्य के विदेशी ट्रिब्यूनल में अपील कर सकते हैं। इसके अलावा 2013 से एनआरसी प्रक्रिया का पर्यवेक्षण करने वाले सर्वोच्च न्यायालय ने 6 जनवरी से इस मामले की सुनवाई नहीं की है।

उम्मीदवारी में अड़चन

मार्च में बरपेटा और बाक्सा ज़िले में सक्रिय 30 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता शाहजहाँ अली अहमद ने बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी) चुनावों में युनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) के उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल किया। तब से सत्तारूढ़ बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने अहमद की उम्मीदवारी को लेकर सोशल मीडिया पर टिप्पणियों की झड़ी लगा रखी है। वे लोग लिख रहे हैं, 'उनका नाम एनआरसी में नहीं है, यह संदिग्ध नागरिक यूपीपीएल का उम्मीदवार कैसे हो सकता है' 

अहमद और उनके परिवार के 29 अन्य सदस्यों को पिछले साल 31 अगस्त को प्रकाशित अंतिम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) में जगह नहीं मिली। उनका कहना है कि परिवार के पास 1951 तक के दस्तावेज हैं, जो 24 मार्च, 1971 की कट-ऑफ तारीख से पहले के हैं, और वे अपना नाम फिर से शामिल करने की अपील करना चाहते हैं। लेकिन उन्हें इसके लिए कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है। 

पिछले साल 31 अगस्त को एनआरसी प्रकाशन के बाद गृह और विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट कर दिया था कि सूची में नाम नहीं होने से ही किसी निवासी को 'विदेशी' नहीं माना जा सकता है, यह निर्णय केवल विदेशी ट्रिब्यूनल द्वारा लिया जा सकता है।

कोरोना से हुई देरी

लेकिन गुवाहाटी में एनआरसी निदेशालय के अधिकारियों का कहना है कि उनके काग़ज़ी कार्रवाई में 'विसंगतियों' के कारण अस्वीकृति की पर्ची जारी करने की प्रक्रिया में देरी हुई है। इसके अलावा कोविड महामारी के कारण फिर से जाँच करने के लिए पर्याप्त कर्मचारी नहीं हैं। 

अहमद ने कहा, 

'अगर एनआरसी को उसके तार्किक निष्कर्ष पर नहीं ले जाया जाता है, तो यह 19 लाख लोगों के लिए एक अभिशाप होगा। नागरिकता मिलेगी या नहीं मिलेगी, इसका निर्णय होना चाहिए। लोगों को हमेशा के लिए त्रिशंकु की तरह लटकाए रखना बेहद क्रूर परिस्थिति है।'


नेता, युनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल

चुनाव टला

अप्रैल में होने वाले बीटीसी चुनाव को महामारी के कारण अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया था। अहमद कहते हैं, 'लेकिन मैं अपने नामांकन की प्रक्रिया में शामिल सभी अधिकारियों का शुक्रगुजार हूँ क्योंकि उनमें से किसी ने भी कोई सवाल नहीं उठाया या कोई भद्दी टिप्पणी नहीं की।'

एनआरसी से बाहर रह गए लोगों को कई तरह की त्रासद स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। दरंग ज़िले की 55 वर्षीय महिला डालिमन नेसा ने हज यात्रा के लिए कई वर्षों में 64,000 रुपये की बचत की थी। लेकिन अब स्थानीय पुलिस का कहना है कि वह सत्यापन प्रमाणपत्र जारी नहीं कर सकती हैं, क्योंकि नेसा को एनआरसी से बाहर रखा गया है।

वह कहती हैं, 'मेरे पति का नाम सूची में है और उनको हज पर जाने की इजाज़त मिल गई है। हम प्रार्थना कर रहे हैं कि यह एनआरसी प्रक्रिया समाप्त हो जाए और मेरा नाम भी शामिल हो ताकि हम हज यात्रा के लिए एक साथ जा सकें।'

पासपोर्ट नहीं

दरंग ज़िले में पुलिस ने इस बात की पुष्टि की है कि कई लोग अपने पासपोर्ट के लिए 'सत्यापन मंजूरी' का इंतजार कर रहे हैं। एक ट्रैवल एजेंट अफज़ुद्दीन अहमद कहते हैं कि कम से कम 5 परिवारों की हज योजनाएँ रोक दी गई हैं, क्योंकि आवेदकों में से एक या अधिक के नाम एनआरसी से बाहर हैं। 

दरंग ज़िले के एसपी अमृत ​​भुयाँ कहते हैं, 'यदि एनआरसी में नाम नहीं है तो पासपोर्ट सत्यापन कैसे कर सकते हैं यह नागरिकता का प्रश्न है। मामला साफ होने तक हमने इसे रोक रखा है।'

नए सिरे से जाँच

एनआरसी के राज्य समन्वयक हितेश शर्मा का कहना है, 'हमें प्रत्येक बहिष्कृत व्यक्ति को अस्वीकृति आदेश जारी करना होगा। इस आदेश के साथ एक और आदेश जुड़ा होना चाहिए, जिसे 'स्पीकिंग ऑर्डर' कहा जाता है, जो बहिष्करण का सटीक कारण बताता है। लेकिन जब मैंने इनमें से कई आदेशों की छानबीन की, तो विसंगतियों पर मेरा ध्यान गया, बहुत लोगों को उस तरह से नहीं लिखा गया जैसा उन्हें होना चाहिए था। इसलिए मैंने फिर से जाँच का आदेश दिया है। लेकिन कोविड के कारण ज़मीनी स्तर पर सभी सरकारी अधिकारी महामारी से संबंधित कार्य में लगे हुए हैं। इसलिए नए सिरे से जांच नहीं की गई है।'

प्रतीक्षा करने वाले सभी लोगों की दुर्दशा पर शर्मा कहते हैं, 'यह एक कानूनी प्रक्रिया है और इसमें समय लगेगा। एक बार अस्वीकृति के आदेश जारी किए जाने के बाद जो लोग बहिष्कार से असहमत हैं, वे इसे उच्च न्यायालयों में चुनौती दे सकते हैं।'

रुकावटें

अंतिम एनआरसी के प्रकाशन के बाद से इस प्रक्रिया ने कई बाधाओं का सामना किया है। 2013 से इस प्रक्रिया का नेतृत्व करने वाले पूर्व राज्य समन्वयक प्रतीक हजेला को सुप्रीम कोर्ट द्वारा अक्टूबर 2019 में असम से बाहर स्थानांतरित कर दिया गया। अगले समन्वयक शर्मा व्यक्तिगत कारणों से ज्वाइन करने के तुरंत बाद एक महीने की लंबी छुट्टी पर चले गए।

आसू का आरोप

असम ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) ने कहा है कि केंद्र का इस प्रक्रिया को पूरा करने का कोई इरादा नहीं है। आसू के महासचिव लुरिनज्योति गोगोई ने कहा,

'केंद्र ने पिछले एक साल में कुछ नहीं किया है। उसकी उदासीनता को भलीभांति महसूस किया जा सकता है। केंद्र की बीजेपी सरकार एनआरसी या असम के मूल लोगों के भविष्य के बारे में गंभीर नहीं है।'


लुरिनज्योति गोगोई, महासचिव, असम ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन

बता दें कि ग़ैर-सरकारी संगठन असम पब्लिक वर्क्स (एपीडब्ल्यू), जिसने 1951 के एनआरसी के अपडेशन की माँग की थी और पहली बार सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस संस्था ने एनआरसी अंतिम सूची के 100 प्रतिशत पुन: सत्यापन पर जोर दिया है।

पीडब्ल्यू प्रमुख अभिजीत शर्मा ने कहा, 'हम इस एनआरसी को स्वीकार नहीं कर सकते हैं, जिसमें अवैध बांग्लादेशियों और यहाँ तक कि जिहादियों के नाम हैं। एक साल बीत चुका है, लेकिन ज़मीन पर कुछ भी नहीं हुआ है।' 

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