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नवंबर तक AFSPA को असम से पूरी तरह हटाया जा सकता है: हिमंत सरमा

नवंबर तक AFSPA को असम से पूरी तरह हटाया जा सकता है: हिमंत सरमा

असम में विवादास्पद क़ानून अफ्सपा को क्या इस साल के आख़िर तक पूरी तरह हटा लिया जाएगा? जानिए, मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने क्या कहा है और क्यों यह क़ानून विवादास्पद है।

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने सोमवार को विवादास्पद क़ानून अफ्सपा को लेकर एक बड़ी घोषणा की। उन्होंने कहा कि उनका लक्ष्य इस साल के अंत तक पूरे राज्य से अफ्सपा को पूरी तरह से वापस लेने का है और नवंबर तक पूरे राज्य से अफ्सपा हटाया जा सकता है।

मुख्यमंत्री ने आज आयोजित कमांडेंट सम्मेलन में इसकी घोषणा की। उन्होंने सम्मेलन में कहा, 'नवंबर तक पूरे राज्य से अफ्सपा हटा लिया जाएगा। यह असम पुलिस बटालियनों द्वारा सीएपीएफ के प्रतिस्थापन की सुविधा प्रदान करेगा। हालांकि, कानून द्वारा आवश्यक सीएपीएफ की उपस्थिति मौजूद रहेगी। 

सीएम सरमा ने ट्वीट में यह भी कहा है कि हम अपने पुलिस बल को प्रशिक्षित करने के लिए पूर्व सैन्य कर्मियों को भी शामिल करेंगे।

केंद्र ने पिछले साल पूरे असम राज्य से अफ्सपा के तहत अशांत क्षेत्रों की अधिसूचना को हटा दिया था, लेकिन यह अभी भी लगभग नौ जिलों और एक अन्य जिले के एक उप-मंडल में लागू था। हालाँकि 1 अप्रैल 2023 से अधिसूचना को राज्य के एक और जिले से हटा लिया गया था। इसका मतलब हुआ कि अब अफ्सपा असम के केवल आठ जिलों तक सीमित है।

अफ्सपा सशस्त्र बलों को विशेष शक्तियाँ देता है। इसे धारा 3 के तहत अशांत घोषित होने के बाद केंद्र या किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा राज्य या उसके कुछ हिस्सों पर लगाया जा सकता है। अधिनियम कहता है कि यह उस ख़तरनाक स्थिति के लिए है जहाँ नागरिकों की सहायता के लिए सशस्त्र बलों का उपयोग ज़रूरी है। अफ्सपा का उपयोग मुख्य रूप से उन क्षेत्रों में किया गया है जहाँ उग्रवाद का असर है।

इस अधिनियम को बेहद कठोर कहा गया है। यह सेना, राज्य और केंद्रीय पुलिस बलों को हत्या करने, घरों की तलाशी लेने और किसी भी संपत्ति को नष्ट करने के लिए गोली मारने की शक्तियां देता है। यह उन्हें संदेह के आधार पर वारंट के बिना व्यक्तियों को गिरफ्तार करने और वारंट के बिना परिसर की तलाशी लेने की शक्ति देता है।

अफ्सपा को सबसे पहले असम क्षेत्र में नगा विद्रोह से निपटने के लिए लागू किया गया था। 1951 में नागा नेशनल काउंसिल (एनएनसी) ने कहा था कि उसने एक 'स्वतंत्र और निष्पक्ष जनमत संग्रह' आयोजित किया जिसमें लगभग 99 प्रतिशत नागाओं ने ‘फ्री सॉवरेन नागा नेशन’ के लिए मतदान किया था। बाद में इसको लेकर प्रदर्शन होने लगे। स्थिति से निपटने के लिए असम सरकार ने 1953 में नागा हिल्स में असम मेंटेनेंस ऑफ पब्लिक ऑर्डर (ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट) एक्ट लागू कर दिया और विद्रोहियों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई तेज कर दी। लेकिन जब स्थिति बिगड़ती गई तो इस ख़तरे से निपटने के लिए सशस्त्र बल (असम और मणिपुर) विशेष शक्ति अध्यादेश 1958 को 22 मई 1958 को लागू किया गया। बाद में इसे सशस्त्र बल (असम और मणिपुर) विशेष अधिकार अधिनियम 1958 द्वारा बदल दिया गया था। 

इसने केवल राज्यों के राज्यपालों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों को संबंधित राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के क्षेत्रों को ‘अशांत’ घोषित करने का अधिकार दिया। बाद में इसे सभी पूर्वोत्तर राज्यों में लागू कर दिया गया था। लेकिन इन प्रावधानों के तहत होने वाली कार्रवाइयों पर लगातार विवाद होता गया और इसको हटाने को लेकर लगातार मांगें भी होती रहीं। हाल ही में तीन पूर्वोत्तर राज्यों के कई जिलों से अफ्सपा को हटा दिया गया है।

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