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नागरिकता क़ानून: असम बीजेपी के विधायकों में डर, इस्तीफ़ा देने को तैयार

नागरिकता क़ानून: असम बीजेपी के विधायकों में डर, इस्तीफ़ा देने को तैयार

असम में कई जगहों पर प्रदर्शन आज भी जारी हैं और अब हालात यहां तक पहुंच चुके हैं कि सत्ताधारी दल बीजेपी के विधायकों को लोगों को जवाब देना मुश्किल हो रहा है। 

नागरिकता संशोधन क़ानून के अस्तित्व में आने के बाद विरोध की आवाज़ सबसे पहले असम से ही उठी थी और इसके ख़िलाफ़ हिंसक प्रदर्शन हुए थे। असम में कई जगहों पर प्रदर्शन आज भी जारी हैं और अब हालात यहां तक पहुंच चुके हैं कि सत्ताधारी दल बीजेपी के विधायकों को लोगों को जवाब देना मुश्किल हो रहा है। 

असम बीजेपी के 12 विधायकों ने इस मुद्दे पर गुरुवार को मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल से मुलाक़ात की और उनसे अपील की कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस मुद्दे पर बात करें। विधायकों ने मुख्यमंत्री से लोगों के डर को दूर करने के लिए कहा और बताया कि राज्य सरकार किस तरह उनकी भाषा और संस्कृति को संरक्षित कर सकती है। अंग्रेजी अख़बार ‘द टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ के मुताबिक़, इन विधायकों का नेतृत्व करने वाले पदम हज़ारिका ने कहा, ‘हमने मुख्यमंत्री से अपील की है कि असम के लोगों की सुरक्षा के लिए उनके पास क्या योजना है, वह इसे लेकर स्पष्टता के साथ आगे आएँ।’ 

अख़बार में न्यूज़ एजेंसी पीटीआई के हवाले से हज़ारिका का बयान छपा है। बयान के मुताबिक़, हज़ारिका ने कहा, ‘पार्टी के कई नेताओं, कार्यकर्ताओं और विधायकों के घरों पर हमला हुआ है और इसमें मेरा घर भी शामिल है। हमें गालियां दी जा रही हैं और हमारे कई कार्यकर्ता घरों से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। जहां तक मैं जानता हूँ, पार्टी के सभी कार्यकर्ता चाहते हैं कि अवैध रूप से रह रहे सभी बांग्लादेशियों की पहचान हो और उन्हें राज्य से बाहर निकाला जाए।’ 

हज़ारिका ने आगे कहा, ‘बीजेपी और इसके कार्यकर्ताओं में अविश्वास का माहौल है और कुछ मंत्रियों के द्वारा दिये गये बयानों के कारण बीजेपी के विधायकों के ख़िलाफ़ लोगों का ग़ुस्सा बढ़ गया है। हालाँकि उन्होंने इन मंत्रियों के नाम लेने से मना कर दिया।’

हज़ारिका ने कहा, ‘हमारी विधानसभा के लोग हमसे इस्तीफ़ा मांग रहे हैं और मैं उन्हें भरोसा दिलाता हूँ कि अगर इस्तीफ़ा देने से इस समस्या का समाधान हो जाता है तो हम इस्तीफ़ा देने के लिए तैयार हैं।’

बीजेपी के एक और विधायक जिनका नाम प्रसांता फुकन है, उन्होंने कहा, ‘असम के लोग डरे हुए हैं और इसलिए बीजेपी विधायक भी डरे हुए हैं। पिछले 8 दिनों से जब से प्रदर्शन शुरू हुए हैं, हम अपने घर से बाहर नहीं निकल सके हैं।’ प्रसांता के घर पर भी हमला हो चुका है।  

विधायकों ने कहा कि नागरिकता संशोधन क़ानून पार्टी की नीति थी और वह इसके ख़िलाफ़ नहीं जा सकती। लेकिन कई रास्ते ऐसे हैं जिनसे असम के लोगों की भाषा और संस्कृति को सुरक्षित किया जा सकता है। 

विधायकों ने कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री से राज्य के 6 समुदायों को जल्द से जल्द आदिवासी का दर्जा देने के लिए कहा है। उन्होंने मुख्यमंत्री से अपील की कि राज्य सरकार की कैबिनेट यह प्रस्ताव पारित करे कि असमिया ही हमेशा राज्य की भाषा के रूप में बनी रहेगी।

नाराज़गी दूर करने की कोशिश

विधायकों के मुख्यमंत्री से मिलने के कुछ घंटों बाद मुख्यमंत्री के कार्यालय ने कहा कि सरकार राज्य की मोरन, मोटोक, चुटिया, कोच-राजबंशी, ताई-अहोम समुदायों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मांग करने वाले मंत्रियों के समूह की सिफ़ारिश जनवरी में सौंप देगी। 

इसके अलावा मोरन, चुटिया, अहोम और मोटोक इलाक़ों में से प्रत्येक के विकास के लिए 125 करोड़ रुपये दिए जाएँगे। मुख्यमंत्री के कार्यालय ने कहा कि कोच-राजबंशी समुदाय के लिए स्वायत्त परिषद की स्थापना की जाएगी।

एनडीए में ही विरोध 

इस क़ानून को लेकर एनडीए में ही विरोध हो रहा है और असम के बड़े राजनीतिक दल असम गण परिषद का कहना है कि इस क़ानून के कारण बांग्लादेशी हिंदुओं को भारत की नागरिकता मिलने से असम बर्बाद हो जाएगा। बीजेपी के एक अन्य सहयोगी दल इंडीजीनस पीपल फ़्रंट ऑफ़ त्रिपुरा (आईपीएफ़टी) ने भी क़ानून के विरोध में आवाज़ बुलंद की है। इसके अलावा ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन, नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स यूनियन, स्थानीय कलाकार, लेखक, बुद्धिजीवी वर्ग और विपक्षी दलों के लोग भी इस क़ानून को लेकर अपना विरोध जता रहे हैं। 

असम में अहम है ‘बाहरियों’ का मुद्दा

असम में पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश से आए लोगों का मुद्दा हमेशा से प्रभावी रहा है। इसके ख़िलाफ असम में छह साल तक आंदोलन चला था और तत्कालीन राजीव गाँधी सरकार ने आंदोलनकारियों के साथ असम समझौता किया था। असम समझौते के तहत 24 मार्च, 1971 की रात तक असम में आए हुए लोगों को ही यहां का नागरिक माना जाएगा जबकि नए नागरिकता क़ानून के तहत 31 दिसंबर, 2014 तक भारत में आए लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है। बस इसी बात को लेकर विवाद है।

अस्मिता बचाने की है लड़ाई

सवाल यह खड़ा होता है कि आख़िर असम में इस क़ानून के लागू होने से वहां के स्थानीय लोगों को क्या परेशानी होगी। असम के लोगों का कहना है कि नागरिकता संशोधन क़ानून के जरिए जब अवैध बांग्लादेशियों को भारत की नागरिकता मिल जाएगी तो इससे उनकी भाषा, संस्कृति और परंपरा के नष्ट होने का ख़तरा है। इसके अलावा बाहरी लोगों को नागरिकता मिलने से उनकी आजीविका पर भी संकट खड़ा हो जाएगा।

इससे पहले असम के विधानसभा स्पीकर हितेंद्र नाथ गोस्वामी ने इस क़ानून को लेकर कहा था कि लोगों की शंकाएं निराधार नहीं हैं। गोस्वामी ने कहा था कि अगर इस क़ानून को लागू किया जाता है तो इस बात की प्रबल संभावना है कि यह जातियों, समुदायों और भाषाओं को बाँटने वाला साबित होगा।

गोस्वामी ने केंद्र सरकार से अपील की थी कि वह असम के लोगों, विशेषकर युवाओं के ग़ुस्से और उनकी परेशानियों को दूर करने के लिए ज़रूरी क़दम उठाए। प्रधानमंत्री मोदी भी असम के लोगों से इस क़ानून से नहीं डरने की अपील कर चुके हैं लेकिन लोगों का कहना है कि यह क़ानून असम की भाषा, संस्कृति को बर्बाद कर देगा। ऐसे में केंद्र सरकार असम और पूर्वोत्तर के अन्य इलाक़ों के लोगों के विरोध को कैसे शांत करेगी, यह एक बड़ा सवाल है। 

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