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असम चुनाव: जन असंतोष से आसान नहीं होगी बीजेपी की राह

असम चुनाव: जन असंतोष से आसान नहीं होगी बीजेपी की राह

अगर बीजेपी असम को फिर से जीतती है, तो इसका मतलब होगा कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह द्वारा नागरिकता (संशोधन) अधिनियम लागू करने से उन्हें ऐसे एक राज्य में नुक़सान नहीं होगा, जहाँ इस क़ानून के ख़िलाफ़ प्रबल आंदोलन शुरू हुआ था। 

देश का ध्यान पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव पर लगा हुआ है, लेकिन यह असम विधानसभा चुनाव 2021 है जो हाल के वर्षों के बड़े राजनीतिक निहितार्थ को सामने लाएगा। असम में भारतीय जनता पार्टी द्वारा एक और ठोस जीत यह दर्शाएगी कि यह कैसे उन क्षेत्रों पर कब्जा करना सीख गई है जहाँ परंपरागत रूप से उसका जनाधार नहीं रहा है।

इससे राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप से उसकी बढ़त भी दर्ज होगी। लेकिन हाल के वर्षों में असम बीजेपी के ख़िलाफ़ जो असंतोष बढ़ा है और राजनीतिक समीकरण में जिस तरह के बदलाव हुए हैं, उसे देखते हुए उसकी राह आसान नहीं होगी। 

2016 जैसा कर पाएगी असम बीजेपी?

2016 के विधानसभा चुनाव में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी ने असम में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया, जिसमें उसने 126 सीटों में से 60 पर जीत हासिल की और अपने सहयोगी असम गण परिषद (एजीपी) और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) के साथ साझेदारी में 86 सीटों पर जीत हासिल की।

2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी ने 14 में से नौ सीटें जीतीं और कांग्रेस को केवल तीन सीटों पर जीत हासिल हुई, जो राज्य में प्रमुख पार्टी थी। 

अगर बीजेपी असम को फिर से जीतती है, तो इसका मतलब होगा कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह द्वारा नागरिकता (संशोधन) अधिनियम लागू करने से उन्हें ऐसे एक राज्य में नुक़सान नहीं होगा, जहाँ इस क़ानून के ख़िलाफ़ प्रबल आंदोलन शुरू हुआ था। 

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पूर्वोत्तर के बाकी हिस्सों में अपना दबदबा कायम करने के लिए असम बीजेपी का प्रवेश द्वार बन गया और अब पार्टी अपने मैदान की रक्षा करने और सत्ता में दूसरा कार्यकाल जीतने के लिए लड़ रही है। बीजेपी ने राज्य की 126 में से 100 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है।

चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण

एबीपी न्यूज और सी-वोटर द्वारा अब तक किए गए एकमात्र प्रमुख जनमत सर्वेक्षण में बीजेपी को असम गण परिषद जैसे अपने सहयोगियों के साथ एक साधारण बहुमत दिया गया है। तब से कुछ चीजें बदल गई हैं। 

बीजेपी का कहना है कि पार्टी की यूएसपी कल्याणकारी योजनाएँ हैं। लेकिन वह एआईयूडीएफ के साथ कांग्रेस के गठबंधन के कारण संभावित ध्रुवीकरण पर भी भरोसा कर रही है।

बदलता समीकरण

सी-वोटर ओपिनियन पोल के बाद कांग्रेस, बदरुद्दीन अजमल के ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट, पत्रकार से राजनेता बने अजीत भुइयां के आंचलिक गण मोर्चा, सीपीआई, सीपीएम और सीपीआई-एमएल के बीच गठबंधन के कारण राजनीतिक समीकरणों में एक बड़ा बदलाव हुआ है। ।

एबीपी सी-वोटर ओपिनियन पोल में एनडीए के लिए 43 प्रतिशत, कांग्रेस के लिए 35 प्रतिशत और एआईयूडीएफ के लिए 8 प्रतिशत वोट की भविष्यवाणी की गई थी। कांग्रेस और एआईयूडीएफ के अनुमानित वोट शेयर का एक सरल जोड़ भाजपा के सामने एक चुनौती पैदा करेगा।

एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन से कांग्रेस को काफी लाभ हो सकता है। 2016 में कांग्रेस और एआईयूडीएफ के बीच वोटों के विभाजन के कारण वह कई सीटों पर हार गई थी।

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कांग्रेस को मिल सकता है मुसलमानों का वोट।

सांप्रदायिक ध्रुवीकरण

बीजेपी के रणनीतिकार हिमंत विश्व शर्मा के बयान के साथ स्पष्ट हो गए कि "मियां" मुसलिम या बंगाली भाषी मुसलमान बीजेपी को किसी भी तरह से वोट नहीं देते।

बीजेपी द्वारा बड़े कॉरपोरेटों को विशेषकर गुजरात के अडानी जैसे औद्योगिक घराने को दिए गए कथित संरक्षण पर जनता का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश कांग्रेस कर रही है।

कांग्रेस ने 'असम बचाओ’ शीर्षक से एक अभियान शुरू किया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि बीजेपी सरकार बाहरी लोगों को राज्य बेच रही है।

बेरोज़गारी का मुद्दा

सी-वोटर के सर्वेक्षण के अनुसार 24.6 प्रतिशत मतदाताओं ने इन चुनावों में सबसे बड़े मुद्दे के रूप में "बेरोजगारी" को चुना। यह प्रतिशत केरल और तमिलनाडु जैसे अन्य राज्यों की तुलना में बहुत अधिक है और पश्चिम बंगाल की तुलना में मामूली कम है।

लेकिन बंगाल के विपरीत - जहाँ बेरोजगारी का दोष टीएमसी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार और बीजेपी के नेतृत्व वाले केंद्र दोनों पर पड़ सकता है, असम में नौकरियों का मुद्दा पूरी तरह से बीजेपी के ख़िलाफ़ काम कर सकता है।

बीजेपी अपनी ओर से यह दावा करती रही है कि असम की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए केंद्र और राज्य स्तर पर एक ही पार्टी को सत्ता में रखना बेहतर होगा।

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विपक्ष असम चुनाव में बेरोज़गारी को मुद्दा बनाना चाहता है।

महँगाई

मूल्य वृद्धि बीजेपी सरकार के लिए अच्छी खबर नहीं है और यह बेरोजगारी की तुलना में चुनावी परिणामों को प्रभावित करने के लिए जाना जाता है।

सी-वोटर सर्वेक्षण के अनुसार असम में 24.2 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने इन चुनावों में उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा के रूप में बढ़ती कीमतों को चुना। पश्चिम बंगाल सहित अन्य सभी अन्य राज्यों में यह 10 प्रतिशत से कम है।

केंद्र को नागरिकता संशोधन अधिनियम को अधिसूचित करना बाकी है। जाहिर तौर पर असम और पश्चिम बंगाल चुनावों के कारण इसमें देरी हो रही है। सीएए असम में एक प्रमुख मुद्दा है क्योंकि स्थानीय आबादी को डर है कि इससे बड़ी संख्या में बांग्लादेशी हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता का अधिकार मिलेगा।

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सीएए का पूरे देश में हुआ विरोध, असम बीजेपी को हो सकता है लाभ।

सीएए

सीएए के ख़िलाफ़ असम में विरोध प्रदर्शनों का दौर चलता रहा जो कोरोना लॉकडाउन की वजह से थम गया, लेकिन इसके फिर शुरू होन के संकेत हैं। अगर सीएए मुद्दा उठता है, तो यह असमिया हिंदू मतदाताओं के बीच बीजेपी की संभावनाओं को नुकसान पहुँचा सकता है।

असमिया बोलने वाले मतदाताओं को लुभाने के लिए असम जातीय परिषद, राइजर दल और आंचलिक गण मोर्चा जैसे नए जातीय दल अस्तित्व में आए हैं। असम जातीय परिषद का गठन ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन द्वारा किया गया है।  

राइजर दल

असम गण परिषद से क्षुब्ध होकर ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन ने एक नया संगठन बनाने का फैसला किया। जेल में बंद कार्यकर्ता अखिल गोगोई के नेतृत्व में राइजर दल का गठन हुआ है और दोनों दलों ने गठबंधन बनाने का फैसला किया है।

दूसरी ओर, आंचलिक गण मोर्चा कांग्रेस-एआईयूडीएफ-वाम गठबंधन में शामिल हो गया है।

राइजर दल ने बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद क्षेत्र में एक दिलचस्प लेकिन जोखिम भरा खेल खेला है। हाल ही में संपन्न बीटीसी चुनावों में पार्टी ने अपने सहयोगी बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट के बजाय नवगठित यूपीपीएल का समर्थन करने का फैसला किया।

बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट के प्रमुख हाग्रामा मोहिलरी भाजपा के "विश्वासघात" से नाराज़ हैं। यह संभावना है कि मोहिलरी कांग्रेस गठबंधन या असम जातीय परिषद-राइजर दल गठबंधन के साथ हाथ मिला सकते हैं।

कांग्रेस गठबंधन बीटीसी में गैर-बोडो वोटों को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जबकि अभी भी बीपीएफ के साथ समझौते की कोशिश कर रहा है।

स्पेशल पैकेज

केंद्रीय बजट में, सरकार ने पश्चिम बंगाल और असम में चाय बागान श्रमिकों के लिए 1000 करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की। राज्य सरकार ने हाल ही में 7 लाख से अधिक चाय बागान श्रमिकों के खातों में 3000 रुपये स्थानांतरित किए हैं।

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने चुनावों को देखते हुए बजट में असम के लिए ख़ास घोषणाएँ कीं।

हालांकि कई श्रमिक प्रतिनिधियों ने इसे अपर्याप्त बताया है। वे मौजूदा 167 रुपये प्रतिदिन से 351.33 रुपये तक मजूरी वृद्धि की माँग कर रहे हैं। आदर्श आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले राज्य सरकार आंशिक बढ़ोतरी की घोषणा कर सकती है। राइजर दल को उम्मीद है कि वह इस महत्वपूर्ण वोट बैंक के समर्थन को बनाए रखने में सफल होगी।

मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल और उनके डिप्टी हिमंत विश्व शर्मा के बीच एक और समस्या बीजेपी झेल रही है। वह है राज्य में इनका दोहरा नेतृत्व। हालाँकि, दोनों के बीच संबंध काफी हद तक सौहार्दपूर्ण रहे हैं, फिर भी कभी-कभार मतभेद उजागर हो जाते हैं। कांग्रेस ने असम भाजपा के दोहरे नेतृत्व की आलोचना करने का कोई मौका नहीं छोड़ा, इसे एक डबल इंजन ट्रेन कहा।

कहा जाता है कि निर्वाचन क्षेत्र में बीजेपी विधायकों के खिलाफ असंतोष है। सी-वोटर सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 29 प्रतिशत मतदाताओं ने कहा कि वे अपने स्थानीय विधायक से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हैं।

इस नाराज़गी को ध्यान में रखते हुए बीजेपी कई मौजूदा विधायकों को टिकट नहीं दे सकती है। ख़बरों के अनुसार कम से कम 15 विधायकों को टिकट से वंचित किया जा सकता है।

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