असम के चार जिलों से अफ्सपा हटाया तो 4 जिलों में छह माह क्यों बढ़ाया?
सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम यानी अफ्सपा को चार जिलों से हटा लिया गया है। हालाँकि चार अन्य जिलों में इसको छह महीने के लिए बढ़ा दिया गया है और छह महीने की अवधि पूरा होने पर इसको गृह मंत्रालय फिर से बढ़ा सकता है। इसको लेकर अधिसूचना जारी की गई है और यह रविवार से लागू हो गई है।
अफ्सपा के तहत अशांत क्षेत्र घोषित किया जाता है। अशांत क्षेत्र की अधिसूचना 1990 से पूरे असम में लागू की गई थी। हालाँकि, पिछले साल केंद्र ने नौ जिलों और दूसरे जिले के एक हिस्से को छोड़कर पूरे राज्य से अफ्सपा के तहत अशांत क्षेत्र वाली अधिसूचना हटा दी थी। इस साल मार्च में इसे राज्य के एक और जिले से हटा लिया गया था। इस तरह एक दिन पहले तक कुल मिलाकर आठ जिलों में अफ्सपा क़ानून लागू था।
एक रिपोर्ट के अनुसार असम सरकार ने पिछले महीने केंद्र से सिफारिश की थी कि राज्य की सुरक्षा स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार और उसके बाद त्वरित विकास को देखते हुए 1 अक्टूबर से शेष सभी आठ जिलों से अशांत क्षेत्रों की अधिसूचना हटा दी जाए। हालाँकि ऐसा नहीं हुआ और सिर्फ़ चार जिलों- जोरहाट, गोलाघाट, कार्बी आंगलोंग और दिमा हसाओ से ही अफ्सपा को हटाया जा सका है।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार असम के डीजीपी जीपी सिंह ने गुवाहाटी में असम पुलिस दिवस के अवसर पर घोषणा की कि डिब्रूगढ़, तिनसुकिया, शिवसागर और चराइदेव जिले 1 अक्टूबर या रविवार से अशांत क्षेत्र के रूप में ही अधिसूचित रहेंगे। ऊपरी असम के ये चार जिले पहले उग्रवादी समूह उल्फा के गढ़ रहे थे।
बता दें कि असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने इसी साल मई में विवादास्पद क़ानून अफ्सपा को लेकर घोषणा की थी। उन्होंने कहा था कि उनका लक्ष्य इस साल के अंत तक पूरे राज्य से अफ्सपा को पूरी तरह से वापस लेने का है और नवंबर तक पूरे राज्य से अफ्सपा हटाया जा सकता है। हालाँकि, कानून द्वारा आवश्यक सीएपीएफ की उपस्थिति मौजूद रहेगी।
अफ्सपा हटाने की बात कहते हुए सीएम सरमा ने ट्वीट में यह भी कहा था कि हम अपने पुलिस बल को प्रशिक्षित करने के लिए पूर्व सैन्य कर्मियों को भी शामिल करेंगे।
अफ्सपा सशस्त्र बलों को विशेष शक्तियाँ देता है। इसे धारा 3 के तहत अशांत घोषित होने के बाद केंद्र या किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा राज्य या उसके कुछ हिस्सों पर लगाया जा सकता है। अधिनियम कहता है कि यह उस ख़तरनाक स्थिति के लिए है जहाँ नागरिकों की सहायता के लिए सशस्त्र बलों का उपयोग ज़रूरी है। अफ्सपा का उपयोग मुख्य रूप से उन क्षेत्रों में किया गया है जहाँ उग्रवाद का असर है।
इस अधिनियम को बेहद कठोर कहा गया है। यह सेना, राज्य और केंद्रीय पुलिस बलों को हत्या करने, घरों की तलाशी लेने और किसी भी संपत्ति को नष्ट करने के लिए गोली मारने की शक्तियां देता है। यह उन्हें संदेह के आधार पर वारंट के बिना गिरफ्तार करने और वारंट के बिना परिसर की तलाशी लेने की शक्ति देता है।
अफ्सपा को सबसे पहले असम क्षेत्र में नगा विद्रोह से निपटने के लिए लागू किया गया था। 1951 में नागा नेशनल काउंसिल यानी एनएनसी ने कहा था कि उसने एक 'स्वतंत्र और निष्पक्ष जनमत संग्रह' आयोजित किया जिसमें लगभग 99 प्रतिशत नागाओं ने ‘फ्री सॉवरेन नागा नेशन’ के लिए मतदान किया था। बाद में इसको लेकर प्रदर्शन होने लगे। स्थिति से निपटने के लिए असम सरकार ने 1953 में नागा हिल्स में असम मेंटेनेंस ऑफ पब्लिक ऑर्डर (ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट) एक्ट लागू कर दिया और विद्रोहियों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई तेज कर दी। लेकिन जब स्थिति बिगड़ती गई तो इस ख़तरे से निपटने के लिए सशस्त्र बल (असम और मणिपुर) विशेष शक्ति अध्यादेश 1958 को 22 मई 1958 को लागू किया गया। बाद में इसे सशस्त्र बल (असम और मणिपुर) विशेष अधिकार अधिनियम 1958 द्वारा बदल दिया गया था।
इसने केवल राज्यों के राज्यपालों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों को संबंधित राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के क्षेत्रों को ‘अशांत’ घोषित करने का अधिकार दिया। बाद में इसे सभी पूर्वोत्तर राज्यों में लागू कर दिया गया था। लेकिन इन प्रावधानों के तहत होने वाली कार्रवाइयों पर लगातार विवाद होता गया और इसको हटाने को लेकर लगातार मांगें भी होती रहीं। हाल ही में तीन पूर्वोत्तर राज्यों के कई जिलों से अफ्सपा को हटा दिया गया है।