क्या 2019 चुनाव में वोट में गड़बड़ी हुई? शोध पर विवादों में अशोक विवि
क्या 2019 के लोकसभा चुनाव में वोटों में कुछ गड़बड़ी हुई थी? तब चुनाव परिणामों के बाद कई विपक्षी दलों ने ईवीएम को लेकर सवाल उठाया था और विवाद हुआ था। लेकिन अब एक शोध को लेकर वोटों में गबड़बड़ी के संकेत दिए गए हैं और इस पर भी विवाद हुआ है। इस पर बीजेपी और कांग्रेस की ओर से तीखी प्रतिक्रियाएँ आई हैं। इसके बाद अशोक विश्वविद्यालय ने भी इस पर बयान जारी किया है। विश्वविद्यालय के एक फैकल्टी मेंबर ने यह शोध तैयार किया है। विश्वविद्यालय ने फ़िलहाल खुद को उस शोध पेपर से अलग कर लिया है।
विश्वविद्यालय के एक संकाय सदस्य सब्यसाची दास द्वारा प्रकाशित एक शोध पत्र में 2019 के आम चुनाव में भाजपा द्वारा वोट में संभावित हेरफेर का संकेत दिया गया है। विवाद बढ़ता देख विश्वविद्यालय ने कहा है कि इसके संकाय, छात्रों या कर्मचारियों द्वारा उनकी 'व्यक्तिगत क्षमता' में सोशल मीडिया गतिविधि या सार्वजनिक सक्रियता विश्वविद्यालय के रुख को प्रतिबिंबित नहीं करती है।
Ashoka University is dismayed by the speculation and debate around a recent paper by one of its faculty members (Sabyasachi Das, Assistant Professor of Economics) and the university's position on its contents.
— Ashoka University (@AshokaUniv) August 1, 2023
As a matter of record, Ashoka University is focused on excellence in…
'डेमोक्रेटिक बैकस्लाइडिंग इन द वर्ल्ड्स लार्जेस्ट डेमोक्रेसी' नाम के शोध पत्र को अशोक विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर सब्यसाची दास द्वारा लिखा गया है। दास ने शोध पत्र में कहा है कि करीबी मुकाबले वाले निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा की असंगत जीत काफी हद तक चुनाव के समय पार्टी द्वारा शासित राज्यों में केंद्रित है। उन्होंने लिखा कि भाजपा ने उन निर्वाचन क्षेत्रों में असंगत रूप से अधिक जीत हासिल की, जहां वह सत्ताधारी पार्टी थी और जहां करीबी मुकाबला था। पेपर मुख्य रूप से चुनाव में हेरफेर की परिकल्पना के पक्ष में सबूतों की खोज करता है, यह भी तर्क देता है कि हेरफेर बूथ स्तर पर स्थानीय है। इसने कहा है कि इसका अर्थ यह है कि हेरफेर उन निर्वाचन क्षेत्रों में केंद्रित हो सकता है जहाँ बड़ी संख्या में पर्यवेक्षक हैं जो बीजेपी शासित राज्य के राज्य सिविल सेवा अधिकारी हैं।
इस शोध पत्र की रिपोर्ट सामने आने पर कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने ट्वीट किया कि यदि '...चुनाव आयोग और/या भारत सरकार के पास इन तर्कों का खंडन करने के लिए उत्तर हैं, तो उन्हें विस्तार से देना चाहिए। प्रस्तुत साक्ष्य स्कॉलर पर राजनीतिक हमलों के लिए उपयुक्त नहीं हैं। उदाहरण के लिए, वोटों की संख्या में विसंगति को स्पष्ट करने की आवश्यकता है, क्योंकि इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।'
This thread offers a hugely troubling analysis for all lovers of Indian democracy. If the Election Commission and/or the Government of India have answers available to refute these arguments, they should provide them in detail. The evidence presented does not lend itself to… https://t.co/intL81n9nH
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) August 1, 2023
बीजेपी नेता निशिकांत दुबे ने भी इस पर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने ट्वीट किया, '...नीति के मामलों पर बीजेपी से मतभेद होना ठीक है लेकिन यह इससे बहुत आगे की चीज है...। आधे-अधूरे शोध के नाम पर कोई भारत की जीवंत मतदान प्रक्रिया को कैसे बदनाम कर सकता है। कोई भी विश्वविद्यालय इसकी अनुमति कैसे दे सकता है? उत्तर चाहिए- यह पर्याप्त अच्छी प्रतिक्रिया नहीं है।'
It is fine to differ with the BJP on matters of policy but this is taking it too far…how can someone in the name of half-baked research discredit India’s vibrant poll process? How can any University allow it? Answers needed- this is not good enough a response. https://t.co/vDCDFuPC58
— Dr Nishikant Dubey (@nishikant_dubey) August 1, 2023
इस मामले के तूल पकड़ने के बाद अशोक विश्वविद्यालय ने सफाई जारी की है। इसने कहा है कि समीक्षाधीन पेपर ने अभी तक एक महत्वपूर्ण समीक्षा प्रक्रिया पूरी नहीं की है और इसे एक अकादमिक जर्नल में प्रकाशित नहीं किया गया है। इसने यह भी कहा है कि अशोक के संकाय, छात्रों या कर्मचारियों द्वारा उनकी व्यक्तिगत क्षमता में सोशल मीडिया गतिविधि या सार्वजनिक सक्रियता विश्वविद्यालय के रुख को प्रतिबिंबित नहीं करती है।
इसने कहा है कि 'अशोक विश्वविद्यालय भारत के बेहतरीन विश्वविद्यालय के निर्माण, सामाजिक प्रभाव पैदा करने और राष्ट्र-निर्माण में योगदान देने के दृष्टिकोण से साथ कई विषयों में शिक्षण और अनुसंधान में उत्कृष्टता लाने पर केंद्रित है। विश्वविद्यालय अपने 160 से अधिक संकाय को अनुसंधान करने के लिए प्रोत्साहित करता है, लेकिन संकाय सदस्यों की व्यक्तिगत विशिष्ट शोध परियोजनाओं को निर्देशित या अनुमोदित नहीं करता है। अशोक उस शोध को महत्व देता है जो गंभीर है, जिसका पीअर रिव्यू किया गया और प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित किया गया हो।'