तैयारी: गुजरात के लिए गहलोत, हिमाचल के लिए बघेल बने पर्यवेक्षक
कांग्रेस ने गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव के लिए अपने दो मुख्यमंत्रियों को अहम जिम्मेदारी दी है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को गुजरात का जबकि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को हिमाचल प्रदेश का वरिष्ठ पर्यवेक्षक बनाया गया है। कांग्रेस अब राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही सत्ता में है और फरवरी और मार्च में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में करारी हार का स्वाद चख चुकी है।
गहलोत और बघेल को जिम्मेदारी देकर पार्टी ने गुजरात और हिमाचल प्रदेश की चुनावी लड़ाई को गंभीरता से लड़ने की इच्छाशक्ति दिखाई है।
गुजरात के लिए छत्तीसगढ़ सरकार में कैबिनेट मंत्री टीएस सिंहदेव और मुंबई कांग्रेस के नेता मिलिंद देवड़ा को भी पर्यवेक्षक बनाया गया है जबकि हिमाचल प्रदेश के लिए राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट और पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा को पर्यवेक्षक बनाया गया है।
साल 2017 में गुजरात के विधानसभा चुनाव के वक्त भी अशोक गहलोत कांग्रेस के संगठन महासचिव के पद पर थे और तब गुजरात का प्रभारी रहते हुए वहां उन्होंने राहुल गांधी के साथ काफी काम किया था।
अहम होंगे चुनावी नतीजे
गुजरात और हिमाचल प्रदेश में इस साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं। 2023 के बड़े चुनावी साल से पहले इन दोनों ही राज्यों के चुनाव नतीजे बेहद अहम रहेंगे। बताना होगा कि 2023 में 9 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं। इस खबर में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में क्या सियासी हालात हैं, इस पर बात की जाएगी।
पहले बात करते हैं गुजरात की। गुजरात में विधानसभा की 182 सीटें हैं और यहां लड़ाई बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही है। लंबे समय तक गुजरात की सत्ता में रही कांग्रेस 90 के दशक में बीजेपी के उभार और 2000 में नरेंद्र मोदी के राज्य का मुख्यमंत्री बनने के बाद कमजोर होती चली गई। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी ने पार्टी के लिए पसीना बहाया और सीटों की संख्या में इजाफ़ा किया।
2012 में कांग्रेस को जहां 61 सीटें मिली थीं, वहीं 2017 में यह आंकड़ा 77 हो गया था, दूसरी ओर बीजेपी 2012 में मिली 115 सीटों के मुक़ाबले 2017 में 99 सीटों पर आ गयी थी।
तब यह माना गया था कि पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के आंदोलन से बीजेपी को ख़ासा नुक़सान हुआ है। 2017 के विधानसभा चुनाव में हालात ऐसे थे कि ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुजरात में कई चुनावी रैलियां करनी पड़ी थीं और उन्होंने दिल्ली का कामकाज छोड़कर पूरा फ़ोकस गुजरात चुनाव पर कर दिया था।
फिर भी 182 सीटों वाली गुजरात की विधानसभा में बहुमत के लिए ज़रूरी 92 सीटों से सिर्फ 7 ही ज़्यादा सीटें बीजेपी ला पाई थी।
हार्दिक ने छोड़ा साथ
सौराष्ट्र के इलाक़े में तब कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया था। इस इलाक़े में पाटीदारों (पटेलों) की अच्छी आबादी है और बड़ी संख्या में पाटीदारों ने बीजेपी के ख़िलाफ़ वोट डाला था। इसके पीछे बड़ा कारण हार्दिक ही थे। लेकिन इस बार हार्दिक पटेल कांग्रेस के साथ नहीं हैं और बीजेपी में शामिल हो चुके हैं।
2017 के बाद से हार्दिक पटेल के अलावा कांग्रेस के कई विधायक और बड़े नेता अब तक पार्टी छोड़ चुके हैं।
आप, एआईएमआईएम भी मैदान में
गुजरात में इस बार आम आदमी पार्टी भी चुनाव लड़ने जा रही है और वह कांग्रेस के वोटों में सेंध लगा सकती है। आम आदमी पार्टी का गुजरात में भारतीय ट्राइबल पार्टी के साथ गठबंधन हो चुका है। इसके अलावा असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम भी कुछ सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इसलिए कांग्रेस को इनसे भी थोड़ा बहुत चुनौती मिल सकती है।
7 नेताओं को बनाया कार्यकारी अध्यक्ष
कांग्रेस ने चुनावी तैयारियों को दुरुस्त करते हुए कुछ दिन पहले ही गुजरात में 7 नेताओं को कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। इनमें एक प्रमुख नाम वडगाम के विधायक और दलित नेता जिग्नेश मेवाणी का भी है। इसके अलावा ललित कागथारा, रुत्विक मकवाना, अंबरीश जे डेर, हिम्मत सिंह पटेल, कादिर पीरजादा और इंद्रविजय सिंह गोहिल को भी कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है।
मोदी-शाह का राज्य
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का गृह राज्य होने के कारण बीजेपी को यहां फिर से जीत का भरोसा है। बीते कुछ महीनों में नरेंद्र मोदी, अमित शाह और भूपेंद्र यादव ने गुजरात का दौरा किया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां सभी 26 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी।
हिमाचल प्रदेश
अब बात करते हैं हिमाचल प्रदेश की। हिमाचल प्रदेश में विधानसभा की 68 सीटें हैं और 2017 के विधानसभा चुनाव में यहां बीजेपी को बड़ी जीत मिली थी। तब बीजेपी को 44 सीटों पर जीत हासिल हुई थी और उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भी वह चारों सीटें जीतने में कामयाब रही थी।
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा इसी राज्य से आते हैं इसलिए बीजेपी की कोशिश यहां सरकार में वापसी करने की है।
उपचुनाव के नतीजे
कांग्रेस को बीते साल नवंबर में हुए उपचुनाव के नतीजों से बड़ी सियासी ऊर्जा मिली थी। 3 विधानसभा सीटों और मंडी लोकसभा सीट पर उपचुनाव में बीजेपी को हार मिली थी। उपचुनाव के नतीजों को विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना गया था।
मंडी लोकसभा सीट पर बीजेपी 2019 में चार लाख से ज्यादा वोटों से जीती थी लेकिन उपचुनाव में वह यहां हार गई थी। जबकि जीत के लिए बीजेपी ने पूरा जोर लगाया था।
बीजेपी में गुटबाज़ी?
उपचुनाव में हार की एक बड़ी वजह गुटबाज़ी को भी माना गया था। नतीजों के बाद जयराम ठाकुर गुट का कहना था कि पार्टी के बाक़ी नेता प्रचार में नहीं आए जबकि दूसरे गुट का कहना था कि केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर को प्रचार से दूर रखा गया।
जयराम ठाकुर के अलावा राज्य में पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और उनके बेटे अनुराग ठाकुर का भी असरदार गुट है। अनुराग ठाकुर को हिमाचल में मुख्यमंत्री पद के बड़े दावेदार के रूप में देखा जाता है।
धूमल-नड्डा के खेमे
धूमल और जेपी नड्डा के खेमों में सियासी अदावत होने की बात हिमाचल बीजेपी में कही जाती रही है। 2010 में जब धूमल राज्य के मुख्यमंत्री थे तब उनके अनुरोध पर बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने नड्डा को केंद्रीय राजनीति में बुला लिया था। इसके बाद धूमल का राज्य में एकछत्र शासन हो गया था लेकिन बीते कुछ सालों में नड्डा का क़द तेज़ी से बढ़ा और 2017 में मुख्यमंत्री पद के चयन में धूमल के बजाय नड्डा की ही चली।
उपचुनाव में मिली करारी हार के बाद जयराम ठाकुर को बदलने की चर्चाएं तेज़ हुई थीं लेकिन माना जाता है कि नड्डा ने उन्हें बचा लिया।
कांग्रेस में गुटबाजी
दूसरी ओर, कांग्रेस के अंदर भी अच्छी खासी गुटबाजी है। यहां पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी और मंडी से लोकसभा सांसद प्रतिभा सिंह का अपना एक बड़ा गुट है। वीरभद्र सिंह की लोकप्रियता को देखते हुए प्रतिभा सिंह को कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। प्रतिभा सिंह के अलावा सुखविंदर सिंह सुक्खू, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौड़, आशा कुमारी, रामलाल ठाकुर, मुकेश अग्निहोत्री के भी अपने-अपने गुट सक्रिय हैं।
हिमाचल प्रदेश के पड़ोसी राज्य पंजाब में प्रचंड जीत हासिल करने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने लगातार हिमाचल प्रदेश का दौरा किया है। हालांकि केजरीवाल को बड़े झटके भी लगे हैं और उनकी पार्टी के तमाम बड़े नेता बीजेपी में शामिल हो गए थे।
कांग्रेस को इस बात का डर है कि केजरीवाल यहां उसके वोटों में सेंध लगा सकते हैं। केजरीवाल ने एक और पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में भी चुनाव लड़ा था लेकिन यहां आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा और वह एक सीट भी नहीं जीत सकी थी।